संघ का सपना और कठिनाइयाँ

मुजफ्फर अली
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुप्रीमो मोहन भागवत ने नागपुर में जो अपने विचार व्यक्त किए यदि उन पर अमल होता है तो देश के सामाजिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। मोहन भागवत ने कहा है कि संघ की नजर में कोई बाहरी नहीं है जो भारत में पैदा हुआ वो भारत का है और संघ सिर्फ हिंदूओं का संगठन नहीं है , संघ सभी विचार वालों से जुड़ाव चाहता है ताकि देश को विश्व में परमवैभव बनाने का उद्देश्य पूरा हो सके। दूसरी ओर प्रणव मुखर्जी ने दबे शब्दों में संघ को चेता दिया कि नफरत और असंहिष्णुता का भाव रखकर देश को एक नहीं रखा जा सकता , देश में डर का माहौल दूर करना होगा, संवाद करना होगा।
अपनी स्थापना से लेकर आज तक संघ के मूल विचार में कहीं बदलाव नहीं देखा गया। गुरुवार को नागपुर में मोहन भागवत के नए विचार संघ के लोगों को कितना बैचेन कर पाएगें यह समय बताएगा लेकिन यह साबित हो गया है कि संघ को अब देश के सभी वर्गो से समर्थन चाहिए और उसे अपनी विचारधारा को मान्यता दिलावाना है इसलिए संघ विचारों में नरमी बरतने को तैयार है। दरअसल केन्द्र में भाजपा को सत्ता दिलाकर भी अपना मकसद पूरा नहीं होने की आशंका से वो विचलित दिख रहा है। अपनी सरकार होने का प्रचार करने के बावजूद बीते चार वर्ष में भी देश की जनता का अधिकांश मानस संघ के अनुकूल नहीं बन पाया है। किसी को दुश्मन मानने या किसी समुदाय को विदेशी बताकर उससे बैर रखकर देश में निरंतर शासन की बागडोर संभालने का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता है इसलिए संघ ने अब अपनी रणनीति बदलते हुए किसी को भी दुश्मन मानने इंकार कर दिया है। संघ समझ गया है कि ९३ सालों में अथक प्रयास के बावजूद भारत देश की आत्मा एक रंग में रंगने को तैयार नहीं है। अब तक संघ मानता रहा है कि मुस्लिम और अंग्रेज शासक विदेशी रहे हैं और हिंदू संस्कृति के दुश्मन रहे हैं। अब संघ कह रहा है कि जो भारत में पैदा हुआ वो भारतीय है, यहीं का है और कोई दुश्मन नहीं है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि मु$गल शासक में सिर्फ बाबर ही विदेशी हुआ बाकी हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब आदि सभी यहीं पैदा हुए है तो सभी भारतीय हुए। कितने ही अग्रेज़ अफसरों ने भारत में जन्म लिया और कितने ही परिवार यहाँ बस गए तो वो भी संघ की नज़र में अब दुश्मन नहीं हैं। संघ से जुड़ा गाँव, कस्बा, छोटे बड़े शहरों का आम कार्यकत्र्ता अपने दिमाग में मुस्लिम और इसाई को अपने विरुद्व ही मानता रहा है और इन दोनो समुदाय के प्रति बैर रखता आया है। चर्च और मस्जिद उसकी नजर में खटकते रहे हैं। अब मोहन भागवत अपने संगठन के आम कार्यकत्र्ता को कितना संतुष्ट कर पाएगें। यह देखना होगा। यदि मोहन भागवत के कहे अनुसार संघ ने अपने आप को बदला तो देश में सामाजिक क्रांति होगी। हिंदू, मुस्लिम, इसाई से जुड़ कर संघ ना सिर्फ देश में बल्कि दुनिया में एक बड़ी ताकत बन सकेगा। वही समय होगा जब भारत विश्व गुरु कहलाएगा। लेकिन इससे पहले संघ को अपनी अन्य शाखाओं के नेताओं की ज़बानों पर ताला लगवाना होगा। उनमें सौहार्द के नए विचार पनपाने होगे। लेकिन क्या इतना आसान होगा। नफरत की आग भडक़ाकर राजनैतिक रोटियाँ सेकने वाले क्या इतनी जल्दी मान जाएगें। संघ को पहले अपनों से ही भिडऩा होगा।

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