स्वामी अग्निवेश के साथ हुयी घटना सही नहीं

त्रिवेन्द्र पाठक
नमस्कार मित्रों,
स्वामी अग्निवेश के साथ जो घटना अभी हुयी वो किसी भी रूप में सही ठहराइ नहीं जा सकती…
अग्निवेश के बारे में बात करने से पहले ये जानना आवश्यक है की हम उनका विरोध क्यूँ कर रहे हैं?
सबसे पहले तो आप ये तय करें की धर्म क्या है?
धर्म एक जीवन को जीने के नियमो से बाधित एक शैली है जिसके अनुरूप हम आचरण करते है और जीवन को जीते है जैसे त्रिवेन्द्र पाठक एक आर्य है जो की आर्यों के द्वारा निर्मित वेदों में लिखित पुराणों में वर्णित एक जीवन जीने की कला के अनुसार आचरण करते है तो ये आर्य धर्म हुआ उसी प्रकार अन्य धर्मो के लोग भी आचरण करते है जैसे सिख भाई वो गुरुग्रंथ साहिब में बताये अनुसार अपने जीवन को जीने का आचरण करते है…. उसी प्रकार बाइबिल के अनुसार इसाई धर्म के लोग अपने जीवन का आचरण करते है तथा कुरान के अनुसार मुस्लिम संप्रदाय के लोग अपना जीवन जीते है… बाकि धर्मो के लोग भी यही करते है चाहे वो जैन हों, बौध हों, यहूदी हो, पारसी हों या कोई अन्य….
और सभी धर्मों की मान्यताये अलग अलग भी हो सकती है और कुछ धर्मो में समानताये भी लेकिन एक बात जो है वो ये की सभी जीवन को जीने के एक कला प्रदान करते है और अपनी मान्यताओं के अनुसार दूसरे धर्मों का विरोध भी करते हैं…. जैसे इसाई भारतीय मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते वो अपने धर्म का प्रचार करते है तथा हिन्दुओं की सभी मान्यताओं का विरोध करते है…. ऐसे और भी कई उदहारण आपको मिल जायेंगे….
अब बात अग्निवेश की वो ऐसे समुदाय से है जिसमे केवल आर्यों के वैदिक सिद्धांतों को ही महत्व दिया जाता है बाकि सबको वो पाखंड या आडम्बर ही मानते आये है उनका मत है की वास्तविक आर्य सभ्यता में इन पाखंड या आडम्बरों का कोई महत्व नहीं था… आर्यों में वर्ण व्यवस्था जन्म के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार थी….ये सब कुछ समयांतर में स्वार्थ के वशीभूत होकर किये गए परिवर्तन थे… लेकिन वो वेदों और सभ्यता का विरोध नहीं करते वो सभी विधि विधानों का समर्थन करते हैं जो हम हमारे जीवन में उपयोग करते है वो सभी संस्कारों को आवश्यक समझते है जो भी हमारे जीवन के लिए बताये गए है सोलह संस्कार…. जन्म से लेकर मृत्यु तक तो फिर अग्निवेश का ही विरोध क्यूँ करें…. यदि विरोध ही करना है तो विश्व के सभी धर्मो का किया जाये…. लेकिन विरोध कोई तरीका नहीं है सभी को हमारे धर्म का महत्त्व बताया जाये ताकि लोग इसे स्वयं स्वीकार कर सकें क्योंकि हमारा धर्म विश्व का सर्वश्रेठ धर्म है अतः सभी से मेरा अनुरोध है की अपने धर्म का प्रचार करें उसके अनुसार आचरण करे और उसे आगे बढाने में अपना योगदान करें यदि आप सभी ऐसा करेंगे तो निश्चित ही हम संख्या और मान्यताओं में सबसे अधिक होंगें….
सभी का धन्यवाद मेरा ज्ञान जितना है मैंने सिर्फ उतना सारगर्भित लिखा है……

त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”

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