घूसखोरी की सजा सीधे बर्खास्तगी क्यों ना हो?

-मोटी तनख्वाह पाने के बाद भी नहीं भरता पेट
-कमीशन के नाम पर होती है काली कमाई
-निर्माण लागत की 40% राशि बंटती है कमीशन में
-इसीलिए होता है घटिया काम

प्रेम आनंदकर
जयपुर में सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) के दो अफसरों को एक ठेकेदार से बिल पास करने की एवज में बतौर कमीशन मोटी रकम लेते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने दबोच लिया। यह तो कमीशनखोरी और घूसखोरी की एक बानगी है। पिछले दिनों अजमेर नगर निगम के कनिष्ठ अभियंता राजेश मीणा, ब्यावर नगर परिषद (अजमेर जिला) की सभापति (चेयरमैन) बबीता चौहान और जयपुर में पुलिस सब इंस्पेक्टर बबीता को रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। इन अच्छे कामों के लिए एसीबी की जितनी पीठ थपथपाई जाए, उतनी कम है। लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि आए दिन कहीं न कहीं घूसखोरों और कमीशनखोरों को पकड़ने के बाद भी भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। घूसखोरी और कमीशनखोरी का ऐसा हराम मुंह लग चुका है कि इन सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को दूसरों के मुंह का निवाला छीनते हुए जरा भी शर्म नहीं आती है। यह ऐसे सरकारी सांड हैं, जो सरकारी खजाने से मोटी तनख्वाह पाने के बाद भी इधर-उधर मुंह मारते हैं। ऊपर से गुर्राते हुए सींग भी मारते हैं। पीडब्ल्यूडी के जिस ठेकेदार का बिल पास करने के लिए मोटी रकम बतौर कमीशन ली जा रही थी, वह इन अफसरों की मक्कारी और हरामखोरी से इतना ज्यादा परेशान हो गया था कि उसने सुसाइड तक करने का मानस बना लिया था, क्योंकि भुगतान नहीं मिलने की स्थिति में उसने बड़ा कर्ज ले लिया था। जब इन सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को मोटी तनख्वाह मिलती है तो यह बात आज तक समझ में नहीं आई कि यह लोग आखिर काली कमाई क्यों करते हैं। क्यों यह कमीशनखोरी के चक्कर में घटिया निर्माण कार्य कराते हैं। क्या इन लोगों को जरा सी भी शर्म नहीं आती कि जो घटिया किस्म का काम करवा रहे हैं, उसका उपयोग उनके परिवार वाले भी करेंगे और जब उन्हीं के साथ कोई दुर्घटना या हादसा हो गया, तब अपने आप को कैसे माफ करेंगे। भले ही एसीबी घूसखोरों और कमीशनखोरों को पकड़ कर मिसाल पेश करे, लेकिन ऐसे लोगों का तनिक भी बाल बांका नहीं होता। सरकार सस्पेंड कर देती है। सस्पेंड की अवधि में आधी तनख्वाह मिलती है। बहाल होने पर बकाया आधी तनख्वाह का एरियर मिल जाता है। कोर्ट में मामला वर्षों तक चलता है। कुछ में सजा हो जाती है तो कुछ में बरी हो जाते हैं। जब तक ऐसे घूसखोरों और कमीशनखोरों को पकड़ने के बाद त्वरित गति से अदालती प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे दिया जाता, तब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लगना मुनासिब नहीं है। ऐसे मामलों में कोर्ट में आरोप सिद्ध होते ही बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। यदि कुछ मामलों में ऐसा हो गया तो हो सकता है, अन्य सरकारी अफसरों-कर्मचारियों को सबक मिलेगा और हराम की खाने से बचेंगे।

-प्रेम आनन्दकर, अजमेर, राजस्थान।
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