क्या संघ तिवाड़ी को कांग्रेस में जाने से रोकेगा?

राजनीतिक गलियारों में एक सवाल गूंज रहा है कि क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारत वाहिनी पार्टी के अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी को कांग्रेस में जाने से रोकेगा? यह सवाल इस कारण उठा है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद तिवाड़ी तीन बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात कर चुके हैं और कयास ये लगाए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस में जा सकते हैं।
ज्ञातव्य है कि तिवाड़ी ने विधानसभा चुनावों से पहले भारत वाहिनी पार्टी का गठन किया था। इससे पहले वे भाजपा में थे। पार्टी ने विधानसभा चुनावों में 62 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें से एक भी प्रत्याशी जीतने में सफल नहीं हुआ। यहां तक कि खुद घनश्याम तिवाड़ी भी अपनी सांगानेर सीट से बुरी तरह से हार कर अपनी जमानत जब्त करा बैठे थे। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें कोई तो रुख अख्तियार करना ही होगा, अन्यथा वे व उनकी पार्टी राजनीति में अप्रासंगिक हो जाएगी। इसी सिलसिले में उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव लडऩे की इच्छुक नहीं है, क्योंकि प्रदेश में दो ही दल भाजपा और कांग्रेस की स्वीकारोक्ति है और उनकी पार्टी इन्हीं में से किसी एक में अपना भविष्य देख रही है। किस पार्टी में शामिल होना है, इसको लेकर पार्टी के प्रमुख नेताओं की बैठक के बाद मार्च के पहले ही हफ्ते में एलान कर देंगे कि वे किसके साथ जा रहे हैं।
चूंकि उन्होंने भाजपा छोड़ कर नई पार्टी बनाई थी, इस कारण यह सवाल प्रासंगिक हो गया कि उनका प्रयोग फेल होने के बाद क्या वे भाजपा में लौट सकते हैं, इस पर वे कहते हैं कि उन्हें बीजेपी से निकाला नहीं गया था, बल्कि उन्होंने खुद बीजेपी छोड़ी थी। इसके अतिरिक्त उनकी दो ही मांग थी, एक तो सवर्ण आरक्षण और दूसरा वसुंधरा सरकार को हटाना। दोनों ही मांगें पूरी हो चुकी हैं, ऐसे में अब भारतीय जनता पार्टी क्या सोचती है, प्रस्ताव भेजती है तो उस पर विचार किया जाएगा।
उनके इस बयान से साफ है कि भले ही वे कांग्रेस में शामिल होने के मन से गहलोत से मुलाकातें कर रहे हों, मगर भाजपा में जाने का रास्ता भी बंद नहीं करना चाहते। वैचारिक रूप से भाजपा उनके लिए अधिक अनुकूल है। वे संघ पृष्ठभूमि से हैं और उन्होंने जब नई पार्टी बनाई, तब भी अधिसंख्य समर्थक या तो संघ से जुड़े हुए थे या फिर वसुंधरा के विरोधी। अब जब कि वसुंधरा को राष्ट्रीय राजनीति में ले कर राजस्थान में उनकी भूमिका को सीमित कर दिया गया है, संभावना इस बात की अधिक है कि संघ उन पर भाजपा में लौटने का दबाव बनाए। बस तिवाड़ी को देखना ये है कि उनको कितने सम्मान के साथ वापस लिया जाता है।
जहां तक उनके कांग्रेस में जाने का सवाल है तो कांग्रेस के लिए यह एक उपलब्धि होगी कि संघ विचारधारा से जुड़ी पार्टी उसके साथ आ रही है, मगर सवाल ये है कि ऐसा होने पर क्या पूरी की पूरी पार्टी कांग्रेस में आएगी? तिवाड़ी को भले ही राजनीतिक मजबूरी के कारण कांग्रेस में जाना ठीक लग रहा हो, मगर उनके संघ विचारधारा के कार्यकर्ता भी उनके साथ कांग्रेस में आएंगे, इसमें तनिक संशय हो सकता है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव और उसके बाद जयपुर महापौर का उपचुनाव हार चुकी भाजपा में भारत वाहिनी पार्टी से जुड़े चार पदाधिकारियों की घर वापसी हो गई। ये चारों प्रत्याशी इससे पहले भाजपा से ही जुड़े थे।
बहरहाल, संघ की खासियत ये रही है कि वह मौलिक रूप से संघ से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ता के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखती है, मगर यदि उसे जच जाए कि उसे किल करना है तो उसे भी पूरी निष्ठुरता के साथ अंजाम देता है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है लाल कृष्ण आडवाणी। देखते हैं कि तिवाड़ी के कांग्रेस में जाने के कयासों के बीच संघ क्या खेल खेलता है।
-तेजवानी गिरधर
774206700

error: Content is protected !!