विश्वविद्यालय हैं या कुलपतियों के बिकाऊ बाजार

प्रदेश के 28 में से 14 विश्वविद्यालयों में आयातित कुलपति, इनमें 9 अकेले उत्तरप्रदेश के
-क्या राजस्थान में शिक्षाविदों की कमी है, जो अन्य राज्यों से आयात करने पड़े
-आयातित कुलपति बनाने के नतीजे देखे, दो कुलपति रिश्वत के मामले में धरे गए
-क्या सरकार विश्वविद्यालयों को बिकाऊ बाजार बनने से रोकने के लिए कदम उठा पाएगी

प्रेेम आनन्दकर, अजमेर।

प्रेम आनंदकर
👉हमारे राजस्थान में अच्छे से अच्छे शिक्षाविदों की भरमार है, अन्य प्रदेशों के शिक्षाविदों से कहीं ज्यादा योग्य हैं। इसके बावजूद सरकार ने सरकारी विश्वविद्यालयों को कुलपतियों का बिकाऊ बाजार बना दिया है। हमारे प्रदेश की उच्च शिक्षा और शिक्षाविदों का दुर्भाग्य देखिए, 28 विश्वविद्यालयों में से वर्तमान में 14 विश्वविद्यालयों में कुलपति बाहरी हैं। वैसे बाहरी कुलपतियों की संख्या 15 थी, जिनमें से राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय (आरटीयू), कोटा के कुलपति प्रो. रामावतार गुप्ता दो दिन पहले ही एक प्राइवेट इंजीनियरिंग काॅलेज में सीटें बढ़ाने और सुविधाओं में बढोतरी करने के लिए पांच लाख रूपए की रिश्वत लेते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के हाथों धरे गए हैं। इसी तरह महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के कुलपति प्रो. रामपाल सिंह भी एसीबी के हत्थे चढ़े थे, जिन्हें बाद में राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया था। प्रो. रामपाल सिंह भी उत्तरप्रदेश के ही थे, जिन्हें पहले जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर का कुलपति बनाया गया था। वहां अनियमितताओं के काफी गुल खिलाने और विरोध होने पर उन्हें अजमेर में थोप दिया गया था। यहां भी अपनी हरकतों से नहीं चूके। नतीजतन, एसीबी के हाथों धरे गए थे। ऐसा बताया जाता है कि प्रो. गुप्ता भी उत्तप्रदेश के ही रहने वाले हैं। राजस्थान में किन-किन सरकारी विश्वविद्यालयों में अन्य राज्यों के व्यक्ति कुलपति बने हुए हैं, उनकी सूची देखिए। पहले उत्तरप्रदेश की बारी है। वहां के प्रो. अमरीक सिंह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति हैं और इन दिनों पूर्व गृहमंत्री, वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व उदयपुर के भाजपा विधायक गुलाब चंद कटारिया से पंगा लेने के कारण खासे चर्चा में हैं। प्रो. विनोदसिंह महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर, डाॅ. अनुला मौर्य जगद्गुरू रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर, डाॅ. रक्षपाल सिंह स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, डाॅ. अभिमन्यु राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जयपुर, डाॅ. आर.के. धाकरे महाराज सूरजमल बृज विश्वविद्यालय, भरतपुर, प्रो. जीतसिंह संधु श्री कर्ण नरेंद्र सिंह कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (जयपुर), डाॅ. देवस्वरूप भीमराव अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय, जयपुर और प्रो. अनिल शुक्ला महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के कुलपति हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश की प्रो. नीलिमा सिंह कोटा विश्वविद्यालय, कोटा, बिहार के डाॅ. सतीश गर्ग राजस्थान पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर, उत्तराखंड के प्रो. अमरीश शरण बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय, बीकानेर, दिल्ली के डाॅ. नरेंद्र सिंह महाराणा प्रताप कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर और डाॅ. दिनेश चंद्र जोशी कृषि विश्वविद्यालय, कोटा के कुलपति हैं। अब सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह कुलपतियों की सिफारिशी नियुक्तियां की जाती हैं। सरकार की सलाह पर राज्यपाल व कुलाधिपति द्वारा कुलपतियों की नियुक्ति की जाती है। इन नियुक्तियों में किस स्तर पर घालमेल होता रहा है, इसकी जानकारी तो नहीं है और ना ही पुख्ता तौर कुछ कहा जा सकता है, लेकिन दो दिन पहले प्रो. गुप्ता की एसीबी के हाथों हुई गिरफ्तारी से कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर शिक्षाविदों और उच्च शिक्षा की जानकारी रखने वालों के बीच में हो रही चर्चाओं में अनेक सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यदि हमारे प्रदेश की उच्च शिक्षा की ऐसी स्थिति है, तो फिर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, तो किस तरह यह संस्थान चल रहे होंगे। प्रो. रामपाल सिंह और प्रो. रामावतार गुप्ता की रिश्वतखोरी के मामले सामने आने के बाद यह सवाल भी हर किसी के मन में उठ रहा है कि क्या सरकार अब भी कोई सबक लेगी।

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