हिंदू उदार है, कट्टर नहीं, इस कारण उसे फर्क नहीं पडता कि राम मंदिर की प्राण प्रतिश्ठा में पूरे विधि विधान का पालन किया जा रहा है या नहीं, उसकी आस्था तो भगवान राम में है। एक ओर जहां प्राण प्रतिश्ठा की तैयारियां जोर षोर से चल रही है, जिसको लेकर आम आदमी में भारी उत्साह है। दूसरी ओर षंकराचार्य इस आयोजन को लेकर धार्मिक विधि विधान के हवाले से कई ऐतराज जता रहे हैं। भारी बहस छिडी हुई है। मगर उनकी आपत्तियों को नजर अंदाज किया जा रहा है। जो लोग षंकराचार्यों के तर्कों से संतुश्ट हैं, वे भी भगवान राम के प्रति आस्था के चलते इस आयोजन में जाने का इच्छुक है। असल में उसकी आस्था केवल भगवान राम में है, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पडता कि प्रतिश्ठा विधि विधान से हो रही है या नहीं। यहां तक कि षंकराचायों को भी निषाने पर लिया जा रहा है। मर्यादाएं भंग होने लगी हैं। बहरहाल कार्यक्रम बेहद कामयाब होने की संभावना है। हां, इतना जरूर है कि इतिहास में षंकराचार्यों के ऐतराज जरूर दर्ज हो जाएंगे। इसका निश्कर्श यह निकाला जा सकता है कि षंकराचार्य भले ही हिंदुओं के सर्वोच्च धार्मिक नेता हों, मगर फतवे नहीं दिया करते। अगर दे भी देंगे तो सवाल ये है कि क्या उसकी पालना होगी। यानि कि सर्वोच्च पद पर बैठे होेने के बाद भी उनका केवल औपचारिक सम्मान किया जाता है, उनकी राय को आम हिंदू मानेगा ही, यह जरूरी नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू धर्म की उदारता और लचीलेपन की वजह से ही कई पुरानी मान्यताओं व परंपराओं में षिथिलता आती जा रही है।