ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली भाजपा में तिवाड़ी बेगाने क्यों?

ghanshyam tiwariपूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमती वसुन्धरा राजे ने अपने सरकारी निवास पर राजस्थान ब्राह्मण महासभा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में प्रदेश के ब्राह्मण वोटों को आकर्षित करने के लिए एक दिलचस्प बात कह दी। वो ये कि भाजपा के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ब्राह्मण थे और भाजपा के शीर्षस्थ नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी भी ब्राह्मण ही हैं। लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भी ब्राह्मण ही हैं। भाजपा के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड में भी अधिकांश ब्राह्मण ही हैं। देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी ब्राह्मण ही हैं। इसलिये हम तो पंडितों के आशीर्वाद के बिना आगे बढ़ ही नहीं सकते।
सवाल ये उठता है कि अगर वे ब्राह्मणों का इतना ही सम्मान करती हैं और उनके आशीर्वाद के बिना आगे बढ़ ही नहीं सकतीं तो फिर अपने ही साथी घनश्याम तिवाड़ी को रूठा हुआ कैसे छोड़ रही हैं?
pressइतना वरिष्ठ ब्राह्मण नेता ही पार्टी में बेगाना और अलग-थलग क्यों है? जब से वसुंधरा व संघ लॉबी में सुलह हुई है तिवाड़ी नाराज चल रहे हैं। उन्हें मनाने की कोशिशें निचले स्तर पर जरूर हुई हैं, मगर खुद वसुंधरा ने अब तक कोई गंभीर कोशिश नहीं की है। क्या तिवाड़ी ब्राह्मण नहीं हैं? अगर हैं तो इसका मतलब ये है कि उनके वचन और कर्म में तालमेल नहीं हैं। ब्राह्मणों के सम्मान में भले ही कुछ कहें, मगर धरातल पर कितना सम्मान है, इसका जीता जागता उदाहरण हैं वरिष्ठ भाजपा नेता तिवाड़ी की नाराजगी। होना तो यह चाहिए था कि ब्राह्मण महासभा के आयोजन में ही उनका ठीक से सम्मान किया जाता। उससे भी ज्यादा अफसोसनाक है ब्राह्मण महासभा का कृत्य, जिसने अपनी समाज के वरिष्ठ नेता को हाशिये डाले जाने के बाद भी कोई ऐतराज नहीं किया। उलटे वसुंधरा का स्वागत करने पहुंच गई। ऐसा प्रतीत होता है कि तिवाड़ी को आइना दिखाने के लिए ही यह आयोजन हुआ, ताकि उन्हें संदेश दिया जाए कि वे भले ही नाराज हों, मगर उनकी समाज तो वसुंधरा के साथ है।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश भाजपा में नए तालमेल के प्रति तिवाड़ी की असहमति तभी पता लग गई थी, जबकि दिल्ली में सुलह वाले दिन वे तुरंत वहां से निजी काम के लिए चले गए। इसके बाद वसुंधरा के राजस्थान आगमन पर स्वागत करने भी नहीं गए। श्रीमती वसुंधरा के पद भार संभालने वाले दिन सहित कटारिया के नेता प्रतिपक्ष चुने जाने पर मौजूद तो रहे, मगर कटे-कटे से। कटारिया के स्वागत समारोह में उन्हें बार-बार मंच पर बुलाया गया लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिले और हाथ का इशारा कर इनकार कर दिया। बताते हैं कि इससे पहले तिवाड़ी बैठक में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन कटारिया और भूपेंद्र यादव उन्हें घर मनाने गए। इसके बाद ही तिवाड़ी यहां आने के लिए राजी हुए। उन्होंने दुबारा उप नेता बनने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया।
ब्राह्मण के मुद्दे पर एक बात और याद आती है। हाल ही एक बयान में तिवाड़ी की पीड़ा उभर आई थी, वो ये कि मैं ब्राह्मण के घर जन्मा हूं। ब्राह्मण का तो मास बेस हो ही नहीं सकता। मैं राजनीति में जरूर हूं, लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना अपनी शान के खिलाफ समझता हूं। मैं उपनेता का पद स्वीकार नहीं करूंगा। पता नहीं ब्राह्मण महासभा को उनकी ब्राह्मण होने की इस पीड़ा का अहसास है या नहीं।
एक बात और। अगर बकौल वसुंधरा भाजपा में ब्राह्मणों का इतना ही वर्चस्व है तो अन्य जातियों का क्या होगा? जिस जाति की वे बेटी हैं, जिस जाति में वे ब्याही हैं व जिस जाति की वे समधन हैं और इन संबंधों की बिना पर जिन जातियों से वोट मांगती हैं, उनका क्या होगा? तब उनके बार-बार दोहराये जाने वाले इस बयान के क्या मायने रह जाते हैं कि भाजपा छत्तीसों कौम की पार्टी है? ऐसे में अगर लोग ये कहते हैं कि भाजपा ब्राह्मण-बनियों की पार्टी है तो क्या गलत कहते हैं? सच तो ये है कि ऊंची जातियों के वर्चस्व की वजह से ही भाजपा अनुसूचित जातियों में अपनी पकड़ नहीं बना पाई है। अस्सी फीसदी हिंदुओं के इस देश में हिंदूवाद के नाम पर भाजपा को तीन-चौथाई बहुमत नहीं मिल पाता। अनुसूचित जाति के लोग भाजपा के इस कथित हिंदूवाद की वजह से ही कांग्रेस, सपा, बसपा, जनता दल आदि का रास्ता तलाशते हैं।
-तेजवानी गिरधर

1 thought on “ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली भाजपा में तिवाड़ी बेगाने क्यों?”

  1. Gujrat ke keshubhai patel jaisi halat ghanshyam ji ki hone vali hain kya pure rajasthan me braman ghansyam ji ke alava nahi. Janha tak BJP or brahmano ka saval hain to congress me bhi kai digj neta h. BJP ko sabhi jatiyo ka samarthan pane ke liye brahmano, baniyo or samantvadiyo ki party hone ki chavi ko sudharana hoga or sabhi jatiyo ki bhagidari honi chahiye vishesh kar OBC,SC or ST ke logo ke. Aaj tak rajasthan me brahmano, Baniyo or Rajputo ke alava adhyaksh bana hi nahi esa kyo.

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