फँस गये नितीश भाजपा के बुने जाल में

nitish kumarजैसी उम्मीद थी वो तेवर जनता दल (यूनाइटेड) में दिखा नहीं। दिल्ली की राष्ट्रीय कार्यकारणी की आयोजित बैठक में जद (यूनाइटेड) ने रुख बदला। नरेन्द्र मोदी को लेकर भाजपा को समय दिया गया है। पहले से अलग जद (यू) ने तेवर नरम किये हैं। वैसे राष्ट्रीय अधिवेशन से एक दिन पहले जद (यू) के तेवर कुछ ज्यादा खतरनाक हो गये थे। पर अगले दिन जद यू ठंडी थी। केसी त्यागी ने कहा कि भाजपा को पीएम पद पर उम्मीदवार चुनने के लिये छह से सात महीने का समय दिया गया है। लेकिन इस खेल के अन्दर एक और खेल है। नितीश कुमार ने इशारे-इशारे में मोदी पर हमला किया। उनके मॉडल पर टिप्पणी की। लेकिन उसका तीखा जवाब देर शाम भाजपा की तरफ आया। नरेन्द्र मोदी की आलोचनाओं को खारिज कर दिया गया। लेकिन जब समय आयेगा तब आप देखेंगे, नितीश कुमार नरेन्द्र मोदी को ही अपना नेता मानेंगे। इसके कई कारण हैं। नितीश समय के हिसाब से फैसला लेते हैं। सत्ता से दूर रहने की आदत उन्हें नहीं है। इस समय उन्होंने जरूर मोदी विरोध विरोध का गैंबल खेला। लेकिन अन्दर खाते यह विरोध उन्हें भारी पड़ेगा यह देर से पता चला। तुरन्त मोदी विरोध के स्टैण्ड से वापस नहीं लौट सकते। लेकिन इस विरोध का परिणाम यह हुआ है कि बिहार अब प्रो मोदी और एंटी मोदी के रूप में बँटने लगा है। इस विभाजन का सबसे ज्यादा नुकसान नितीश कुमार को होगा। नितीश को राज्य से सूचना अच्छी नहीं मिल रही है। ये खुद नितीश के खास लोग बता रहे हैं।

संजीव पांडेय
संजीव पांडेय

बिहार के नब्ज को जानने वाले लोगों का कहना है कि नरेन्द्र मोदी के विरोध को लेकर नितीश भारी विवाद में फँस चुके हैं। सता के मद में नितीश अंहकारी होकर नरेन्द्र मोदी का विरोध ले बैठे। इसके पीछे उनका अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा, महादलित समीकरण था। इसी आधार पर उन्होंने यह मोदी विरोध का गैंबल खेला था। लेकिन जब जमीन से सारी सच्चाई वाली रिपोर्ट आयी तो नितीश के होश उड़े हुये हैं। बिहार की जमीनी रिपोर्ट यह है कि अगर जद यू-भाजपा गठबंधन टूटा तो बिहार में सीधी लड़ाई राजद और भाजपा के बीच होगी। नितीश तीसरे नम्बर जायेंगे। गठबंधन टूटने के बाद नरेन्द्र मोदी बिहार में केन्द्र बिन्दु में आयेंगे। उनका गुजरात मॉडल बिहार के नितीश विकास मॉडल पर भारी पड़ेगा। उधर बिहार में तमाम अगड़ी जातियाँ इस समय मोदी के पक्ष में लामबन्द हो रही हैं। लेकिन नितीश के अति पिछड़े भी मोदी के पक्ष में कई जगह नजर आ रहे हैं। पिछड़ों में कहार, नाई, बिंद, मल्लाह, नोनियां जैसी कई छोटी मोटी जातियाँ अब नरेन्द्र मोदी के पक्ष में होने लगी हैं। उन्हें सुनियोजित तरीके से बताया जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी पिछड़े हैं।
नितीश के अल्पसंख्यक मतों के प्रेम ने उनके कई उस आधार को खिसकाना शुरू कर दिया है, जिसके बल पर नितीश सत्ता में आये थे। अगड़ी भूमिहार जाति अब नितीश के खिलाफ लामबन्द होती नजर आ रही है। उसका मुख्य कारण नितीश का पंचायतों में आरक्षण और कांट्रेक्टर मास्टरों का उचित वेतनमान नहीं मिलना है। बिहार में भूमिहार लगभग चार प्रतिशत हैं। इस जाति ने लालू यादव के विरोध में नितीश का साथ दिया था। ये नितीश को छोड़ वापस लालू यादव के पास नहीं जायेंगे। मजबूरी में ये भाजपा को अपना विकल्प मान कर चल रहे हैं। उधर भाजपा ने काफी चालाकी से इस स्थिति को पहचाना है। झारखंड में जहाँ भाजपा का अध्यक्ष भूमिहार बना दिया गया है, वहीं सीपी ठाकुर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा ने नितीश पर अंदरूनी वार किया है। वहीं हर लोकसभा क्षेत्र में पचास से साठ हजार वोट रखने वाला वैश्य समुदाय अब खुलकर नरेन्द्र मोदी के पक्ष में आता नजर आ रहा है। उत्तर बिहार में अच्छी संख्या रखने वाले ब्राहमण भी अब नितीश के खिलाफ लामब्द होते दिख रहे हैं। एक दूसरी अगड़ी जाति राजपूत नितीश के साथ पहले भी खुलकर नहीं थी। राजपूतों का झुकाव आज भी लालू प्रसाद यादव की तरफ ही है। 2009 में राजपूत जाति के तीन सांसद लालू यादव की पार्टी से जीते। वैसे नरेन्द्र मोदी नितीश के अति पिछड़ा कार्ड को तोड़ने के लिये जयनारायण निषाद को भाजपा में लाने का मन बना चुके हैं। जयनारायण निषाद का भाजपा में जाने का मतलब है कि उत्तरी बिहार के दो से तीन प्रतिशत नोनिया, बिंद, मल्लाह जाति का भाजपा में शिफ्ट होना।
वैसे इन परिस्थितियों में सबसे ज्यादा खुश लालू यादव हैं। उन्हें लगता है, बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जायेगा। लालू यादव की लॉटरी खुल जायेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर थोड़े से मतों से हारने वाले लालू यादव उन सीटों को हासिल करने की स्थिति में आ जायेंगे। क्योंकि इन इलाकों में भाजपा अब पहले से ज्यादा मजबूत है। जिन सीटों पर हार जीत का फासला पचास हजार मतों तक है वहाँ पर गठबंधन टूटते ही लालू यादव की लॉटरी खुल जायेगी। नितीश ने सारा गैंबल मुस्लिम वोट बैंक को लेकर खेला। बिहार के 16 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट नितीश लालू के हाथ से छीनना चाहते हैं। लेकिन इस गैंबल के बावजूद मुस्लिम नितीश के साथ आयेंगे इसकी गारंटी नहीं है। क्योंकि मुस्लिम वहीं वोट करेगा जो भाजपा को हरा सके। नितीश की कुर्मी जाति पूरे बिहार में नहीं है। कुर्मी प्रभावी रूप से बिहार के सात जिलों में हैं। जबकि यादव प्रभावी तौर पर बिहार के सारे जिलों में है। गठबंधन टूटने की स्थिति में भाजपा को हारने में लालू यादव ज्यादा सक्षम होंगे क्योंकि उनका दस प्रतिशत का यादव वोट बैंक पूरे बिहार में फैला है। नितीश पाँच से सात जिलों में मुस्लिम वोटों के साथ गठबंधन बनाकर भाजपा को हरा सकते हैं। वैसे मुस्लिम मतदाता अभी भी लालू यादव को ज्यादा विश्वनीय नेता मानते हैं। उसका मुख्य कारण नितीश का अपना रिकॉर्ड है। मुस्लिम मतदाताओं को डर है कि अभी नितीश भाजपा से अलग भी हो जायें तो कोई गारंटी नहीं कि वो चुनाव के बाद भाजपा के साथ न जायें। लेकिन लालू यादव ने भाजपा विरोध की राजनीति 1991 से बना रखी है। एलके आडवाणी के गिरफ्तारी सम्बंधी चरित्र प्रमाण पत्र के कारण लालू आज भी मुस्लिमों में नितीश से काफी आगे हैं।
नितीश कुमार की लोकप्रियता की अहम परीक्षा अगले महीने होगी। राजद सांसद उमाशंकर सिंह की मौत के बाद खाली हुयी सीट महाराजगंज में अगले महीने चुनाव है। यहाँ लालू यादव ने राजपूत बिरादरी के दबंग प्रभुनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया है। महाराजगंज की जमीनी रिपोर्ट फिलहाल नितीश के पक्ष में नहीं है। यहाँ फिलहाल प्रभुनाथ सिंह आगे हैं। नितीश कुमार की इंटेलिजेंस की सूचना भी नितीश के पक्ष में नहीं है। नितीश के काफी सोच समझ कर बिहार के शिक्षा मन्त्री पीके शाही को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है। वो भूमिहार बिरादरी के हैं। जमीनी तौर पर भूमिहार पूरी तरह से भाजपा के साथ न शिफ्ट हो जाये इसलिये पीके शाही को उम्मीदवार बनाया गया है। लेकिन नितीश कुमार के होश उड़ाने वाली एक और सूचना महाराजगंज से है। यहाँ के भाजपा कैडर नरेन्द्र मोदी के लगातार विरोध के कारण नितीश से नाराज हैं। वो नितीश को सबक सिखाने के मूड में हैं। अगर ये कैडर पलटी मार गये तो नितीश की हार महाराजगंज में तय है। उधर सरकारी महकमों में फैसले भ्रष्टाचार, बेलगाम ब्यूरोक्रेसी ने प्रदेश में न्यूट्रल मतदाताओं को पूरी तरह से नितीश से नाराज कर दिया है। हर जगह छोटे से छोटे काम के लिये अधिकारी पैसे माँग रहे हैं। यह जमीनी रिपोर्ट हर जगह से आ रही है। अगर लोकसभा में पीएम पद के लिये नितीश ने ज्यादा प्रतिष्ठा दाँव पर लगायी तो कहीं 2015 में उनकी मुख्यमन्त्री की कुर्सी न चली जाये। वैसे इसका सीधा लाभ भाजपा को हो रहा है। क्योंकि लालू यादव से नाराज जिन मतदाताओं ने नितीश को बिठाया था वो मोहभंग की स्थिति में भाजपा के पास जायेंगे क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प बचता ही नहीं।
-संजीव पांडेय
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।)
हस्तक्षेप डॉट कॉम से साभार

error: Content is protected !!