मीडिया ने मरवा दिया बेचारे सरबजीत को

sarabjeet singhमीडिया का सुबह से शाम तक सरबजीत का गुणगान करना जैसे की सरबजीत आखरी भारतीय था जो पाकिस्तान की जेल में बंद था , सरबजीत को भारत का हीरो बनाने की मीडिया की मुहीम सरबजीत को ले डूबी !
जिस देश की सरकारें गूंगी बहरी हो और कानून अँधा हो , जिस देश के मीडिया को सिर्फ अपने फायदे की पड़ी हो , उस देश में खास नागरिक बनना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है ! पिछले बीस सालों से सरबजीत से पाकिस्तान को कोई लेना देना नहीं था , लेकिन जब से मीडिया में सरबजीत का नाम आया तब से सरबजीत पाकिस्तान की आँखों में खटकने लगा , और कसाब की फांसी के बाद सरबजीत की विदाई भी तय थी , क्यूंकि हमारी अपंग सरकार कुछ करना नहीं चाहती , उनके पास समय नहीं है आम जनता के लिए , उनका सारा समय तो घोटालों की फाइलें दबाने में , सीबीआई को अपने इशारे नचाने में निकल जाता है , और थोडा बहुत समय बचता है उसमे राहुल बाबा को प्रधानमंत्री बनाने की क्लास देते है!
इधर मीडिया भी कम नहीं है अपनी TRP बढ़ाने के चक्कर में वो ऐसी न्यूज़ चला तो देता है , लेकिन उस खबर का अंत तक साथ नहीं निभाता , मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ वाली हरकतें कई बार लोगो पर भारी पड़ी है , पहले मीडिया की आंधी से अन्ना उड़ गए , फिर केजरीवाल का बल्ब फ्यूज हुआ , दामिनीं की मोमबत्तियां बुझी और इस बार तो सरबजीत को अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा !
सरबजीत की मौत की जितनी जिम्मेदार सरकार है उतना ही जिम्मेदार ब्रेकिंग न्यूज़ वाला मीडिया भी है!

सरबजीत सिंह नहीं रहे अफ़सोस तो हमें भी है क्योंकि वो संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य के नागरिक थे देश के किसी भी नागरिक की अकाल मृत्यु हो उस पर दुःख तो होता है.
सवाल कई है
जैसे वो बॉर्डर पार कर कैसे गए, क्या इंडियन इंटेलिजेंस के एजेंट थे आदि आदि ( इंडियन इंटेलिजेंस आइडेंटिटी कार्ड दे कर तो भेजती नहीं, कुछ दिन पहले सुरजीत को रिहा करा उन्होंने भी यही कहा था मुझे सरकार ने भेज सरकार थोड़े ही हाँ भरेगी पूरी दुनिया के सामने, पूरी दुनिया के देश एक दुसरे की जासूसी करते हैं ये एक अटल सत्य है).
सरबजीत सिंह को वहां की सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार दिया था हम कह सकते हैं उनकी सुप्रीम कोर्ट गन्दी हमारी अच्छी, खैर

ऐतेजाद अहमद खान
ऐतेजाद अहमद खान

पंजाब सरकार ने उनकी पुत्रियों का नौकरी का एलान किया है अरे भई पहले ही दे देते ये तो पता था इतनी आसानी से पाकिस्तान सरकार उनको रिहा नहीं करेगी, खैर सवाल बहुत है अभी काम की बात:
जैसे ही सरबजीत सिंह का निधन घोषित हुआ सब से पहली मांग थी पार्थिव शरीर को लाना और सब ने मिलकर ये मांग का समर्थन किया बीजेपी कांग्रेस दोनों ने और सब से बड़ी बात पकिस्तान की सरकार ने इसकी इजाजत दे दी और हमें क्या किया अपने ही देश की एक नागरिक अफज़ल को कानूनी प्रक्रिया के तहत फांसी दी पर न तो अंतिम समय में उसके घरवालो को उनसे मिलवाया न ही उनका पार्थिव शरीर उनको दिया गया भई ऐसा क्यों, ये दोहरा मापदंड क्यों अपने ही देश में अपने ही नागरिक के परिवार वालो के साथ के साथ ऐसा सलूक.
ये समय चिंतन का है की हम किस राह जा रहे हैं.
और कुछ कल के लिए की जब दिल्ली की कोर्ट ने 1984 के सिख कत्लेआम का फैसला सुना दिया तो सिख भाई उसे मान क्यों नहीं रहे मतलब कुछ गड़बड़ है फैसले या अनुसंधान में ये ही तो 2002 के गुजरात के दंगा पीड़ित कहते है और सबसे बड़ी बात देश की राजधानी में किसने 2000 के करीब सिक्खों का कत्ले आम किया, बड़ा गंभीर सवाल है.
-ऐतेजाद अहमद खान, अजमेर

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