सिब्बल के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाए केजरीवाल

kapil sibbalबुधवार को आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने एक बार फिर मीडिया में दस्तक दी और वोदाफोन-हचिक्सन डील के जरिए केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और पी चिदम्बरम पर हल्ला बोला। अरविन्द और प्रशांत भूषण ने सिब्बल पर आरोप लगाया कि 2007 में किये गये हचिक्सन-वोदाफोन सौदे में उनकी संदिग्ध भूमिका है। प्रमाण के तौर पर उन्होंने कुछ कागजात पेश किये जो इस बात का गवाह है कि कपिल सिब्बल का बेटा अमित सिब्बल वोदाफोन कंपनी का वकील है जिसका सीधा सा मतलब है कि बतौर संचार मंत्री और अब कानून मंत्री भी, कपिल सिब्बल लगातार वोदाफोन को फायदा पहुंचा रहे हैं।

पूरी प्रेस कांफ्रेस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि कपिल सिब्बल की भूमिका इस मामले में संदिग्ध हो सकती है। लेकिन इस संबंध में वे न तो कोई पुख्ता सबूत पेश कर पाये और न ही बहुत मजबूती से अपनी बात रख पाये। अरविन्द केजरीवाल ने बहुत संक्षेप में यह तो कहा कि वोदाफोन ने हचिक्सन के अलावा भारतीय पार्टनर एस्सार मोबाइल को 2,000 करोड़ रूपये किसी गुप्त समझौते के तहत दिया था जिसका मकसद यह रहा होगा कि एस्सार कंपनी लॉबिंग करके उस समझौते को एफआईपीबी की क्लियरेन्स दिलवाता। अगर इस आरोप को सही भी मान लें तो वित्त मंत्री तो पी चिदम्बरम थे, ऐसे में सिब्बल दोषी कैसे हो सकते हैं?

वोदाफोन ने हचिक्सन समझौते में सीधे सीधे सरकार को 11 हजार करोड़ का चूना लगाया था, टैक्स चोरी करके। उसने भारतीय कानून के एक ऐसे लूप होल का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर लिया था जिसे बाद में बतौर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने संसद में पहल करके संशोधन करवाया। अब उसी संशोधन के सहारे एक बार फिर भारत सरकार वोदाफोन से 11 हजार करोड़ से अधिक की रकम वसूल करना चाहती है और मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। यह सुप्रीम कोर्ट ही था जिसने वोदाफोन को यह कहते हुए कर राहत दे दी थी कि देश के बाहर किसी व्यावसायिक समझौते के लिए केन्द्र सरकार कर नहीं वसूल सकती भले ही उसका व्यापार क्षेत्र भारत में ही क्यों न हो। वोदाफोन ने इसी का फायदा उठाया और कैमन आइलैण्ड में समझौता कर लिया जो कि टैक्स हैवेन कन्ट्री है। उल्टे जब केन्द्र सरकार ने वोदाफोन के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कर दिलाने की बजाय सरकार को ही 2500 करोड़ रूपया वोदाफोन को अदा करने का फैसला दे दिया

हालांकि इसके बाद कानून बदला और अब तक केन्द्र सरकार ने कम से कम वोदाफोन को वह ढाई हजार करोड़ रूपया वापस नहीं किया है जो कर के रूप में वसूले थे। लेकिन वोदाफोन ने जिस आयकर कानून के जिस लूपहोल का इस्तेमाल किया था उसकी सलाह उसे अर्नेस्ट एण्ड यंग से मिली थी। इस अर्नेस्ट एण्ड यंग में उस वक्त के चीफ जस्टिस एचएस कापड़िया के बेटे होशनार कापड़िया इसके सलाहकारों में शामिल है। इसलिए मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खँडपीठ ने जब वोदाफोन के पक्ष में फैसला दिया था तो कापड़िया के ऊपर भी आरोप लगा था कि उनके बेटे के वोदाफोन कनेक्शन के कारण यह फैसला आया है। कुछ कुछ वैसा ही जैसा आज अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण आरोप लगा रहे हैं कि कपिल सिब्बल का बेटा अमित सिब्बल क्योंकि वोदाफोन के वकीलों वाले पैनल में शामिल है इसलिए सिब्बल वोदाफोन को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

हो सकता है सिब्बल ऐसा कर भी रहे हों लेकिन यह कोई ऐसा पुख्ता सबूत नहीं है कि सिब्बल को कटघरे में खड़ा किया जा सके। सिब्बल कह सकते हैं कि बतौर वकील उनका बेटा किसी भी कंपनी में अपनी सेवाएं दे सकता है। इसके अलावा न तो अरविन्द के कागजातों में कुछ ऐसा था जिसे सिब्बल के भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत कहा जा सके और न ही तर्कों में ऐसा कोई दम कि इस मुद्दे को आगे बढ़ाया जा सके। तो फिर ऐसे वक्त में उन्होंने सिब्बल के खिलाफ प्रेस कांफ्रेस क्यों की? कारण कुछ और है, जिसका संकेत प्रशांत भूषण ने दिया। प्रशांत भूषण ने कहा कि ऐसे भ्रष्ट मंत्री अगर उस मंत्री समूह में शामिल रहेंगे जिसे सीबीआई को स्वायत्तता देनी है तो भला बताइये कि वे कैसी स्वायत्ता देंगे? बात में दम है। और शायद सिब्बल को भ्रष्ट साबित करने के पीछे का मकसद भी यही है क्योंकि सिब्बल और अरविन्द प्रशांत में पुरानी अदावत है। यह सिब्बल ही थे जिन्होंने लोकपाल के मुद्दे पर इन लोगों को धोखा दिया था। ऐसे में मुद्दई के खिलाफ मुद्दा मिले तो कोई भला कैसे छोड़ सकता है? लेकिन मुद्दा सटीक न हो तो मुद्दई बच निकलने में भी कामयाब हो जाता है। विस्फोट डॉट कॉम

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