आडवाणी की वे चार मांगें जिन्हें मानने को मजबूर हुआ संघ

mohan bhagvatसमीर चौगांवकर, नागपुर आखिरकार आडवाणी ने वह आश्वासन हासिल कर लिया जिसे हासिल करने के लिए वे पिछले चार दिनों से स्वनिष्कान पर चले गये थे। मंगलवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जब यह घोषणा की कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन राव भागवत से बातचीत के बाद आडवाणी जी मान गये हैं तो उन्होंने साफ कर दिया कि अब सब कुछ सामान्य हो गया है। लेकिन क्या इसमें कोई सच्चाई है? क्या सचमुच भाजपा के भीतर सबकुछ सामान्य हो गया है? क्या आडवाणी ने बिना कुछ हासिल किये इस्तीफे के निर्णय पर समझौता करते हुए उसे वापस ले लिया है? ऐसा नहीं है। असल में आडवाणी ने भाजपा के मैदान से बाहर निकलकर एनडीए की पिच पर वह सब हासिल कर लिया है जो वे हासिल करना चाहते थे।

भारतीय जनता पार्टी के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़त और संघ द्वारा हर हाल में हिन्दुत्व के एजेण्डे पर वापसी के दबाव के बीच लालकृष्ण आडवाणी के पास राजनीतिक रूप से अपने आपको मोदी या फिर संघ से आगे रखने का एक ही जरिया है कि वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को न सिर्फ जिन्दा रखें बल्कि केन्द्र की सत्ता तक पहुंचने के लिए उसे सीढ़ी बने रहने दें। गोवा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में न जाकर, या फिर भाजपा में सभी पदों से इस्तीफा देकर लालकृष्ण आडवाणी ने जो कार्ड फेंका था, वह निरा निरर्थक नहीं गया है। मंगलवार को संघ प्रमुख मोहन राव भागवत की जिस बातचीत के बाद आडवाणी ने इस्तीफे को वापस लेने का निर्णय किया है उस बातचीत में आडवाणी ने संघ प्रमुख से अपनी उन सभी आपत्तियों पर कम से कम विचार किये जाने का आश्वासन तो पा ही लिया है।

लालकृष्ण आडवाणी द्वारा भाजपा के सभी पदों से दिये गये इस्तीफे से मंचे बंवडर को रोकने के लिए आखिरकार खुद संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत को आगे आकर आडवाणी से बात करने की पहल करनी पड़ी। आडवाणी से बातचीत के दौरान संघ प्रमुख ने आडवाणी की सभी चार मांगों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है। संघ से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्र बताते है कि संघ प्रमुख से बातचीत के दौरान आडवाणी ने अपनी नाराजगी की मुख्य वजह सुरेश सोनी की कार्यशैली को बताया है। संघ के सह सरकार्यवाह और भाजपा के साथ समन्वय का काम देख रहे सुरेश सोनी की कार्यशैली से आडवाणी खफा है। बातचीत के दौरान आडवाणी ने भागवत से साफ पूछा कि गोवा में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक मे सुरेश सोनी के आने का क्या औचित्य था?

आडवाणी ने भागवत के सामने इस बात पर भी गहरी आपत्ती दर्ज की, कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सलाह को दरकिनार कर गोवा पहुचे सोनी ने कार्यकारिणी के अंतिम दिन ही मोदी के नाम की घोषणा करने का दबाव पार्टी अध्यक्ष पर क्यो बनाया? आडवाणी यही नही रूके आडवाणी ने भागवत से दो टूक कहा कि सुरेश सोनी की कार्यशैली के चलते संघ और भाजपा मे गलतफहमी पैदा हो रही है।

आडवाणी की जो चार मांगे मानने के लिए संघ मजबूर हुआ है, वे हैं-

  • प्रंधानमंत्री पद का उम्मीदवार भाजपा एनडीए के सहयोगी दलो से चर्चा के बाद ही तय करेगी।
  • कुछ ही महीने बाद होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही पार्टी प्रंधानमत्री पद के उम्मीदवार पर फैसला करेगी।
  • भाजपा एनडीए का कुनबा बढ़ाने के लिए एक समिति बनाए औरइस समिति का प्रमुख सुषमा स्वराज को बनाया जाए।
  • भाजपा और संघ के बीच समन्वय की जिम्मेदारी निभा रहे संघ के सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी के कार्यक्षेत्र को सीमित किया जाए, या जिम्मेदारी बदल दी जाए।

जाहिर है, आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी और दबाव को भाजपा की बजाय एनडीए का मुद्दा बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। अब संघ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर किसी नाम को घोषित नहीं करवा सकेगा। कम से कम प्रधानमंत्री पद की दावेदारी भाजपा से बाहर निकलकर एनडीए का मुद्दा बन गया है, और यही आडवाणी चाहते थे, जिसमें वे कामयाब हो गये हैं।
http://visfot.com से साभार

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