भक्तों की पुकार क्यों नहीं सुनी शिवजी ने?

25_06_2013-25kedarnathनीरेंद्र नागर– उत्तराखंड में बाढ़ की तबाही ने मेरे सामने वही सवाल एक बार फिर खड़ा कर दिया है जो पिछले साल खुद से और पाठकों से भी पूछा था – भगवान क्या कुंभकर्ण का बाप है?

अभी टीवी पर केदारनाथ के मंदिर के बारे में सुना। एक लड़की जो वहां से होकर आई थी, बता रही थी कि वहां सिर्फ शिवलिंग बचा हुआ है, बाकी सारी दीवारें टूट गई हैं, पांडवों की मूर्तियां नष्ट हो गई हैं और जो भी लोग बाढ़ के वक्त थे वहां, वे सारे के सारे पानी में बह गए हैं – पता नहीं, एक भी इंसान वहां जीवित बचा या नहीं। सुनते-सुनते ही मेरी आंखों के  सामने एक सीन नाच गया – बाढ़ में लोग बहे जा रहे हैं, चीख-चिल्ला रहे हैं, भगवान को और अपने प्रियजनों को याद कर रहे हैं और उस शिवलिंग में विराजमान शिवजी बैठे-बैठे देख रहे हैं। सोचता हूं, क्या सोच रहे होंगे शिवजी अपने भक्तों को चीखते-चिल्लाते और डूबते हुए देखकर? बचपन में विष्णु और हाथी की कहानी सुनी थी कि किस तरह उस हाथी के पैर को मगरमच्छ ने जकड़ लिया था और जब उसने विष्णु को पुकारा तो विष्णु स्वर्ग से दौड़े-दौड़े चले आए और उसे बचा लिया। यह कहानी संदेश देती है कि यदि भक्त मन से भगवान को पुकारे तो वे उसे बचाने के लिए स्वर्ग से भी चले आते हैं।

अब इस कहानी के परिप्रेक्ष्य में केदारनाथ के बारे में सोचिए। यहां तो भगवान साक्षात सामने थे और उनके भक्त जो न जाने कितनी दूर-दूर से उनके दर्शनों के लिए आए थे, बाढ़ में बहे जा रहे थे। किसी को पुकारने की ज़रूरत भी नहीं थी क्योंकि सबकुछ सामने हो रहा था। फिर क्यों भगवान खामोश रहे, जड़ बने रहे, निर्लिप्त रहे? जो लोग बच गए, वे अपने बचे रहने के लिए भगवान और सेना को शुक्रिया अदा कर रहे हैं। सेना को शुक्रिया कहना तो बनता है क्योंकि सैनिकों ने जो किया, वह दिख रहा है। लेकिन भगवान को धन्यवाद क्यों? यदि भगवान को धन्यवाद कि उसने इन लोगों को बचा लिया तो क्या वे लोग भगवान को खरी-खोटी सुनाएं जिनको उसने नहीं बचाया? आखिर यह कैसा पक्षपाती भगवान है जो कुछ को बचाता है, कुछ को मारता है? मैंने इस मामले में दो-तीन लोगों से बात की। एक ने कहा, जो अच्छे लोग थे, उनको भगवान ने बचा लिया। यानी जो मरे, वे सारे के सारे बुरे लोग थे! इससे घटिया और मूर्खतापूर्ण कोई बात हो सकती है, मुझे नहीं लगता। एक और सज्जन ने इससे उलटी बात कही। उनके मुताबिक जो मरे वे बुरे नहीं, अच्छे लोग थे। इतने अच्छे कि भगवान ने उनको अपने पास बुला लिया। यदि ऐसी बात है कि भगवान को उनको अपने पास बुलाना था तो प्यार से बुलाता, नींद में सोते हुए बुलाता, पानी में डूबते हुए, चीखते-चिल्लाते हुए क्यों बुलाया? मैं यदि किसी को बुलाऊंगा तो चाहूंगा कि वह आराम से आए। यह तो नहीं चाहूंगा कि वह गर्मी में पसीना बहाते हुए, भूखा-प्यासा मेरे घर आए! एक और मोहतरमा ने तो दूर की कौड़ी लगाई। उन्होंने कहा कि गंगा और शिवजी में ठन गई है और अब आगे और भी बुरा हो सकता है। संक्षेप में किसी के पास कोई जवाब नहीं है कि भगवान अपने भक्तों के साथ ऐसी क्रूरता क्यों करता है?

यहां मैं भगवान शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं लेकिन यह सवाल भगवान, अल्लाह या गॉड सबके लिए है। पाकिस्तान में भी जब कुछ साल पहले भयंकर बाढ़ आई थी और सैकड़ों मुसलमान मारे गए थे तो वहां भी यही नज़ारा रहा होगा। वहां भी मरनेवालों ने अपने अंतिम क्षणों में अल्लाह को पुकारा होगा। लेकिन अल्लाह ने उनकी भी नहीं सुनी।

मैं तो भई नास्तिक हूं और ऐसी घटनाओं से मेरी नास्तिकता और बढ़ जाती है। लेकिन आपमें से वे पाठक जो आस्तिक हैं, आपलोग क्या सोचते हैं इस बारे में? क्या ये सवाल आपको भी परेशान करते हैं या आप इनको इग्नोर कर देते हैं?

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