विधानसभा चुनाव बतायेगे हवा का रुख किधर….. !

सतीश शर्मा
सतीश शर्मा

-सतीश शर्मा- उदयपुर। इस वर्ष के अंत में जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आएंगे तो वह बता रहे होंगे कि अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले लोकसभा चुनावों में हवा का रुख किस ओर रहेगा। इन पांच राज्यों में विधानसभा की कुल 630 सीटों के लिए होने वाले चुनावों के परिणाम 8 दिसंबर को आने हैं। मिजोरम को छोड़ दें तो बाकी चारों राज्यों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही है।

इसीलिए माना जा रहा है कि इन राज्यों के परिणाम लोकसभा चुनावों की तस्वीर का अंदाजा लगाने में सहायक होंगे। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा को अपनी सरकार बचानी है, जबकि राजस्थान व दिल्ली में कांग्रेस को। पिछले कुछ वर्षो में केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ बने माहौल की चुनौती का सामना कांग्रेस को हर राज्य में करना पड़ रहा है, चाहे वहां वह सत्ता में है या नहीं।
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में लंबे समय से सत्तारूढ़ भाजपा के सामने अंदरूनी उठापटक के अलावा एंटी इनकमबेंसी और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने की चुनौती है। इन चुनावों में युवा मतदाता पहली बार भारी संख्या में भाग लेने जा रहे हैं। इसलिए चुनाव परिणाम के बाद बहस इस पर भी होगी कि मतदाताओं ने भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किए गए नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी की दावेदारी को किस तरह लिया है। इन राज्यों में प्रमुख मुद्दों व राजनीतिक दलों के सामने चुनौतियों का जायजा लेती हिन्दुस्तान की रिपोर्ट।
जिन पर है सबकी निगाहें-
राहुल गांधी:-  युवाओं ने देश के सबसे पुराने दल में बतौर उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ताजपोशी को हाथोंहाथ लिया है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के 2012 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, जबकि लोगों को उम्मीद थी कि राहुल फैक्टर से पार्टी को बड़ा फायदा होगा। उन्होंने दागी सांसदों वाले विधेयक को वापस करवा कर देश के चुनाव को साफ-सुथरा करवाने की दिशा में सराहनीय कदम उठाया है।
नरेंद्र मोदी:-  पिछले तीन बार से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं मोदी। गुजरात में भाजपा को लगातार तीन बार जीत दिलवाने के बाद पार्टी ने न सिर्फ लोकसभा चुनाव प्रचार की कमान उनके हाथ में सौंप दी है, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। उनकी आर्थिक नीति ने गुजरात में व्यवसाय के पक्ष में माहौल बनाया है। उनके प्रशंसकों का यह विश्वास है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में वह सबसे अच्छे प्रधानमंत्री साबित होंगे। हां, उनके कट्टर हिन्दुत्व की छवि उनकी सहयोगी पार्टियों के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा कर सकती है।
राजस्थान में मुख्य चुनावी मुद्दे-
मुद्रास्फीति: खाद्य पदार्थ, पेट्रोल और दूसरे जरूरी सामान के बढ़े मूल्य राज्य में अहम भूमिका अदा करेंगे।
विधि-व्यवस्था: राज्य में अपराध बढ़े हैं, खासकर महिलाओं के खिलाफ। हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, सभी मामले में हाल में बढ़ोत्तरी हुई है। इस चुनाव में महिलाओं की सुरक्षा का मामला बड़ा मुद्दा बनेगा।
सांप्रदायिक हिंसा: सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। गोपालगढ़ हिंसा की आग में झुलस रहा है, जहां पुलिस फायरिंग में 10 मुसलमान मारे गए, भीलवाड़ा में मस्जिद तोड़ दी गई, उदयपुर, टोंक, अजमेर और भीलवाड़ा में सांप्रदायिक झड़पें हुईं। ये मुद्दा भी मतदाताओं को प्रभावित करेगा।
भ्रष्टाचार : कई मामलों में सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता मिली। एंटी करप्शन ब्यूरो ने कई आरोपियों को पकड़ा।
सार्वजनिक सेवा : पिछले पांच सालों के दौरान कर्मचारियों की कमी के वजह से स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाएं बाधित हुईं। बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किये तबादले किये गए। ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना की कमी तथा योग्य शिक्षकों और चिकित्सकों के अभाव में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बुरी स्थिति रही।
अहम नेता- 
अशोक गहलोत: राज्य में बतौर मुख्यमंत्री उनकी यह दूसरी पारी है। गहलौत 1970 में राजनीति में आए और 1974 में एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 62 साल के गहलौत की ख्याति उनकी राजनीतिक योग्यता और अच्छे मैनेजमेंट के लिए है।
वसुंधरा राजे सिंधिया: 60 साल की वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा का चेहरा हैं और उसकी अकेली जननेता हैं। वह वर्तमान में भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष हैं और इस चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। वह एनडीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं।
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