मुख्तार अंसारी बनारस के मैदान से क्यों हटे?

mukhtar ansariआशंका के मुताबिक जंगे बनारस के मैदान से एक अप्रत्याशित ऐलान करते हुए मुख्तार अंसारी ने अपनी दावेदारी वापस ले ली है। बीते लोकसभा चुनाव में बनारस से दावेदारी करनेवाले मुख्तार अंसारी के भाई और पूर्व सांसद अफजाल अंसारी ने एक बयान जारी करके कहा है कि मुख्तार अंसारी बनारस से चुनाव नहीं लड़ेंगे। बनारस के करीब तीन लाख मतदाताओं में मजबूत पकड़ रखनेवाले मुख्तार अंसारी के हटने से बनारस की चतुष्कोणीय जंग अब त्रिकोणीय जंग में तब्दील हो गई है। मुख्तार अंसारी के हटने के बाद अब अजय राय, अरविन्द केजरीवाल और नरेन्द्र मोदी ऐसे तीन दावेदार हैं जो मैदान में बचे हैं। लेकिन मुख्तार की नाम वापसी के ऐलान के बाद बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मुख्तार ने अपनी दावेदारी क्यों वापस ली?

खबर है कि मुख्तार अंसारी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के दबाव में अपना नाम वापस लिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं की कोशिश के कारण ही मुख्तार अंसारी ने अपना नाम वापस लिया है। इस खबर को इस बात से भी बल मिलता है कि मुख्तार अंसारी की क्षेत्रीय पार्टी न सिर्फ बनारस से अपनी दावेदारी वापस ले रही है बल्कि आजमगढ़ से भी अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारेगी जहां से सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव मैदान में हैं।

बनारस लोकसभा सीट में तीन लाख मुस्लिम मतदाता हैं, और अगर मुख्तार अंसारी मैदान में उतरते तो मुस्लिम मतों का तेजी से ध्रुवीकरण होता जिसका सीधा फायदा बीजेपी के नरेन्द्र मोदी को मिलता। लेकिन अब मुख्तार के मैदान से हटने के बाद मुस्लिम मत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच विभक्त होंगे। मुख्तार के मैदान से हटने से अजय राय की स्थिति भी मजबूत हो सकती है और इसका फायदा केजरीवाल को भी मिल सकता है। हालांकि जैसी खबरें मिल रही हैं उसके मुताबिक कौमी एकता दल के कुछ नेता कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद होना चाहते हैं जबकि बनारस में मुसलमानों का एक वर्ग केजरीवाल को अपना समर्थन दे रहा है। अब यह तो आनेवाला वक्त बताएगा कि मुख्तार की गैरमौजूदगी का असली फायदा किसे मिला।

असल में बीते 27 मार्च को अफजाल अंसारी के गाजीपुर स्थित आवास पर मुख्तार को चुनाव लड़ाने के मसले पर दल के नेताओं को एक बैठक हुई थी, जिसमें दो तरह की राय सामने आई। एक पक्ष का कहना था कि मुख्तार को हर हाल में वाराणसी से भी लड़ना चाहिए तो कुछ लोग इस बात के पक्षधर थे कि बनारस से नहीं लड़ना चाहिए। ऐसे लोगों का तर्क था कि एक तो सेक्युलर मतदाताओं के बंटने के आधार पर मोदी को मदद करने की तोहमत लगेगी, दूसरा ध्रुवीकरण की भी स्थितियां पैदा हो सकती हैं, जो हर नजर में मोदी को लाभ पहुंचाने वाली होंगी। लिहाजा तय किया गया कि मुख्तार को लड़ाने को लेकर जब दल में दो तरह की राय है तो सेक्युलर मतदाताओं और खासकर मुसलमानों में भी भ्रम की स्थिति होगी, ऐसे में मुख्तार को लड़ाने के फैसले पर पुनर्विचार को मजबूर होना पड़ा होगा।

अब मुख्तार अंसारी घोसी लोकसभा सीट से मैदान में उतर सकते हैं, जिसका विधिवत ऐलान 15 अप्रैल को किया जा सकता है। http://visfot.com

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