कांग्रेस ने जारी किया अपना घोषणा पत्र

congressसोशल मीडिया पर मौजदूगी हो कि जमीनी हकीकत से सामना इस बार आम चुनाव में कांग्रेस हर जगह थोड़ा देर से ही आगे बढ़ रही है, लेकिन एक काम ऐसा था जिसमें कांग्रेस ने बाजी मार ली। बाकी दलों के मुकाबले उसने बहुत पहले अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। बड़े दिनों बाद नजर आये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजदूगी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा जारी किये गये कांग्रेस मेनिफेस्टो (कांग्रेस घोषणापत्र) का हर काम की ही तरह बड़ा बेतुका सा नामकरण किया गया है- आपकी आवाज, हमारा संकल्प। क्या मतलब है इसका? कौन सा राजनीतिक संदेश निहित है इस घोषणापत्र में? यह तो विद्वान कांग्रेसी ही जानते होंगे लेकिन कम से कम घोषणापत्र का नामकरण कांग्रेस के लिए कोई घोषणा नहीं कर रहा है।

बीते दस सालों से सत्ता में बैठी कांग्रेस पर सत्ता का असर होना स्वाभाविक है। इस घोषणापत्र में भी सत्ता का असर साफ दिख रहा है। एक राजनीतिक दल के बतौर सत्ता में रहते हुए जब कोई पार्टी अपना घोषणापत्र जारी करती है तो उसके सामने बड़े दुविधा की स्थिति होती है। वह नये वादे नहीं कर पाती क्योंकि वह खुद सत्ताधीश है और उसने जो काम किया है इसके बारे में जनता बहुत जानना नहीं चाहती है। दुनिया का तो पता नहीं लेकिन भारत में किये गये कामों की बजाय होनेवाले कामों को राजनीतिक महत्व ज्यादा मिलता है। इसलिए ऐन चुनाव से पहले वादों की भरमार लग जाती है। विपक्ष सत्ता तंत्र की नाकामियों को मुद्दा बनाता है तो जनता उसे बड़े चाव से सुनती गुनती है। इस लिहाज से किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता में रहते हुए जब घोषणापत्र जारी करना होता है तो उसे जाहिर तौर पर दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस के घोषणापत्र के नामकरण में ही वह संकट साफ दिख रहा है।

इस संकट को भीतर कुछ पाटने की जरूर कोशिश की गई है लेकिन बात कुछ ज्यादा ही सरकारी हो गई है। सरकार में रहनेवाले दलों का सबसे बड़ा संकट यह होता है वे अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं। बीते दो दशक का इतिहास उठाकर देख लीजिए सरकार की उपलब्धियां बड़ी बेतुकी सी नजर आयेंगी। वे बेतुकी उपलब्धियां कौन सी होती है? मसलन सरकार में रहनेवाले हर दल के घोषणापत्र में एक उपलब्धि जरूर गिनाई जाती है कि सरकार में रहते हुए उन्होंने कितना विदेशी निवेश आकर्षित किया? अब आप जरा सर्चलाइट लेकर खोज आइये, कितने लोग मिलते हैं जो ऐसी उपलब्धियों पर कान धरते हैं? विदेशी निवेश जैसे सरकारी जमुले दिल्ली के दलाल तंत्र, कारपोरेट मीडिया और बाबूशाही को खुश करने के लिए तो ठीक है लेकिन जनता को ऐसे विदेशी निवेश से कोई मतलब ही नहीं होता। उन्हें जरूरत भी नहीं होता। देश में कितना विदेशी निवेश आता है इसका क्या वे अचार डालेंगे, कि मुरब्बा बनाएंगे? उनकी चिंता सिर्फ इतनी होती है कि शाम को घर में कितना पैसा आ रहा है और घर का चूल्हा जलाने के लिए दिल जलाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। लेकिन तमाशा देखिए। कांग्रेस घोषणापत्र की पहली उपलब्धि यही है कि उनकी सरकार के दौरान उन्होंने पैसे की कमी को पूरा करने के लिए एफडीआई, एफआईआई और ईसीबी की आवक बढ़ाई? अब जरा सर्वे करवा लीजिए और पता करिए कि कितने लोग एफडीआई, एफसीआई और ईसीबी की मतलब भी जानते हैं? और तिस पर वादा यह कि अगर अगली बार सरकार बनी तो इस विदेशी निवेश में कमी नहीं आने देंगे?

इसी तरह ग्रोथ रेट का वादा, सरकारी नीतियों और नियमों की उपलब्धियों का बखान करते हुए कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र पूरा कर दिया है। जो उपलब्धियां गिनाई है उसमें बताया गया है कि कैसे किसानों की दशा बिल्कुल सुधर गई है। कैसे नौजवानों, महिलाओं और बच्चों को पूरी तरह से यूपीए सरकार का टानिक पिलाकर एम्पावर कर दिया गया है। देश के शहर तो चमके ही हैं ग्रामीण इलाकों में भी चहुओंर राम राज पसरा है। इसी तरह और भी मुद्दों पर और भी उपलब्धियां और फिर से सत्ता पाने के लिए वादे भी। अगर कांग्रेस के सरकारी घोषणापत्र को शत प्रतिशत स्वीकार कर लिया जो फिर नरेन्द्र मोदी नाहक कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते घूम रहे हैं। और नाहक ही उस नारे में मोदी जिन्दाबाद के नारे भी लग रहे हैं। यह कैसे हो सकता है कि एक तरफ कांग्रेस दस सालों में इतनी सफल रही हो और लोककल्याणकारी कामों की झड़ी लगा दी हो और दूसरी तरफ कांग्रेस मुक्त भारत का नारादेनेवाले मोदी के नाम के साथ जिन्दाबाद का नारा भी लग रहा हो? मतलब साफ है कि कांग्रेस ने दस सालों में कुछ खास किया नहीं है लेकिन जो किया है उसे जनता को वह बताने की कला भी नहीं आती।

याद करिए पिछला आम चुनाव। ठीक आमचुनाव से पहले कांग्रेस ने अमेरिका से परमाणु बिजली समझौता कर लिया था। कांग्रेस के अदने से कार्यकर्ता से भी बात करते तो वह तपाक से कहता कि कांग्रेस ने बहुत काम किया है। अब परमाणु बम से बिजली बनेगी और पूरे देश में रोशनी फैल जाएगी। अगर कांग्रेस का कार्यकर्ता पांच साल पुरानी अपनी ही सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि को इस तरह से सुनाता था तो इसमें उसका शायद कोई दोष नहीं था। दोष उस राजनीतिक दल के उस संवाद तंत्र का होता है जो बहुत सरकारी तरीके से राजनीतिक संवाद करने लगता है। जो राजनीति से सत्ता की राजनीति करते हैं उन्हें भी पता होता है कि आखिरकार जनता वह भाषा नहीं समझती जिस भाषा में वे अपनी सरकारी उपलब्धि गिनाते हैं। भारत में लोकतंत्र यूरोप से आया जरूर है लेकिन काम यूरोप की तर्ज पर नहीं करता। कम से कम जनता ने इस वेस्ट मिनिस्टर डेमोक्रेसी मॉडल का इतना भारतीयकरण तो कर ही लिया है कि चुनाव के दौरान वह सभी हवा हवाई नेताओं और पार्टियों को जमीन के मुद्दों पर उतरने के लिए मजबूर कर देती है। और वो मुद्दे कोई टनों कागज काटकर तैयार किये गये रिसच्र से नहीं पैदा होते हैं। वे मुद्दे जनता के बीच जाकर मिलते हैं और समझदार राजनीतिज्ञ को उन्हीं मुद्दों को माद्दे के साथ आगे बढ़ाना पड़ता है। इस लिहाज से अगर कांग्रेस का घोषणापत्र देखें तो इसमें कहने सुनने के लिए कुछ है ही नहीं। पार्टी का घोषणापत्र और पार्टी का नारा दोनों ही इस घोषणापत्र से नदारद हैं। http://visfot.com

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