प्लेसमेंट एजेंसी कर्मचारियों की सरकार की तरफ नजरें

प्रदेश सरकार द्वारा संविदाकर्मियों के मानदेय में इस साल 25% बढ़ोत्तरी करने की घोषणा ऊट के मुह में जीरे के सामान हे कई सालो बाद इनके मानदेय में मामूली वृद्धि हो पाई है। हालाकि इस वृद्धि के बाद प्लेसमेंट एजेंसी कर्मचारियों ने सरकार की तरफ आशान्वित नजरें जमा रखी हैं शायद सरकार इन्हें सरकारी विभाग में समायोजित कर दे !
कई सालो से सरकारी विभाग में काम करने वाले इन कार्मिकों की हालत यह है कि न प्लेसमेंट एजेंसी इन से सरोकार रखती हे और न ही सरकार। प्लेसमेंट एजेंसी बदलती रहती है लेकिन कर्मचारी वहीं रहते हैं। अजमेर जिले सहित प्रदेश में ऐसे करीब २८०० कर्मचारी हैं जो सरकारी कर्मचारी बनने की आशा लगाये हुए हैं।
सर्व शिक्षा अभियान में पिछले १० बरसो से विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसियों के द्वारा सूचना तंत्र प्रभारी, कनिष्ठ सूचना तंत्र प्रभारी, डाटा एंट्री ऑपरेटर्स, कम्प्यूटर्स ऑपरेटर्स, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में लगे शिक्षक, लिपिक और रात्रि सुरक्षा कर्मी,संदर्भ शिक्षक केयर वियर के अलावा अन्य कई पदों का काम प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा लगाए गए कर्मचारी संभाल रहे हैं। शिक्षा विभाग की सूचनाएं, आंकड़ों को एकत्र करना, फीडिंग, विश्लेषण, चाइल्ड ट्रेकिंग सर्वे, मासिक प्रगति रिपोर्ट, वार्षिक योजना व बजट निर्माण कार्य इनके द्वारा किया जा रहा है।
विकलांग व बधिर बच्चों को शिक्षित करने व उन्हें सुविधाएं एवं संबंधित उपकरण दिलवाने का काम भी इन्हीं कर्मचारियो द्वारा किया जा रहा है। सरकारी कर्मचारियो की तरह ही काम करते हुए इन्हें लम्बा समय बीत गया है लेकिन सरकार के लिए कार्य करते हुए भी न प्लेसमेंट एजेंसी इन से सरोकार रखती हे और न ही सरकार इन्हे अपनाती हें। अकेले सर्व शिक्षा अभियान में राज्य के करीब ५२० कर्मचारी काम पर लगे हुए हैं।
अजमेर जिले में अभी ३२४० विद्यालय प्रारंभिक शिक्षा के अधीन संचालित है। इनमें १९००० शिक्षक कार्यरत है। जिनका रिकार्ड संधारण करने के लिए पर्याप्त कर्मचारी और तकनीकी संसाधन उपलब्ध नहीं है साथ ही सुचना के अधिकार की अनुपालना करवाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में लगे प्लेसमेंट कर्मचारी के मानदेय में कई सालो से कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। प्लेसमेंट कर्मचारी रात-दिन विद्यालय में ठहरकर गरीब तबके की बालिकाओं को पढ़ा-लिखाकर सरकार की बालिका शिक्षा के उद्देश्य का पूरा कर रहा है।जबकि इन विद्यालय की प्लेसमेंट कर्मचरियो का कहना हे कि हमें कोई साप्ताहिक अबकाश नहीं दिया जाता , साल में केवल ११ अबकाश ही स्वीकृत हें!जिसे किसी भी हालत में न्यायोचित नहीं कहा जा सकता हें! जबकि इस बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियो का कहना हें हमें इस बारे में पूरी जानकारी नहीं हें हम मालूम कर के बता सकते हें,!
इन आवासीय बालिका विद्यालय की शिक्षिका, जो अपने घर परिवार से दूर रह कर दिन रात इसी आवासीय बालिका विद्यालय में रह कर विद्यालय समय के पश्चात् छात्राओं के अभ्यास.होम वर्क करवाती हें !
कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय जो की ग्रामीण इलाके में बने हें जहा आवागमन के साधन पर्याप्त नहीं हें ऐसे में कई इन आवासीय बालिका विद्यालय में कम वेतन के कारण कोई रात्रि सुरक्षा कर्मी विद्यालय में काम करने के लिए नहीं मिल रहे हें! इन आवासीय बालिका विद्यालय में करीब ५० से १०० छात्रा रहती हे, कभी भी रात्रि में बीमारी या अन्य किसी कोई विपदा आने पर इन महिला कर्मियों को कितनी परेशानी हो सकती हे,यह शिक्षा विभाग औरप्लेसमेंट एजेंसी को सोचना चहिए और यह सुनिच्चित करना चहिए क़ि किसी भी आवासीय विद्यालय में रात्रि में सुरक्षा कर्मी अनिवार्य रहे! इनके अलावा कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय सहित अन्य कार्यालयों में करीब २८०० कर्मचारी लगे हुए है। इन कर्मचारी को विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसियों के द्वारा वेतन मिलता है। वेतन भी कार्य के अनुरूप काफी कम है। सरकारी महकमों द्वारा प्रति वर्ष प्लेसमेंट एजेंसियों से निविदाएं आमंत्रित की जाती है। इन्ही एजेंसियों के माध्यम से कर्मचारीयो को कार्यालय में लगाया जाता है। प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्मचारी मानदेय कम मिलने के साथ-साथ भविष्य भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
सरकार द्वारा प्रदेश में सुचना का अधिकार लागु करने के बाद प्रारंभिक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालयों में तकनीकी योग्यताधारी कर्मचारीयो की आवश्यकता महसूस होने लग गई है। ऐसे में प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्मचारी का मानना है कि यदि सरकार जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालयों में सूचना तंत्र प्रभारी, कम्प्यूटर्स ऑपरेटर सहित अन्य पद सृजित कर इन अनुभवी प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्मचारी को समायोजित कर दिया जाएं तो इन कार्मिकों का भविष्य सुनिश्चित हो जाएगा !
इस बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियो का कहना हे सरकार के दिशा निर्देश के तहत इन कार्मिकों को प्लेसमेंट एजेंसियों के जरिए ही लिया जाता है। सरकारी कार्यालयों में समायोजित करने व मानदेय बढ़ोत्तरी का निर्णय सरकार को करना है। ऐसे कार्मिकों के ज्ञापन को सरकार के पास भिजवा सकते है

-अशोक लोढा

[लेखक हुक्मनामा के ब्यूरो चीफ हैं और नसीराबाद में रहते हैं]

2 thoughts on “प्लेसमेंट एजेंसी कर्मचारियों की सरकार की तरफ नजरें”

  1. सरकार खुद शोषण कर रही है जबकि संविधान के आर्टिकल ३२ में शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया है और उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है की सामान काम के लिए सामान वेतन होना चाहिए. सरकार का कर्तव्य है की वो रोज़गार के अवसर पैदा करे नहीं तो कहे की सरकार.

  2. शिक्षा विभाग के अधिकारी का नाम लिखे, जिस अधिकारी को इतना भी मालूम नहीं हे कि कस्तूरबा आवासीय बालिका विधालय में संबिदा कर्मी शिक्षिकाओ को साप्ताहिक अबकाश दिया जाता हे या नहीं

Comments are closed.

error: Content is protected !!