राजस्थान: जाति, धर्म और लोकसभा चुनाव, 2014

प्रो. एस.एन. सिंह
प्रो. एस.एन. सिंह

राजस्थान में पहली बार महिला सांसद 1962 में तीसरी लोक सभा में पहुँची थी। 1962 के इस चुनाव में 6 महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में थी। इसी तरह 2009 के चुनाव में 31 महिला प्रत्याशियों में से मात्र 3 निर्वाचित हुई थी। इनमें से दो केन्द्रीय मंत्री बनी। महिलाओं की संख्या प्रत्याशियों के रूप में भले ही कम रहती है लेकिन मतदान में वे पुरुषों से कभी पीछे नहीं रहती है। गत दिसम्बर 2013 के विधान सभा चुनाव में महिला मतदाताओं के मतदान का प्रतिशत आदिवासी क्षेत्र में पुरुषों से ज्यादा था। राजस्थान में कुल 47,948 मतदान केन्द्र है। चुनाव में कुल 65000 ई.वी.एम. का उपयोग होगा। राज्य के 99.7 प्रतिशत मतदाताओं के पास मतदाता पहचान पत्र है। राज्य के जयपुर शहर में 19.28 लाख मतदाता है जो राज्य में सर्वाधिक है। संवेदनशील मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं। पूर्वी राजस्थान की पाँच लोकसभा सीटों को संवेदनशील माना गया। अतः इस स्थानों पर चुनाव संवेदनशीलता के कारण दूसरे दौर में अर्थात 24 अप्रैल को रखा गया है।
राजस्थान की कुल आबादी 6.85 करोड़ है इसमें 4.26 करोड़ मतदाता है। जातीय आधार पर 26,39,17 और 13 प्रतिशत क्रमशः उच्च जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति है। उच्च जाति में ब्राह्मण और राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में जाट, माली, गूजर, अनुसूचित जाति में बलाई और रैगर एवं अनुसूचित जनजाति में मीणा और भील प्रभावशाली जातियाँ है ये सभी जातियाँ मतदान व्यवहार को प्रभावित करती हैं। सभी राजनीतिक दलों के नेता और प्रत्याशी इन्हें जाति नेताओं और जातीय सभाओं का आयोजन करवा कर अपने पक्ष में मतदान करवाने का प्रयास करते है।

जाटों का मतदान व्यवहार: – राजस्थान की कुल आबादी में जाटों का प्रतिशत अन्य जातियों से ज्यादा (12 प्रतिशत) है। लेकिन विधान एवं लोक सभा में निर्वाचित प्रतिनिधियों में इनकी संख्या हमेशा लगभग 20 प्रतिशत सन् 1952 से रहता आया है। जाट कृषक जाति है और राजस्थान जोधपुर, बीकानेर, भरतपुर और अजमेर संभाग में इनका राजनीतिक दबदबा बना रहता है। राजस्थान की राजनीति में अधिक संघर्ष जाटों और राजपूत के बीच में रहा है। जाट नेताओं के द्वारा राजपूतों को ”कांग्रेस“ में प्रवेश देने के कारण राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास को मुख्यमंत्री का पद 1954 में गवाना पड़ा था। इसके बाद से ही ”राजपूत“ प्रायः राम राज्य परिषद, स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ और 1980 से भारतीय जनता पार्टी के साथ रहे है। राजनीति में चतुर सुजान राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत कई बार जाट के सामने जाट यानि यदि कांग्रेस पार्टी जाट उम्मीदवार खड़ा करती तो भा.ज.पा. भी जाट उम्मीदवार को ही मैदान में उतारती। इसके बावजूद ज्यादातर मतदाता कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को ही मत देते थे। इस बार वसुन्धरा राजे ने भी जाट पर ही ज्यादा भरोसा जताया है। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का पिछड़ी जाति के होने से जाट सहित अन्य पिछड़ी जाति जो राज्य में 50 प्रतिशत है का झुकाव भा.ज.पा. उम्मीदवार को जिताने के लिए ही प्रयासरत दिखाई देता है। दूसरी जातियों के विरोध के बाद भी भा.ज.पा. 25 में से 7 जाटों को लोक सभा का टिकट दिया है। प्रायः वसुन्धरा राजे ने भी जाट के सामने जाट उम्मीदवार को उतारा है। वसुन्धरा राजे स्वयं राजपूत राज घराने से सम्बंधित है परन्तु जाट राजघराना ”धौलपुर“ की बहु भी है। उनका सांसद पुत्र दुष्यन्त सिंह जाट नेताओं और खासकर युवा नेताओं से लगातार संपर्क बनाये रखता है। अतः यदि जाटों का रूझान गत विधान सभा चुनाव के तहत भा.ज.पा. के पक्ष में रहा तो चुनाव में भा.ज.पा. करीब 20 सीटों पर विजय प्राप्त कर सकती है। यों तो जाटों को हमेशा ही विधान सभा, लोक सभा और पंचायती राज संस्थाओं में अधिकाधिक स्थानों पर उम्मीदवार बनाया जाता है और जीत भी हासिल कर लेते है। लेकिन प्रायः यह देखा गया है कि चुनाव के बाद सभी सरकारों के महत्वपूर्ण पदों पर जहाँ राजनेताओं द्वारा नियुक्ति दी जाती है वंचित रहते हैं। पूर्ववर्त्ती अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में जाटों को महत्वपूर्ण विभागों और पदों पर नियुक्ति नहीं दी गयी। कई महत्वूपर्ण जाट नेता सलाखों के पीछे पहुँचा दिए गए। आजादी के बाद से राजस्थान में कभी जाट मुख्यमंत्री नहीं बना है। लेकिन प्रतिद्विन्द्वी जाति राजपूत के दो मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत एवं वसुन्धरा राजे अवश्य इस पद पर आसीन हुए। कांग्रेस पार्टी में एक चौथाई विधायक जाट होने के बावजूद भी कांग्रेस नेतृत्व ने किसी ”जाट“ नेता को मौका नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को विधान सभा चुनाव 2003 एवं 2013 में पराजित होना पड़ा। राज्य में भा.ज.पा. की सरकार बनने से लोकसभा चुनावों जो बाद में हुए भा.ज.पा. ही बाजी मारी।
राजस्थान में मुस्लिम वोट बैंक प्रभावकारी होते हुए भी कहीं भी केवल अपने वोट के आधार पर सांसद निर्वाचित करवाने की स्थिति में नहीं है। राजस्थान में मुसलमानों में-मेव, कायमखानी, दाउदी बोहरा, खानजादे, सिन्धी आदि अपनी-अपनी अलग-अलग पहचान रखते है। इनमें शेखावाटी के जिलों में कायमखानी और मेवात तथा मत्स्य में मेव रहते है। जबकि उदयपुर में दाउदी बोहरा हैं। मेव, खानजादे और कायमखानी और दाउदी बोहरा अपनी सांस्कृतिक पहचान के कारण अधिक कट्टर नहीं है। यही हाल बाडमेर के सिन्धी मुसलमानों का है। राजस्थान 1952-1991 तक केवल मात्र एक मुस्लिम नेता कांग्रेस से लोकसभा सदस्य चुना गया। वह राज्यमंत्री कैप्टन अयूबखान रहे। इसके विपरीत पूर्व राज्यपाल मोहम्मद उस्मान आरिफ, पूर्व कांग्रेस नेता सादिक अली और समाजवादी जनता पार्टी से कांग्रेस में आये चौधरी तैयब हुसैन हारते रहे। कांग्रेस में नवाब लुहारू, ए. अहमद, पूर्व मुख्यमंत्री प्यारे मियां बरकतउल्ला खान, अहमदबख्श सिन्धी, तकीउद्दीन शाह और मोहम्मद उस्मान आरिफ ने राज्य के मुसलमानों को कांग्रेस पार्टी से जोड़ा।
राजस्थान में कांग्रेस का दमदार मुस्लिम नेतृत्व नहीं होने से पार्टी का जनाधार घटा है। प्रदेश में अल्पसंख्यकों के थोक समर्थन से सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के द्वारा मुस्लिम नेताओं को हाशिए पर धकेला गया है। कांग्रेस में मुस्लिमों के प्रति बढ़ती अनदेखी का फायदा भाजपा उठाती है। प्रदेश में मुस्लिम तबके में भाजपा अब पहले जैसी अछूत नहीं रही है। इस बार तो भाजपा के दो मुसलिम विधायक भी हैं। इसके साथ ही भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा भी इन दिनों काफी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इसके विपरीत अल्पसंख्यक तबके में गहरी पैठ रखने वाली कांग्रेस ने किसी दमदार मुस्लिम नेता को उभरने नहीं दिया है। कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार में मुस्लिम कोटे से मंत्री बने हुए नेताओं की अल्पसंख्यक तबके पर कोई पकड़ नहीं है। उनकी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री एमामुद्दीन अहमद उर्फ दुर्रू मियां तो हमेशा से ही अल्पसंख्यक तबके से दूरी बनाकर रखते थे। कांग्रेस ने राज्यसभा में पिछली बार अश्क अली टाँक को भेज कर सिर्फ खानापूरी की रस्म ही अदा की उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गयी। केन्द्र सरकार में प्रदेश से पाँच मंत्री है जो हर प्रमुख जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन मुस्लिम नुमाइंदगी शून्यके बराबर है। इससे भी यह लगता है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।
कांग्रेस को नब्बे फीसदी समर्थन देने वाले मुस्लिम तबके की केन्द्र सरकार में कोई जगह नहीं बन पा रही है। प्रदेश के मुस्लिम तबके में कुछ घटनाओं यथा – खासकर गोपालगढ़ और सूरबाल की घटनाओं के घाव अभी भी अल्पसंख्यकों के दिमाग में है। गोपालगढ़ में तो पुलिस की गोली से नौ अल्पसंख्यकों की मौत हो गई थी। सवाई माधोपुर के सूरवाल में मुस्लिम इंस्पेक्टर को जिन्दा जला दिया गया था। इसके अलावा अजमेर जिले के सरवाड की घटना से भी अल्पसंख्यक तबके की भावनाएँ आहत हुई थी। भीलवाड़ा की कालिंदरी मस्जिद को बेचने और ढहाने की घटना से भी मुस्लिम वर्ग अशोक गहलोत सरकार से रूपट होकर अपने आपको आहत महसूस किया।
कांग्रसे में मुस्लिम नेतृत्व नहीं उभरने से ही भाजपा मुसलमानों में पैर पसारने में सफल हुई। प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में मुस्लिम वर्ग का चुनावी रूझान अलग है। शेखावाटी के कायमखानी मुसलमानों में भाजपा की पैठ बढ़ने लगी है। इस इलाके में भाजपा सरकार में मंत्री युनूस खां और कई कायमखानी नेताओं ने खुलकर भाजपा का जनाधार बढ़ाया। इसके अलावा झालावाड़ के साथ ही बारां और कुछ हद तक कोटा जिले के मुसलमानों पर बसुंधरा राजे का अ्रच्छा प्रभाव है। प्रदेश भाजपा की रणनीति से विधान सभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। इसमें से दो चुनाव जीते और एक वसुन्धरा राजे के सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाये गये।
राजस्थान में मुस्लिम आबादी करीब 9 प्रतिशत है। नागौर, सीकर, चुरू, जयपुर, भरतपुर और टौंक जिले में इनकी 10 प्रतिशत है। विधान सभा चुनाव 2013 में कांग्रेस पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक निर्वाचित नहीं हुआ। 200 विधान सभा सीट में भा.ज.पा. ने केवल 4 मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाया। इसमें से दो निर्वाचित हुए। लोकसभा चुनाव में भा.ज.पा. ने किसी भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया। कांग्रस पार्टी के भी मात्र एक उम्मीदवार मुस्लिम है। क्रिकेटर हैदराबाद निवासी अजहररूद्दीन टोंक सवाईमाधोपुर क्षेत्र से उम्मीदवार है। मुस्लिम आबादी एवं कांग्रेस पार्टी को एक मुश्त वोट देने के हिसाब से दो मुस्लिम उम्मीदवार होना चाहिए था। नागौर लोक सभा क्षेत्र से भा.ज.पा. के दो मुस्लिम विधायक हबीकर्रहमान अशरफी और युनुस खान निर्वाचित हुए। युनूस खान अभी भा.ज.पा. सरकार में महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री है। लेकिन लोक सभा चुनाव में भा.ज.पा. उम्मीदवार सी.आर. चौधरी के पक्ष में मतदाताओं में रूझान पैदा नहीं कर पा रहे है। मुस्लिम मतदाता नरेन्द्र मोदी के 2002 में हुए गुजरात दंगों में तथाकथित भूमिका का विरोध कर रहे हैँ। वैसे मुस्लिम मतदाता किसी गैर मुस्लिम भा.ज.पा. उम्मीदवार को वोट नहीं देते है। ऐसा मैंने स्वयं चुनावी सर्वेक्षण में अनुभव किया है। मुस्लिम मतदाता भा.ज.पा. उम्मीदवार को हराने के लिए किसी सशक्त गैर भा.ज.पा. उम्मीदवार को समूह के रूप में राजस्थान में मतदान करते हैं। कांग्रेस पार्टी उनकी पहली पसन्द है।
इस बार राजस्थान विधान सभा चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड 163 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी 102 से सिमटकर महज 21 सीटें ही जीत पाई। राज्य में कांग्रेस की यह सबसे बुरी हार है। गहलोत सरकार के मंत्रिमण्डल के अधिकांश सदस्य चुनाव हार गए। किरोड़ीलाल की नई पार्टी राजपा को महज 4 सीटें मिली। जमींदारा 2 सीट, बसपा 3 और निर्दलीयों ने 7 सीटों पर कब्जा जमाया। माकपा, जदयू व लोजपा का सफाया हो गया। इस बार इनका एक भी उम्मीदवार नहीं जीत सका। इस तरह विधान सभा चुनावों में जनता ने एकपक्षीय बहुमत भाजपा के हाथ में सौंप दिया। कांग्रेस की गहलोत सरकार की ओर से किए गए तमाम विकास के दावों को नकारते हुए जनता ने एकपक्षीय बहुमत देकर प्रदेश में 5 वर्षों बाद भाजपा को सत्ता सौप दी। साथ ही जनता ने अपनी मंशा भी स्पष्ट कर दी कि वे हर 5 साल में नई सरकार को मौका देते हैं। वर्ष 1998 में भाजपा को हटाकर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के हाथों में जनादेश दे दिया था। इसके बाद से यह तीसरा चुनाव है जिसमें प्रदेशवासियों ने भाजपा और कांग्रेस की सरकार को एक के बाद एक करके मौका दिया है। प्रदेश में 200 सीटों के परिणामों में भाजपा ने 163 सीटों पर कब्जा जमाया। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिलीं। 16 सीटें अन्य दलों के खाते में गई, इनमें किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी राजपा को 4, बसपा को 3 और 9 सीटें निर्दलियों के खाते में गई हैं। सबसे आखिरी परिणाम सवाईमाधोपुर का रहा जिसमें दीया कुमारी ने किरोड़ीलाल को हराया।

राजस्थान विधान सभा चुनाव – 2013
पार्टी 2008 2013 $ /- 2008 प्रतिशत 2013
भाजपा 78 163 $ 85 34.27 45.99
कांग्रेस 96 21 – 75 36.82 33.67
राजपा 0 4 $ 4 – 4.34
जमींदारा 0 02 $ 2 – 0
माकपा 03 0 – 3 1.62 0.89
सपा 01 0 – 1 0.76 0.39
जद (यू) 01 0 – 1 0.45 0.19
लोजपा 01 0 – 1 – 0.71
अन्य 14 07 – 7 14.96 8.41

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक भी कांग्रेसी की जीत नहीं हुई। इन वर्गों का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ गया है। इस वर्ग के कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूरे पाँच साल तक सरकार ने उनकी समस्याओं पर गौर ही नहीं किया। कांग्रेस के आला नेता दलित वर्ग को अपना बोट बैंक मानते रहे है और दलित वर्ग भी कांग्रेस का खुल कर साथ देता रहा है। इस वर्ग में जागरूकता के कारण ही इस चुनाव में युवा वर्ग ने सरकार की तरफ से उनकी अनदेखी का करारा जवाब दिया। दलित वर्ग के युवा तबके को भी अन्य वर्गोें की तरह ही समस्याओं से जूझना पड़ा था। इसलिए उसने काँग्रेस के विरोध का झंडा थाम लिया।
दस वर्षों से राजस्थान में कांग्रेस के केन्द्रीय पर्यवेक्षक जाने माने दलित सांसद मुकुल वासनिक रहे। उनका मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी घनिष्ठ सम्बंध था। फिर भी दलितों के लिए कांग्रेस पार्टी दलित प्रकोष्ठ अब तक नहीं बना पायी। जबकि सभी दूसरे पेशेवर, धर्म और जाति के लोगों का प्रकोष्ट बना हुआ है। राजस्थान की करीब 7 करोड की आबादी में दलित 17 प्रतिशत से भी ज्यादा हैं। राजस्थान के 33 जिले में से 7 जिले श्री गंगानगर, हनुमानगढ, करौली, भरतपुर, दौसा, चुरू और धोलपुर में इनकी आबादी 20 प्रतिशत से भी अधिक है। इनका प्रभाव राजस्थान की 200 विधान सभा सीटों में करीब 50 विधान सभा सीटों में निर्णायक है। राजस्थान के जाट 40 विधान सभा सीट और मुस्लिम 10 विधान सभी सीट पर अपना प्रभाव रखते हैं। फिर भी गहलोत सरकार ने केवल ब्राह्मण, बनिया, जाट, मुस्लिम के सामाजिक, राजनैतिक, समीकरण बनाया और दलितों को विश्वास में नहीं लिया गया। अतः भाजपा की तरफ दलितों रूख कर लिया।
आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के गढ़ पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया। बागड़ के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों की परंपरागत सीटों पर पहला मौका रहा है जब भाजपा प्रत्याशियों ने नौ में से आठ सीटों पर एक साथ जीत हासिल की है। बागीदौरा सीट पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी महेन्द्रजीत मालवीया जीते है। पिछले 13 चुनावों में बांगड़ में कांग्रेस और उसके बाद जद (यू) ही जिन सीटों पर प्रभुत्व रखती आई है, वहाँ भी इस बार भाजपा ने अपना झण्डा फहरा दिया है। अब स्थिति यह है कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में माहौल बना हुआ है।
लोकसभा चुनावों में राजस्थान की जनता ने भाजपा और कांग्रेस पार्टी को ही वोट दिया। इन दोनों दलों का प्रदेश के 90 प्रतिशत से अधिक वोट बैंक पर अपना कब्जा है। तीसरे दल को प्रदेश में कभी तवज्जो नहीं मिली। तीसरे दलों का अल्प विस्तार और पार्टियों का एजेंडा मतदाताओं को नहीं लुभा सका है। अतः तीसरा मोर्चा राजस्थान में नहीं पनप सका।
भाजपा और कांग्रेस संगठन प्रदेश में विस्तारित है, उनकी जड़ें काफी गहरी है। इस कारण यह दोनों दल फायदे में रहते हैं। दोनों पार्टियों की ब्लॉक स्तर तक कार्यकारिणी बनी हुई है। इसके अलावा क्षेत्रों के दिग्गज नेताओं का इन दोनों प्रमुख दलों से जुड़ाव भी रहा है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां लम्बे समय से राज करती आ रही है। इस लिहाज से प्रदेश के जातिगत समीकरण को भुनाने में ये दोनों माहिर भी है। जातीय समीकरणों, का क्षेत्र विशेष में ध्यान रखते हुए बड़ी पार्टियाँ जाति के आधार पर टिकट बांटती है। कांग्रेस जहां एससी-एसटी और अल्पसंख्यक वर्ग में अधिक पैठ बनाए बैठी हुई थी, वहीं दूसरी ओर भाजपा सामान्य और व्यापारी वर्ग में अधिक लोकप्रिय है साथ ही एस.सी., एस.टी. का भी विश्वास जीता है। प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में दोनों पार्टियां एक दूसरे के पैठ वाले जातिवर्ग में भी सेंधमारी करने में कामयाब हुई हैं। जबकि तीसरे मोर्चे के दल भाजपा-काँग्रेस के दावपेच की लड़ाई में बहुत पीछे रह जाते है। यही कारण है कि तीसरे मोर्चे के प्रमुख घटक दलों-माकपा और भाकपा जैसे दलों की परम्परागत सीटे भी इनके हाथों से खिसकने लगी है। बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में अब तक यहाँ एक भी सीट नहीं जीत सकी है।

लोक सभा चुनाव में पार्टियों के सीट और मत प्रतिशत
पार्टी 1998 1999 2004 2009
सीट वोट: सीट वोट: सीट वोट: सीट वोट:
भाजपा 5 41.65 16 47.23 21 49.01 4 36.57
कांग्रेस 18 44.25 9 45.12 4 41.42 20 47.19
सीपीआई 0 0.62 0 0.42 0 0.37 0 3.37
सीपीएम 0 10.28 0 0.49 0 0.51 0 0.26
एनसीपी 0 0 0 0.00 0 0.21 0 1.27
बसपा 0 2.12 0 2.76 0 3.16 0 0.00
अन्य 1 6.08 0 2.63 0 2.59 0 2.03
निर्दलीय 1 3.8 0 1.35 0 2.73 1 9.31
कुल 25 100 25 100 25 100 25 100

राजस्थान में खास बात रही है कि भाजपा या कांग्रसे में से जो पार्टी राज्य में सत्ता हासिल करती है, उसे ही लोकसभा चुनाव में अधिक सीटें मिलती है। वर्ष 1998 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसे लोकसभा चुनावों 1999 में 25 में से 18 सीटें मिली। 2003 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो यहाँ से भाजपा के 21 लोकसभा प्रत्याशी जीते। इसी प्रकार 2008 में कांग्रेस की सरकार बनी तो अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की 20 सीटें मिली।
तीसरे मोर्चे के कई दल लोकसभा चुनावों में राज्य की सीटों पर चुनाव में है। आप पार्टी के प्रत्यासी भी 20 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रहें है। लेकिन अब तक तीसरे दलों के प्रति रूझान को देखते हुए आप पार्टी को भी सफलता मिलने की सम्भावना नहीं के बराबर है। इस दल का सांगठनिक रूप से सशक्त नहीं है। राजस्थान में बसपा, सीपीएम, सीपीआई, एनसीपी सहित किसी भी तीसरी पार्टी का वोट बैंक राजस्थान में नहीं है। निर्दलीय जरूर कुछ हद तक टक्कर देते रहे है। 1990 और 2009 में दो निर्दलीय उम्मीदवार संसद में पहुँचे। 2014 में एक या दो निर्दलीय जीत सकता है।
राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस ने जातिगत हिसाब से जाट समाज बाकी अन्य जाति पर काफी भारी पड़ा है। दोनों ही दलों ने जाट समाज पर भरपूर भरोसा जताया है। भाजपा ने सात तो कांग्रेस ने छह जाट प्रत्याशी उतारे हैं। यहाँ तक कि पाँच सीटों पर जाट प्रत्याशियों के बीच ही सीधा मुकाबला है। भाजपा ने जाट समाज के अलावा तीन राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य एवं अन्य ओबीसी जातियों में से दो-दो, गुर्जर एवं यादव समाज से एक-एक प्रत्याशी को टिकट दिया है। बाकी एसटी के लिए सुरक्षित तीन सीटों में से दो पर मीणा और एक पर भील समाज के उम्मीदवार उतारे गए है। कांग्रेस ने चार राजपूत, तीन ब्राह्मण, दो गुर्जर उम्मीदवारों के साथ मुस्लिम, वैश्य एवं अन्य ओबीसी जातियों में से एक-एक को मौका दिया है। भाजपा ने सिर्फ एक महिला उम्मीदवार को मौका दिया है जब कि कांग्रेस ने 6 महिलाओं को मौका दिया है। प्रदेश की आरक्षित सीटेंः- अनुसूचित जनजाति (एसटी) – दौसा, उदयपुर और बांसवाड़ा अनुसूचित जाति (एससी) – श्रीगंगानगर, बीकानेर, भरतपुर और करौली – धौलपुर है।
सबसे ज्यादा पाँच सीटों पर जाट प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला है। जबकि दो सीटों पर मीणा, ब्राह्मण और राजपूत समाज के उम्मीदवार आमने सामने है। एससी के लिए सुरक्षित श्रीगंगानगर सीट पर मेधवाल समाज के ही प्रत्याशी दोनों दलों ने उतारे है। जबकि झुझुनूं सीट पर जाट समाज की दो महिलाएँ मुकाबले में उतरी है। झुंझुनूं सीट पर दो महिलाओं संतोष अहलावत और राजबाला के बीच सीधा मुकाबला।

लोकसभा चुनाव पूर्व रजवाड़ों:- राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कई पूर्व राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगी है। कांग्रेस ने तीन और भाजपा ने एक उम्मीदवार पूर्व राजघरानों से जुड़ा हुआ मैदान में उतारा है। ये चारों उम्मीदवार मौजूदा सांसद है और इनमें से दो तो केन्द्र में मंत्री भी है। उसने प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से तीन पर पूर्व रजवाड़ों के लोगों को ही प्रतिनिधित्व देकर आम कार्यकर्ता को फिर मायूस किया है। इनमें से जोधपुर से केन्द्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी और अलवर से केन्द्र में मंत्री जितेन्द्र सिंह चुनावी मैदान में है। इसके अलावा कोटा से इज्येराज सिंह को भी कांग्रेस ने मौका दिया है। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में इन तीनों को पहली बार मैदान में उतार कर जीत हासिल की थी। भाजपा ने झालावाड़ से धौलपुर के पूर्व राजघराने के दुष्यंत सिंह जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे है के तीसरी बार सांसद बनने के लिए मैदान में उतरा है। इससे पहले वसुंधरा राजे झालावाड़ से पाँच बार सांसद रह चुकी है।
राजस्थान में बगावत से परेशान दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियाँ:- लोकसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी भाजपा में टिकट वितरण के बाद उठे बगावत के स्वरों ने दोनों ही प्रमुख पार्टियों को परेशानी में डाल दिय है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मिशन पच्चीस के नारे के साथ सभी पच्चीस सीट जीतने की रणनीति के तहत आगे बढ़ रही हैं वहीं कांग्रेस चाहती है कि 2009 के चुनाव में जीती 20 सीटों में से कम से कम आधी सीटें हर हाल में जीती जाए। लेकिन दोनों ही पार्टियों में उठे बगावत के स्वर से भाजपा का मिशन 25 पूरा होना कठिन है।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में मात्र चार सीटे झालावाड़, जालोर, बीकानेर तथा चूरू पर जीत हासिल की थी। पार्टी ने चूरू के अलावा बाकी तीनों सांसदों को पुनः मैदान में उतारा है, वहीं चूरू के मौजूदा सांसद रामसिंह कस्वां के स्थान पर उनके पुत्र राहुल कस्वां को प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने जीती हुई इन चार सीटों को छोड़ कर गत चुनाव में हारी बाकी सभी 21 सीटों पर नए चेहरों को टिकट दिया है। कांग्रेस ने इस बार अपने मौजूदा 20 सांसदों में से श्री गंगानगर, सीकर भरतपुर, करौली, धौलपुर, पाली तथा बांसवाड़ा को तो टिकट नहीं दिया और दो सांसदों की सीट बदल दी जिनमें भीलवाड़ा से डॉ. सी.पी. जोशी को जयपुर ग्रामीण एवं टोंक, सवाई माधोपुर से नमोनारायण मीणा को दौसा से मैदान में उतारा है। कांग्रेस पार्टी ने 2009 में हारी पाँच सीटों बीकानेर, चूरू, दौसा, जालौर व झालावाड़ से नये चेहरों को टिकट दिया है।
कांग्रेस ने 14 सीटों पर प्रत्याशी बदले हैं। प्रत्याशी बदलने के कारण टिकट के प्रबल दावेदार रहे नेताओं की भितरघात का खतरा भी दिखाई दे रहा है। भाजपा में टिकट वितरण के बाद कई सीटों पर प्रत्याशियों को अपने ही नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है । बाडमेर से टिकट नहीं मिलने ने नाराज वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है। भाजपा से बाड़मरे से जसवंत सिंह के स्थान पर हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया गया है। बाड़मेर में भा.ज.पा. अपनी पूरी ताकत लगा दी है। श्री नरेन्द्र मोदी की भी सभा आयोजित की गयी।
मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे ने कर्नल सोनाराम की जीत को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। राजे ने बाडमेर, जैसलमेर के सभी भाजपा विधायकों एवं जिला अध्यक्षों को पूरी ताकत से सोनाराम के पक्ष में काम करने के निर्देश दिए है। भाजपा को सीकर में अपने पूर्व सांसद सुभाष महेरिया की बगावत से जूझना पड़ रहा है। टिकट नहीं मिलने से नाराज श्री मोहरिया ने निर्दलीय उम्मीदवार है। महरिया श्रीमती राजे के करीबी माने जाते थे। लेकिन 2009 में लोकसभा तथा दिसम्बर 2013 में विधानसभा चुनाव हार जाने से महरिया को टिकट नहीं दिया गया। भाजपा ने यहां से योगगुरू बाबा रामदेव के करीबी स्वामी सुमेधानन्द सरस्वती को प्रत्याशी बनाया है। महेरिया के निर्दलीय चुनाव मैदान में होने से भाजपा की मुश्किलंे बढ़ गयी है।
कांग्रेस को जालौर, चूरू, टोंक, सवाई माधोपुर, सीकर, पाली, श्रीगंगानगर, बांसवाड़ा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर शहर सीट पर अपनों के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस ने जालौर से पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह को इस बार फिर टिकट नहीं दिया तो उन्होंने भी निर्दलीय ताल ठोक कर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी है। चूरू से कांग्रेस नेता अभिनेष महर्षि पार्टी से बगावत कर के बसपा टिकट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। जिससे चूरू सीट पर पहली बार चुनाव लड रहे प्रताप पूनिया त्रिकोणीय संघर्ष में फंसते दिखाई दे रहे हैं। इसी तरह टोंक सवाईमाधोपुर सीट से क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन को मुस्लिम कोटे से टिकट देने से स्थानीय मुस्लिम समाज के नेताओं ने विरोध जताया है। इस तरह विरोध से कई क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष है। त्रिकोणीय संघर्ष के कारण भा.ज.पा. और कांग्रेस पार्टी करीब 7 सीटों पर मुश्किल में है। 17 और 24 अप्रैल को मतदान है। चुनावी चौसर पर जाति एवं धर्म को बिछा दिया गया है, खेल जारी है, लेकिन परिणाम तो 16 मई, 2014 को ही मिलेगा।
-प्रो. एस.एन. सिंह
विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग,
एवं डीन सामाजिक विज्ञान संकाय,
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर।
मो.ः09352002053, email:[email protected]

2 thoughts on “राजस्थान: जाति, धर्म और लोकसभा चुनाव, 2014”

  1. Please aap B.Ed.में चार महीनों की internship me hone vale शोषण के बारे में लिखें क्योंकि इसमें छात्राध्यापकों को अपनी पसंद की विद्यालय भरने का विकल्प न देकर दो ब्लॅक का विकल्प दिया जा रहा है जिससे कर्ज लेकर पढने वाले बेरोज़गार छात्राध्यापकों के गले का फांस बन रही है क्योंकि 1-2 ब्लाॅक का क्षेत्रफल की दूरी 80-100km.तक होती है ऐसे में 100 km.आना जाना किराया करीबन 80-100रुपये होता है आगे ही बेरोजगार व कर्ज लेकर फीस भरना दूभर हो रहा है अत: हमारी मांगे है कि या तो रहने खाने की व्यवस्था की जाये व कम से कम 6000मासिक मानदेय दिया जाये जैसा कि टाटा सामाजिक विज्ञान संसंस्थान,mbaव अन्य की तर्ज पर paid internship करवायी जाये या पसंद की विद्यालय भरने दी जाये अत: aap is per report avsy kre

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