मूल: डॉ. श्याम सिंह शशि
1.
दो अक्षर
वे दो अक्षर लिखते हैं
तो उम्र भर गाते हैं।
हम पोथियां लिखते हैं-
इक उम्र दे जाते हैं।‘
2.
पहचान
अनजाना था
तेरा था, सब का था
पहचान बढ़ी
किसी का भी नहीं हूँ
काश! अनजाना ही रहता मैं !
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सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
1.
ब अखर
हू ब अखर लिखन्दा आहिन
त उम्र भर गाईन्दा आहिन
असां पोथ्यूँ लिखन्दा आहियूं
हिक उम्र डई वेन्दा आहियूं
2.
सुजाणप
अणसुजातल हुयस, तुहिंजो हुयस,
सभणी जो हुयुस
परिचय वध्यो कहिंजों बि नाहयाँ
काश!
अणसुजातल ही रहां हा मां
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