मस्तिष्क और मन ( ब्रेन एंड माइंड)

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

जब कभी भी आप का मन या ह्रदय बैचेन या विचलित हो जाय, तब आप अपने आप से कहें कि जीवनशक्ति (लाइफ फ़ोर्स ) जो समस्त विश्व की देख भाल करती है वही शक्ति आपकी भी देख भाल/रक्षा करेगी (इस पर विश्वास रक्खें),ऐसा सोचने से आप स्वयं देखगें कि आपकी सारी निराशा एवं चिन्ताएं खत्म हो गई है और आपका ह्रदय/मन भी रचनात्मक सोच से परिपूर्ण होकर खुशी से खिल उठा है |
जब मन और बुद्धी असमर्थ या अक्षम बन जाते हैं तब ही से मानव के जीवन में मानसिक एवं भोतिकी परेशानियों एवं तकलीफों के उत्पन्न होने की शुरुआत हो जाती है | मन एवं बुद्धी की असमर्थता ही, हमारी बुरी/ खराब/अवांछित चयन (choices) प्रक्रियाओं के कारक बनती है |
हमारी जिन्दगी का सफर जन्म के क्षण से शुरू होकर म्रत्यु के एक क्षण पूर्व तक का होता है, वास्तव में सतत शिक्षा प्राप्त करने का अर्थ नित नया ज्ञान सीखना ही होता है, कहते भी है कि सीखने या शिक्षा प्राप्ती की कोइ उम्र नही होती है इसलिये हममें भी हर उम्र में नया सीखने की ललक होनी चाहिए |

मस्तिष्क सूक्ष्मतम परमाणु से निर्मित अंग है जबकि मन (माइंड) परमाणु से निर्मित अंग नहीं है, मन और मस्तिष्क अलग –अलग है | मन हमारे समस्त शरीर में व्याप्त है, शरीर के हर सूक्ष्म से सूक्ष्म कोष में भी मन रहता है,मन हमारी अंगुली से लेकर ह्रदय, सिर तक व्याप्त है, हमारे रोम-रोम में हमारा मन निवास करता है, मानव शरीर में ऐसा कोइ स्थान नहीँ है जहाँ मन नहीं रहता हो |
हमारे शरीर के कोषों (cells ) में निरंतर बदलाव होता ही रहता है, कोष नष्ट होते रहते हैं और उनकी जगह नये कोष निर्मित होते रहते हैं | इसी प्रकार मन भी गतिशील है, इसमे भी निरंतर बदलाव होता रहता है | हमारा मन-शरीर तन्त्र (MBS— माइंड बॉडी सिस्टम) जो आज है, जरूरी नहीं कि कल भी वही रहेगा, इसमें हर पल परिवर्तन होता है | हमारे मन-शरीर तन्त्र ( MBS ) के हार्डवेयर मे भी सतत सार्थक नयापन आता रहता है |
हमारी धारणा एवं मनोवर्ती, हमारे पूर्व समय (भूत काल ) के अनुभव और अनुभव के आधार पर बनी याददास्त पर निर्भर होती है, अत: ऐसा प्रतीत होता है कि हमसे, हमारे द्वारा सम्पन्न कार्य /व्यवहार, पूर्व नियोजित एवं योजनाबद्ध ही होते है |
हमारी यहीं सभी याददास्तें (memories ) हमारे द्वारे किये जाने वाले सारे कार्यों के कारक बनते हैं | इसे दुर्भाग्य ही कहा जाय कि यह सारी मेमोरीज (याददास्त) हमारे अचेतन मन में रहती हैं | हमारी काल्पिनक मनोकामनाओं/इच्छाओं का सूत्रधार रचनात्मक मन के स्थान पर हमारा अचेतन मन ही होता है | वास्तव में हमारे भूतकाल, पूर्वजन्मों की अभिन्न (अटूट) यादें ही हमारे संस्कार बन जाते हैं और यही भविष्य में हमारे द्वारा निष्पादित कार्यों (एक्शन) के कारक बनते हैं |
जैसे कि हम जानते हैं की संस्कार का उदभव अचेतन (अचेतनता ) मन से होता है इसलिए इनको ना तो हम रोक सकते हैं ना इन पर नियंत्रण या संशोधन कर सकते हैं, अगर हम अचेतन मनका प्रवेशद्वार खोलने या उसे भेदने की विद्या (कला ) सीख लें तो अचेतन मन को भेद कर उसके अन्दर प्रवेश करना सम्भव हो सकता है , एवं तब ही हम हमारे संस्कारों को निसंदेह विलोपित (विघटित) या समाप्त भी कर सकते हैं |
संस्कार हमारे पूर्व जन्मों (भूतकाल ) के उत्पाद हैं, इसीलिए हमें अपने आपको अपने भूत काल की स्म्रतियों से पूर्ण रूप से बाहर निकाल कर सिर्फ जीवन के वर्तमान में ही जीना ( या आना ) होगा, क्योंकि वर्तमान में किसी भी प्रकार के संस्कारों का कोई असतितत्व नहीं होता हैं | याद रक्खें वर्तमान में हममें ना तो कोई अफ़सोस की भावना रहती है ना कोई पूर्वानुमान (पूर्वाभास ) का ख्याल रहता है | वर्तमान में हम जैसे हैं वैसे रहते हैं क्योंकि हम पर संस्करों का कोई बोझ नहीं रहता है |
प्रश्न उठता है कि हम अपने आपको अपने भूत काल की स्मिरतियों से कैसे बाहर निकालें ? मैडिटेशन (ध्यान ) से हम अपने आपको अपने भूत काल की सभी स्म्रतियों से बाहर निकालकर वर्तमान में प्रवेश कर सकते हैं | मैडिटेशन (ध्यान ) से हममें हमारे संस्कारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है, जिससे हमको अपने संस्कारों को विलोपित करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है | मैडिटेशन (ध्यान ) से हम हमारे जीवन पर स्वंय का नियंत्रण स्थापित करने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं | मैडिटेशन (ध्यान)से हम हमारी पूर्वजन्मों (भूतकाल ) की भावनाओं से युक्त याददास्तों के सॉफ्टवेयर (software) से भी छुटकारा पा सकते है|
हमारा मन या माइंड अपने आप में अति विचित्र है, इसके भीतर हमेशा भिन्न-भिन्न विचारों ( सोच ) की निरन्तर उछल-कूद चलती ही रहती है इसलिए इसकी तुलना बंदर से भी की जा सकती है| माइंड या मन में विचारों का अथाह समुद्र भी होता है इसलिए कुछ लोग मन या माइंड को विचारों की खदान या सुरंग भी कहते हैं | मन में विचार या विभिन्न सोच बेतरतीबी (अव्यस्तिथ) से बिखरे रहते हैं इसीलिए लिये इसे पागलखाना (madehouse) भी कहा जा सकता है, किन्तु इन सब उपमाओं के बावजूद यह तो निर्विवाद सत्य है कि मन अनिश्चता से परिपूर्ण है और इस पर अनिश्चता का सिद्दान्त पूरी तरह से लागू होता है | जिस प्रकार नाटक या सिनेमा में कलाकार पात्र के चरित्र के अनुसार मात्र अभिनय करते हैं (वास्तविकता में अपनी असली जिन्दगी में वे इस अभिनय से बिल्कुल भिन्न होते है ) उसी प्रकार हमे भी हमारे विचारो या सोच (थॉट) को मात्र पर्वेक्षक( observer, sakshi) बन कर ही सिर्फ देखना चाहिए, किन्तु उनमें शामिल होकर उलझना नहीं चाहिए | अपने विचारों या सोच को सिर्फ इस प्रकार से देखें जैसे हम आसमान में बादलों को देखते हैं | ऐसा करने से आपका मन या माइंड धीमें-धीमें विचारों या सोच (थॉट) में रूचि (दिलचस्पी ) लेना खत्म कर देगा ,इसके परिणाम स्वरूप विचारों/सोच (थॉट) की संख्या कम होती जायेगी और आप अपने मन के अधिकार क्षेत्र से दूर नो माइंड जोन में प्रवेश कर लेगें इससे आप के भीतर विचारों का आना और बनना बदं हो जायगा एवं आपकी चाहत (डिजायर ) की भावना भी खत्म होती जायेगी | मैडिटेशन या ध्यान से हमारे भीतर जागरूकता का संचार होता है जिससे हम अपने आपको हमारी सोच (थॉट) प्रकिया से असम्बद्ध करनेवाले बन जाते हैं | मैडिटेशन या ध्यान, हमको हमारे भूतकाल या भविष्य के मध्य उछल-कूद करने से तो बचाते ही है साथ ही साथ हमें अपने वर्तमान (प्रेजेंट) के क्षणों में ही रहने और वर्तमान मे हीं स्थिर रखने में भी मददगार बनते हैं |मान कर चले कि केवल मैडिटेशन या ध्यान से ही हमारा माइंड या मन अचल (स्थिर या निश्चल ) बन सकता (रह सकता) है |
सोच (विचार-थॉट) एवं संस्कार आपस में एक दुसरे से जुड़े हुए हैं | सोच अगर बीज है तो संस्कार उन बीजों से उत्पन्न व्रक्ष (पेड़) है और अगर संस्कार बीज है तो सोच (थॉट या विचार) उन बीजों से उत्पन्न व्रक्ष (पेड़) है|
मनोविज्ञानिको के अनुसार सारी समस्यायें माइंड ( मन) से ही शुरू होती है और उनका समाधान भी माइंड (मन) से ही होता है, इस प्रकार माइंड (मन) हमारे शरीर रूपी यंत्र में एक बोद्धिक गियर (intellectual gear)के रूप में काम करता है, अगर हम इस गियर का उपयोग सही तरीके से करें तब निश्चय ही हमने अपने आप को तनाव मुक्त रखने (या तनाव मुक्त जीवन जीने का) का सर्वश्रेष्ट फार्मूला प्राप्त कर लिया है |
बुद्धिमता का हमारे I.Q. से विशेष लेना देना नहीँ होता है | हमारे पास I.Q. के साथ– साथ भावनात्मक बुद्धिमता (E.Q.), उच्चतर बुद्धिमता (H.Q.) भी होती है , कई शोधकर्ताओं ने अब तक 25 उपबुद्धिमता (Sub Intelligence)की पहचाहन कर ली है |
हम भी महान आईन्स्टाईन की सीखने की क्षमता के समकक्ष क्षमता प्राप्त कर सकते हैं |
उचित प्रशिक्षण से हम सभी अपने –अपने बुद्धिमता-स्तर को बड़ा सकते हैं |
उपसहांर (To sum it up):————-
[P]—–हमेशा अपने आप को वर्तमान/अब के समय (क्षण ) में रक्खो|(Be in the now/present moment).
[O]——अनासक्त भाव से अपने सोच (थॉट) का अवलोकन करने वाले बनो|(Be a detached observer to your thoughts).
[S]—–अपने आप को पूर्ण रूप से जीवन शक्ति/ब्रम्हाण्ड/मानवरहित उत्सव स्त्रोत के सामने समर्पित कर दो|(Surrender to the life force/universe/the unman fest source completely).
[T]——ज्ञान- ध्यान से अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को निरंतर बढ़ायें | (Spiritual knowledge and meditation (gyana and dhyana which I call tayyari jeet ki).
जीवन में विजयएवं सफलता प्राप्ती हेतु POST(उपरोक्त बिन्दुओ) को याद रक्खें (So remember the pneumonic POST and you are ready to win
डा. जे. के. गर्ग —डा. सुरभी गर्ग

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