अब आ भी जाइये…..

दयानन्द शास्त्री
दयानन्द शास्त्री

कत्मे अदम से उनका हमें इन्तिज़ार है !
लगता है हर दियार, उन्ही का दियार है !!
हारे हैं बार-बार बुला कर तुम्हें, सनम !
अब आ भी जाइये, कि, “विशाल”का जिगर बेक़रार है !!
कब आपके आने से फ़ज़ा होगी इत्रयेज़ ?
कौसर की सरख़ुशी का तभी एहतिज़ार है !
जागे हैं शबोरोज़, पिन्हा दर्द की तरह !
मेरा वही तबीब, वही ग़मगुसार है !!
सुनते हैं, कई और यार देखते हैं राह ;
क्या उसकी गली, उनके के बिना शर्मसार है ?
यूं तो जिगर में उनके, “विशाल”, एहतिराम है ;
लेकिन अभी भी गुस्सा-ए-गुल बरक़रार है !
-पंडित”विशाल”दयानन्द शास्त्री…”विद्या वाचस्पति”

error: Content is protected !!