दूध पिलाते थे नागों को
भारत पर चढ़ जाने को
आतंकी पैदा करते थे
दहशत को फ़ैलाने को
पाकिस्तान तेरी करनी का
फल बच्चों ने भोगा है
दोहरे चेहरे वाले जालिम
उतरा तेरा चोगा है
इसी बेल को पाल पास कर
तूने कितना बड़ा किया
हर आतंकी को अपनाया
अपना अड्डा खड़ा किया
आज तुझे ही डस डाला
तेरे ही पाले साँपों ने
पैरों तले कुचल डाला
तेरे आतंकी बापों ने
देख जरा उस पीड़ा को
जो हर ह्रदय में उठती है
सूंघ जरा उस बदबू को
जो मरे शवों से उठती है
यूँ ही लोग मरे थे जब
तुमने मुम्बई दहलाया था
गोली की आवाजों से जब
अक्षरधाम गुंजाया था
संसद पर हमला हो या
कई बारों के बम के विस्फोट
अफज़ल गुरु कसाब भेजकर
कितनी गहरी दी है चोट
फिर भी तेरे दुःख में जालिम
तेरे साथ खड़े हैं हम
आतंकवाद से लड़ जाने को
खुलकर आज अड़े हैं हम
बात समझ आ पाई हो तो
अब ये दहशत बंद करो
भाड़े के आतंकी रोको
अब ये वहशत बंद करो
वरना एक दिन तुम डूबोगे
सारे मारे जाओगे
अपनी करनी के कारण तुम
जीवन भर पछताओगे।।
“आज पडोसी का “चुल्हा” ठंडा है?
“भूख” हमारी भी मर गयी…”
ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे …
मासूमों के क़ब्र पर चढकर, कौन से ज़न्नत जाओगे !!!
आज कुछ बस्ते घर नहीं जायेंगे …..
वो 26/11था आज 16/12 है,
कल धरती हमारी थी हथियार तुम्हारे थे,
आज धरती भी तुम्हारी है हथियार भी तुम्हारे है,
हमें दुःख कल भी था आज भी है….