कैसा होना चाहिए अपने गांव का सरपंच ?

जगदीश सैन
जगदीश सैन

-जगदीश सैन पनावड़ा-
गाँवो में सरपंच चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होते है !
आज हर कोई अपने गांव में होने वाले
आगामी चुनाव में सरपंच को लेकर चर्चा करते
है ! भारतीय राजनीती का मुख्य आधार
ग्रामीण राजनीती है, और सरपंच का चुनाव
ग्रामीण राजनीती का सर्वोसर्वा ! गांव में
हर तबके का इंसान इस चुनाव में बढ़ चढ़ के भाग
लेता है ! लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार
को जिताने की कोई कसर नहीं छोड़ते! गांव
से दूर ढाणियों में बैठे वर्धजनों को कार में
बैठा कर चुनाव स्थल पर लाया जाता है ! और
फिर उन्हें दो जने उठा कर वोट दिलवाने ले
जाते है ! और वृद्धजन (बुढे माता पिता )
भी दो लोगो के साहरा पाकर अपने आप
को किसी राजा से कम नहीं समझते, वोट देने
के बाद चेहरे पर मंद मुस्कान इसका पक्का सबूत
भी है !एक बड़ी मात्रा में पैसा खर्च होता है !
महीने भर तक अमल,गांजा,चाय और खाने
का प्रबंध चलता है ! हर चुनाव में लगभग यही खेल
चलता है ! हर बार यही लगता कि इस बार
तो हमने सही उम्मीदवार का चयन किया इस
बार अपने गांव की दिशा और दशा बदल
जाएगी ! जो मात्र एक भर्म है, और ये भर्म हमें
हर चुनाव में हो जाता है ! इस भर्म में जीने
कारण हमे कई बीमारिया हो गयी जिसमे
जातिवाद महत्वपूर्ण है ! पुरे साल गांव के हर
जाती के लोग साथ में बैठ के ताश खेलेंगे लेकिन
चुनाव आते ही जातिवाद का बिच्छू काट
ही जाता है !
आज हर कोई कहता है कि वक्त बदल गया है !
गाँवो में मोबाइल फ़ोन आ गया है ! गांव
का युवा इंटरनेट का इस्तमाल करने लग गया है !
गांव में टेलीविजन के साथ साथ लोग कंप्यूटर
और लैपटॉप का इस्तमाल करने लग गए !
क्या यही सब बदलाव के लक्षण है ??
क्या गाँवो को आधारभूत सुविधाये
मिली है ?
क्या गाँवो में पिने का प्रयाप्त पानी है ?
क्या गांव में चिकत्सा की समुचित
व्यवस्था है ?
गांव में विचरण करोगे
तो आपको टूटी कच्ची सड़क और
गन्दी नालियो का पानी इधर उधर
फैला हुआ मिल ही जायेगा !
क्या आज़ादी के 60 के बाद भी इन सड़को और
नालियो के लिए कोई योजना नहीं बनी ?
योजना बनी है पैसा भी आवंटित हुआ है,
सिर्फ कागजो में ! और उन कागजो से सीधे
भ्रष्ट अधिकारियो और नेताओ के जेब में में
चला गया ! और हमे कानोंकान खबर भी नहीं !
खबर होगी कैसे मैंने सरपंच चुनाव का गुणगान
ऊपर किया वो काफी है अपनी अक्ल पर
पर्दा डालने के लिए ! रही कही कसर
चुनावी वादे और पैंसे के लालच ने पुरी कर दी !
क्या गांव का गांव हर आदमी चुनाव
को इसी नज़रिय से देखता है ! चुनावो में
वो अपना स्वार्थ सिद्ध कर अपने कार्य
की इतिश्री कर लेता है ! नहीं !
गांव में बहुत से लोग जो चाहते की गांव में
विकास हो ! इसका ताज़ा उदारहण
बताता हु हमारे गांव के मुख्य मार्ग के
बीचोबीच बड़ा गड्डा होने की वजह से बहुत
पानी भर जाता था, और अनेको कोशिश के
बाद भी सड़क ठीक नहीं हुई तो गांव के कुछ
लोगो ने गांव से पैसे इक्कठे करके सड़क ठीक
कराने का प्रयास किया ! मतलब
जज्बा तो है, कुछ करना चाहते है लोग ! मगर
उन्हें न व्यवस्था का ज्ञान है और नहीं ऐसे
योग्य व्यक्तियों को मौका मिलता है ! हर
साल 15 से 20 लोग मिलकर एक
आदमी का चयन कर देते है !
तो मुद्दा ये है की इन सब समस्याओ से
निजात कैसे मिले ?
कैसे हमारे गांव का चहुमुखी विकाश हो ??
इसका जबाब भी दे देता हु ! अगर कोई
भी व्यक्ति जो उच्च पद पर विराजमान है
वो अपना निज हित त्याग कर
अपनी सारी शक्ति गांव के विकाश के लिए
लगा दे तो अपने गांव का विकास
हो सकता है ! उसका एक ही लक्ष्य
होना चाहिए अपने गांव का विकास ! हम
अक्सर अखबारों में पढ़ते है अमुख गुरूजी ने अपने
विद्यालय को नहीं दिशा दे दी ! एक नया रूप
दे दिया ! पढाई के परिणाम का स्तर
बढ़ा दिया ! वैसे सरपंच भी कर सकता है ! सरपंच
भी गांव में एक टीम बना कर
सरकारी योजनाओ की मॉनिटरिंग कर
सकता है ! गांव के लोगो सुचना के अधिकार
के बारे में बता सकता है ! उन्हें जगा सकता है
कि शासन जनता का है और
जनता सरकारी दफ्तरों में जाकर सवाल
जबाब कर सकती इतना ही नहीं भ्रष्ट
अधिकारियो के विरुद्ध करवाई कर सकती है !
क्या इस बार अपने गांव को ऐसा सरपंच
मिलेगा जो सिर्फ और सिर्फ गांव के
विकास के बारे में सोचता है ! और उस
विकास का लाभ गांव के हर तबके को मिले !
अगर हर गांव का सरपंच और जागरूक युवा ठान
ले की मुझे अपने गांव को अभिनव बनाना है
तो अभिनव राजस्थान बनने में कोई कसर
नहीं रहेगी ! और अभिनव राजस्थान का लाभ
गांव, ढाणियों में बैठे लोगो को स्वत
ही मिल जायेगा !

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