मूल: सुधा ओम ढींगरा
मैं दीप बाँटती हूँ
मैं दीप बाँटती हूँ….
इनमें तेल है मुहब्बत का
बाती है प्यार की
और लौ है प्रेम की
रौशन करती है जो
हर अँधियारे
हृदय औ’ मस्तिष्क को।
मैं दीप लेती भी हूँ….
पुराने टूटे -फूटे
नफ़रत, ईर्ष्या,
द्वेष के दीप,
जिनमें तेल है
कलह -क्लेश का
बाती है बैर-विरोध की
लौ करती है जिनकी जग-अँधियारा।
हो सके तो दे दो इन दीपों को
ले लो नए दीप
प्रेम, स्नेह और अनुराग के दीप
जी हाँ मैं दीप बाँटती हूँ ……।
सुधा ओम ढींगरा
संपादक-हिन्दी चेतना
101 Guymon Ct. Morrisville-NC-27560, USA
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
माँ डिया विरहाईन्दी आहियाँ
माँ डिया विरहाईन्दी आहियाँ
तिन में तेलु आहे मुहब्बत जो
वटि आहे प्यार जी
ऐं लाट आहे प्रेम की
जा हर ऊंधह खे
दिल खे ऐं दिमाग़ खे
रौशन कंदी आहे !
माँ डिया वठंडी बि आहियाँ…
पुराना भगल-टुटल
नफ़रत, हसद, साड़ जा डिया,
जिनमें तेल आहे कलह -क्लेश जो
वटि आहे वेर-विरोध जी
लाट जिनजी कंदी आहे जग-में अंधारो।
थी सघे त डई छड़ियो इहे डिया
वठो नवाँ डिया
प्रेम, सिक ऐं मुहब्बत जा डिया
जी हा, माँ डिया विरहाईन्दी आहियाँ !
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