माताजी तांगा आ गया…..

(नियम पक्के हैं हमारे)

बलराम हरलानी
बलराम हरलानी
क्या सिर्फ कुछ पांरम्परिक पैमाने तय करेगें भाग्यशाली होने का। समाज आज भी अपनी संकुचित सोच से बाहर आने को तैयार ही नहीं है। यह कहानी शायद आपकी सोच बदल दे।
हंसती खिल्खीलाती मां, मौहले में कुछ इतराती हुई सी, और हो भी क्यों ना उसके घर दूसरा बेटा जो हुआ था। जहां जाती स्वागत होता, भाग्य का प्रतीक स्वरूप मानी जाती और सुसराल की लाडली बहु की कहानी आप लोगों से शेयर करना चाहता हूं।
उनके पति सरकारी नौकरी में थे। उसके दो बेटे थे, जिन पर उसे नाज था वे दिन प्रतिदिन बड़े होने लगे। मां की ममता का तो ठिकाना ही नहीं था सब कुछ दोनों पुत्रों पर न्योछावर, उन्हें बड़े ही लाड़ प्यार से पाला था उसने। बच्चे भी मां में भगवान की मूर्त देखते थे। आदर सत्कार में कोई कमी नहीं, संस्कार तो कूट-कूट कर भरे थे बच्चों में। दोनों को अच्छी शिक्षा दिलाई, अच्छी नौकरी लगवाई, अच्छी शादी करवाई उनकी मां ने। उनकेे पिता का तो वे छोटे थे तब देहान्त हो गया था । मां अपना निवाला भी उनको ही खिला देती और खुद भूखी रह जाती। दोनों की शादी के बाद कुछ विवाद पनपने लगा। बड़ा वाला भाई उसी शहर में बाहरी इलाके में घर का मकान बना रहने लगा। परेशानी ये थी की अब मां को कौन रखे वो बूढी हो चली थी। कौन उनकी सेवा करे।
तय हुआ 15-15 दिन दोनों रख लेेगें। 15 दिन होते ही बहुरानी माताजी का सूटकेस बाहर रख देती और बेटा आवाज लगा देता ’’माताजी तांगा आ गया।‘‘ आधी अधूरी पूजा करके माता जी तांगें में बैठ दूसरे बेटे के चली जाती। पूरे रास्ते, मौहल्ले वाले जिन के सामने वो इतराती थी, नजरे झुका तांगे वाले को बोलती तेरे से तेज नहीं चलाया जाता क्या? उस महिला की दशा देख कई बार वो तांगें वाला भी रो देता। पर भाईयों के नियम कायदे पके थे। एक दिन भी क्या एक घंटा भी उपर नीचे नहीं होने देते। कई सालों तक यह चलता रहा।
एक बार छोटे बेटे व उसके परिवार को बाहर जाना पड गया उसने आव देखा ना तांव उसी तांगें वाले को बुला लिया और बोला छोड़ आ माताजी को भाईसाहब के। जैसे ही तांगा दूसरे भाई के पहूंचा सबने कैलेंडर देखा अरे अभी से माताजी को ले आया। चल वापस ले जा। नियम पक्के है हमारे। जो तय है वही होगा। माताजी रोने लगी। पर कौन सुनता। तांगें वाला वापस लेकर आया तो दूसरे बेटे के घर पर ताला था। माताजी पर पहाड़ ही टूट पडा। अब क्या होगा? सुबह से कुछ खाया भी नहीं था माताजी ने। तांगें वाले की भी आंखें गीली थी, महौल्ले में कुछ खिडकी दरवाजों से जो लोग झांक रहे थे उनने भी दरवाजे बंद कर लिये कहीं आफत गले ना पड़ जाये।
तांगे वाले से रहा नहीं गया । उसने तांगा तेज भगाया और सीधे अपने घर ले गया और अपनी जीवनसंगनी को बोला देख तेरे घर भगवान आये हैं, जा खाना लगा। जिसे शायद संस्कारों की शिक्षा भी नहीं मिली थी पर उसमें मानवता तो कूट-कूट कर भरी थी। उसने बड़े प्याार से माताजी को कुछ दिन अपने घर रखा, पूरा सम्मान दिया। पर माताजी के जिद करने पर सही समय होने पर वह उनको उनके घर छोड़ आया। अगले 15 दिन पूरे होते उसके पहले तो माताजी को भगवान ने स्वर्ग लोक बुला लिया। जैसे ही माताजी के शरीर को ले जाने लगे एक भाई का छोटा सा बच्चा बोला-पापा दादी जा रही है एक बार तो बोलो ना-माता जी तांगा आ गया। सब फूट फूट के रोने लगे।
मेरी सलाह है नियम कायदे आप अपने कार्यक्षेत्र के लिऐ बनायें, माता पिता को इसके दायरे से दूर रखें आप उनके दूध का कर्ज जिन्दगी पर नहीं उतार सकते नियम बनना तो बहुत दूर की बात है। कल को आपके बच्चे भी वही आवाज आपको लगायेगें-माता जी तांगा आ गया ……..क्या आप तैयार हैं ।

बलराम हरलानी
लेखक का परिचय – एक सफल व्यवसायी, कृषि उपज मंडी के डायरेक्टर, समाज सेवी, पूर्व छात्र सेंट ऐन्सलमस अजमेर।

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