“इधर भी खुदा है,
उधर भी खुदा है।
जिधर नजर डालो,
खुदा ही खुदा है।”
सडकों पर नक्काशी,
ये ‘कैसा’ खुदा है ।
केबल नालियां ,
लिये ‘शहर’ खुदा ।
विभागों की मसखरी,
गिराने को खुदा है ?
रंज है, ना खुशी है,
गम, जुदा-जुदा है।
फोटो सहित छपा है,
हर-जगह यो ‘खुदा’ है।
इबादत क्या कीजे,
भीतर बाहर खुदा है।
बच गये आप तो किस्मत,
वर्ना ‘हाथ-पैर’ जुदा है।
हर किसी का सवाल, जुदा ही जुदा है ।
टूट गये है जो,
ये कहते, ‘कहर’ खुदा है।
स्मार्ट सिटी की सौगात,
जुदा है,जुदा है ।
कंकड पत्थर, नालियां,
लिये ‘शहर’ मेरा खुदा है।
जिधर नजरें हो इनायत,
बस,खुदा ही खुदा है।।
-शमेंद्र जड़वाल