खबर की हैड लाइन्स पर कविता

शमेंद्र जड़वाल
शमेंद्र जड़वाल
“इधर भी खुदा है,
उधर भी खुदा है।
जिधर नजर डालो,
खुदा ही खुदा है।”

सडकों पर नक्काशी,
ये ‘कैसा’ खुदा है ।
केबल नालियां ,
लिये ‘शहर’ खुदा ।

विभागों की मसखरी,
गिराने को खुदा है ?
रंज है, ना खुशी है,
गम, जुदा-जुदा है।

फोटो सहित छपा है,
हर-जगह यो ‘खुदा’ है।
इबादत क्या कीजे,
भीतर बाहर खुदा है।

बच गये आप तो किस्मत,
वर्ना ‘हाथ-पैर’ जुदा है।
हर किसी का सवाल, जुदा ही जुदा है ।

टूट गये है जो,
ये कहते, ‘कहर’ खुदा है।
स्मार्ट सिटी की सौगात,
जुदा है,जुदा है ।

कंकड पत्थर, नालियां,
लिये ‘शहर’ मेरा खुदा है।
जिधर नजरें हो इनायत,
बस,खुदा ही खुदा है।।

-शमेंद्र जड़वाल

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