हाय रे मानव!

praveen kumarमानव यह भलीभंति जानता है कि जीवन सिर्फ पृथ्वी पर ही है फिर भी वह अपनी धरती को तरह-तरह से हानि पहुंचाने में लगा रहता है। मानव जीते-जी इस वातावरण से, इस धरती से कहीं और नहीं जा सकता। और तो और मरने के बाद भी वह इसी धरती पर ही रहता है। यदि उसका दाह-संस्कार कर दिया जाता है तो उसका षरीर राख बनकर यहीं रहता है, उसके अस्थि अवषेष भी यहीं रहते हैं। यदि उसे दफनाया जाता है तो भी वह इसी धरती पर ही रहता है। ऐसा नहीं होता कि मरने के बाद उसे हवा में उछाल दिया जाता हो और वह हवा में, अंतरिक्ष में गायब हो जाए या किसी और दुनिया में पहुंच जाए। मानव कुछ भी कर ले, वह इस धरती से कहीं ओर नहीं जा सकता। न जीते-जी, न मरने के बाद।
जीवन सिर्फ धरती पर ही संभव है। हमें पीने के लिए व अन्य कार्यों के लिए पानी यहीं से मिलता है। खाने के लिए फल-सब्जी-अनाज यहीं से प्राप्त होता है। जिन्दा रहने के लिए आवष्यक प्राण-वायु भी यहीं से मिलती है। ये सब चीजें धरती के अलावा कहीं ओर नहीं मिलती, न ही इन्हें मानव किसी प्रकार से इन्हें खुद बना सकता है। सब कुछ जानते-बूझते भी हम अपने हवा-पानी को, अपने वातावरण को नाना प्रकार से प्रदूषित करते रहते हैं।
कहीं कोई हरे-भरे पेड़-पौधों को, जंगलों को काटकर धरती की सुंदरता को नष्ट कर रहा है। कहीं कोई पहाड़ों को काटकर, समुद्र को पाटकर अपनी बस्तियां बढ़ा रहा है, जिससे पर्यावरण असंतुलन हो रहा है और इससे सूखे और बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। मानव द्वारा अपने आवास क्षेत्र बढ़ाने के लिए जंगलों को कम किया जा रहा है, जिससे जंगली जानवर षहरों-गांवों में घुस आते हैं और वहां के लोगों को, उनके पालतू पषुओं को अपना भोजन बनाने पर मजबूर हो जाते हैं। कहीं कोई जीवन-दायिनी नदियों-झीलों में गंदे नालों का पानी, कोई हानिकारक रसायन, मल-मूत्र आदि छोड़ रहा है। जिसके परिणामस्वरूप मानव-जीवन तो क्या जलीय जीव-जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ रहा है।
मानव के अलावा अन्य जीवन-जंतु ऐसा कुछ नहीं करते। प्रकृति ने उन्हें जैसा बनाया है, वे वैसे ही रहते हैं। जिसके लिए जो भोजन तय किया है, वह वही खाता है। वे कभी प्रकृति को हानि नहीं पहुंचाते। प्रकृति का संतुलन बनाए रखते हैं।
लेकिन मानव अपनी प्रकृति के विपरीत भी कार्य करता है। षाकाहारी बनाने के बावजूद वह मांसाहार भी कर लेता है। जो चीज कच्चे रूप में नहीं खा सकता, उसके पकाकर खा लेता है। वह भोजन के नाम पर कुत्ता-बिल्ली तो क्या सांप-बिच्छु जैसे जहरीले जीव भी खा लेता है। कभी सी-फूड के नाम पर जलीय जीव-जंतुओं को अपना भोजन बना लेता है। अपने मौज-षौक के लिए पषु-पक्षियों, जलीय जीवों का षिकार करता है। उन्हें अपना भोजन बना लेता है।
पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के कारण मानव अपनी सुविधाओं के लिए तरह-तरह के आविष्कार कर लेता है। चाहे उससे खुद का तो क्या धरती के अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में हो तो भी उसे कोई परवाह नहीं। आखिर कब तक मानव इस तरह से अपने जीवन के साथ अन्य प्राणियों का जीवन भी खतरे में डालता रहेगा। क्या यही है मानव के बुद्धिमान होने का मतलब।

Praveen Kumar Soretiya

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