हमें यह सुन कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि हरियाणा केमुख्य मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर अब अपने नाम के साथ “खट्टर” शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहते यह तो होना ही था क्योंकि नागपुर के वैज्ञानिकों की प्रयोग शाला का प्रोजेक्ट स्वयं -के-सेवक हरयाणा में सफल नहीं हो सका है ? क्योंकि जाट बहुल इलाके की राजनीती में ‘चौधरी’, ‘हुडा’, ‘लाल’ ‘चौटाला’ तो चल सकते है पर कोई खट्टर पट्टर नहीं चल सकता है , प्रयोग के तौर पर जाटों को अलग थलग करने की चाल, सफल होने से पहले ही असफल हो चुकी है एक मेहनतकश दबंग लोगो का क्षेत्र राजनीती प्रयोग शाला बन कर बर्बादी के कगार पर पहुँच गया है ? जिस बेदर्दी से जाटों के नाम पर गैर जाटों के व्यापारिक प्रतिष्ठान और लुटे और जलाये गए हैं उसके बाद अब लोग हरयाणा में आगे कोई निवेश करने से कतरा रहे हैं ? इस लिए मुख्य मंत्री जी मनोहर लाल खट्टर में से केवल “खट्टर” शब्द निकाल देने से कोई फायदा नहीं होगा यह गुजरात नहीं हैं यहाँ का व्यापर खेती पर निर्भर है और खेती जाटों के अधिकार क्षेत्र में हैं और वही सत्ता से बहार हैं ? तो गाड़ी आगे कैसे चलेगी ? त्यागपत्र तो देना ही पड़ेगा ?
sohanpal singh