“यौवन”

उर्मिला फुलवरिया
उर्मिला फुलवरिया
वर्तमान में युवती के जीवन में यौवन ने दस्तक दी है
वह नवयौवना यौवन के प्रेम के विचारों के अधेड़बुन में यौवन के प्रेम का आभास करते हुए भविष्य तक का सफर तय कर लेती है ……तब एक प्रश्न उसके जहन को झकझोर देता है कि यौवन की मिठास की घघरी रीतने के पश्चात भी क्या मेरा जीवन संगी जो मेरा प्रेमी भी है मुझे हृदय की कशिश से प्रेम कर पाएगा ?
इसी भाव को इंगित करते हुए मेरी श्रृंगार रस की पृष्ठभूमि से आेत-प्रोत मेरी रचना
“यौवन “प्रस्तुत है ……..

स्वर्ण सा स्वर्णिम यौवन उभरा
बाल्यावस्था आज विलुप्त हुई
आज जवानी की दहलीज पर
प्यार की ज्योत्सना प्रस्फुटित हुई ।
कपकपी सी ड़री-ड़री सी
दृष्टिगत की मैंने सारी सृष्टि
लग गई है आग जहन में
प्यार की हो रही वृष्टि ।
अपलक से देख रहे मेरे चक्षु
प्रकृति का यह अजीब इतिहास है
वर्तमान थी कभी बाल्यावस्था
भूत वो,यौवन आज वर्तमान है।
क्रमबद्ध जुड़ा हुआ है यह जीवन
उषा व निशा का मिलाप है
दुख पश्चात सुख,सुख पश्चात दुख
ईश्वर का यह एक विधान है ।
हृदयगत निज भावों को दबाकर
लोचन खोले मैंने आज अभी
अनभिज्ञ सी अपने आप से दर्पण में
निहार रही अपने अंग प्रत्यंग सभी ।
अधर हुए है गुलाब पंखुड़ियाँ
उरोजो ने भी लिया हैं उभार
मृगनयनी से हुए है नेत्र मेरे
अहसास देकर करो ईश्वर मेरा उद्धार ।
अधिकार न रहा मेरा मुझ पर
रोका दिल को सौ बार मिन्नते कर
न रूका कभी,न रूका अभी
अलग हुआ तोड़ फरियाद सभी ।
मिला जाकर जिससे मेरा दिल
वह सुकुमार सा इंसान था
आगोश में मेरा उसके रहना
सिर्फ मेरा अब यह काम था।
अधरों से अधरों का स्पन्दन
अंगों से अंगों का मिलन
अन्तर्मन में तड़प जगाता मेरे
तेरे अटूट प्यार का मधुवन ।
आलिगन बद्ध हो आँचल मेरा
निखर जाता मेरा रूप लावण्य सारा
लग गई अब कसक प्यार की
फिरता मेरा दिल मारा-मारा ।
भूत गया वर्तमान एक दिन जायेगा
कालरूपी भविष्य मेरी तरफ कदम बढ़ाएगा
यौवन निर्झर मुझसे अलग राह बनाएगा
तब क्या तेरा प्यार उमंग जगाएगा ।
एेसा जिस दिन धरा पर होगा
पास मेरे तेरा सिर्फ प्यार होगा
उस दिन सफल मेरा संसार होगा
तु जीवन तपस्या का वरदान होगा ।
मन मेरा इतना उद्धेलित हुआ कि
मैंने इसे कविता का रूप दिया
यौवनकाल मनन कर ,बुढ़ापे तक सफर किया
जीवन सत्य से स्वयं को परिचित किया ।।

उर्मिला फुलवारिया
पाली-मारवाड़ (राजस्थान)

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