अतीत के झरोखे

रश्मि जैन
रश्मि जैन
जानते हो…
आज तुम्हारे बिना
कुछ भी अच्छा नही लग रहा
बहुत याद आ रहे हो..
तुमने वादा तो किया आने का
पर तुम अपना वायदा
निभा ना सके
हमेशा की तरह मैं तुम्हारा
इंतज़ार करती रही..
वक़्त जैसे रुक सा गया था मगर
घड़ी की सुइयों की टिक-टिक
कमरे में गूँजती रही..
वक़्त बिताये नही बीत रहा था
याद आने लगी थी भूली बिसरी यादेँ
पढ़ते थे साथ जब कॉलेज में हम दोनों
इंतज़ार तो तब भी कराते थे तुम हमेशा पर मुझे अच्छा लगता था तब
तुम्हारा इंतज़ार करना
लेकिन कल कई सालों के बाद
किया था तुमने मिलने का वादा
पर इंतज़ार कराने की आदत
गई नही अभी तक तुम्हारी
“वादा करके भी नही आते हो
तुमसे अच्छी तुम्हारी याद है
तन्हा पाते ही चली आती है
कभी वापिस ना जाने के लिए”
कितनी खुश थी मै
कितनी बेकरार थी मै मिलने के लिए
पर तुमने ना आकर मेरी सारी
खुशीयों पर पानी फेर दिया..
रोती रही मै दिल ही दिल में
किसे कहती दिल की बात
छुपा लिया आँसुओ को
‘वादा करके भी नही आये
कुछ तो मज़बूरी रही होगी तुम्हारी
क्या दोष दे तुमको
मिलने का वादा करके निभा ना पाये’
क्यों जीवित कर दिया उन यादों को
दफना चुकी थी जिन को
घेर लिया मुझे आज फिर से
तुम नही जानते कितना मुश्किल होगा
अब मेरे लिए
‘अतीत के झरोखे से बाहर निकलना’..

रश्मि डी जैन
महा सचिव
आगमन साहित्यक संस्थान

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