जैसे वोट पेड़ पर लगते हैं!

प्रधानमंत्रीजी ने कई बार ऐसे जुमले प्रयोग में लिए हैं जो अप्रासंगिक हैं। जैसे उन्होंने कई बार कहा कि ‘‘मेरे पास जादू की कोई छड़ी नहीं है’’ या फिर उनका ताजा बयान कि ‘‘पैसे पेड़ पर नहीं उगते।’’
मुझे इस बात पर त्रेतायुग में रामायण काल का वह प्रसिद्ध दोहा याद आता है जब अपने अहंकार के कारण सारा परिवार युद्ध में होम करने के बाद रावण अपने परिवार को ब्रह्मज्ञान का उपदेश देने लगता है और तुलसीदास इसपर लिखते हैं कि ‘‘पर उपदेस कुसल बहुतेरे’’।
लगता है प्रधानमंत्रीजी बयान देने से पहले ये भूल जाते हैं कि उन्हीं की सरकार के कई मंत्री कई घोटालों में जेलों की यात्राएँ कर चुके हैं और ताजे घोटाले में कई मंत्री जेल यात्रा की तैयारी में हैं। इतने घोटालों में कमाया गया धन क्या पेड़ पर लगा हुआ था कि उनके भ्रष्टमंत्री जब झाड़ें और तोड़ लें। जनता जब अपने गाढ़े पसीने की कमाई टैक्स के रूप में चुकाती है तो उसे ये समझाने की आवश्यकता नहीं है कि पैसा कहाँ से आता है।
प्रधानमंत्रीजी बहुत भोले पन से ये कहते हैं कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि घुमाया और सब ठीक हो गया पर मैं प्रधानमंत्रीजी को ये कहना चाहूंगा कि जनता के पास ऐसी जादू की छड़ी है कि जब वह घूमती है तो अच्छे अच्छे गायब हो जाते हैं तथा समय की गर्द में समा जाते हैं।
प्रधानमंत्रीजी, अब भी समय बचा है, देश को बचा सकते हो तो बचा लो वरना बाद में मत कहना कि मैं तो भूल गया था कि वोट भी पेड़ पर नहीं लगते………

-स्वतंत्र शर्मा, रिसर्च स्कॉलर

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