प्रधनमन्त्री बार-बार भावुक क्यों हो रहे हैं ?

सुभाष शर्मा
सुभाष शर्मा
प्रधनमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, एक कठोर प्रशासक और पक्के इरादों वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं । पिछले लगभग ढाई वर्षों में वे सार्वजनिक रूप से भावुक होते देखे गये। कभी आडवाणी जी के सम्मुख लोक सभा के सेंट्रल हाल में तो कभी अपने बचपन के संघर्ष को याद करके । पर हर बार एक स्वाभाविक अवसर अथवा वजह भावुकता से जुड़ी थी । जाहिर है प्रधानमंत्री के आँसू पूरे देश के साथ साझा हुवे !
इधर नोट बन्दी के बाद प्रधानमंत्री गोवा के एक कार्यक्रम में अपनी जान को खतरा बताते हुवे, अत्यधिक भावुक हुवे तो थोड़ा सा अप्रासंगिक लगा । इतने बड़े देश का इतना लोकप्रिय प्रधानमन्त्री यदि ” कुछ लोग ” मुझे जान से मार देंगे कह कर आँखें नम कर लें तो ये नरेन्द्र भाई मोदी के चरित्र से मेल नहीँ खाता है ! आज प्रातः भाजपा के संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नोट बन्दी के बाद उत्पन्न स्थिति का जनता को जवाब देने की प्रेरणा अपने सांसदों कॊ देते-देते, तीन बार रूमाल से आँखें पोंछते और रुंधे हुवे गले से आह्वान करते नज़र आये तो मुझ जैसी राजनैतिक समीक्षक को भी विचार करने का मसाला दे गये !
यहाँ कुछ प्रश्न खड़े होते हैं : क्या प्रधनमन्त्री का जीवन वास्तव में खतरे में है ?क्या प्रधनमन्त्री को अपने ही दल में वांछित सहयोग नहीँ मिल रहा ? क्या प्रधानमंत्री अपने आत्मविश्वास पर भरोसा नहीँ कर पा रहे हैं ? क्या प्रधनमन्त्री को ये अहसास हो गया है कि , नोट बन्दी का तो हर वर्ग स्वागत कर रहा है , पर विकल्प के चयन में जल्दबाजी हो गयी ? कुछ तो है । सभी साथियों के विचार इस विषय पर आमन्त्रित हैं । जो साथी सिर्फ़ मेरी आलोचना के लिये ही टिप्पणी करना चाहते हैं , उनका भी स्वागत है ; कुछ सीखने को ही मिलेगा ।

पत्रकार सुभाष शर्मा के फेसबुक पेज से साभार

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