भ्रष्टाचार आखिर मिटेगा कैसे?

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
मोदी जी,
आज हर कोई भ्रष्टाचार से परेशान है, और कई इसमें लिप्त हैं! इस भ्रष्टाचार के इतने सारे भिन्न भिन्न रूप हैं – कुछ लुभावने तो कुछ डरावने !– ये आखिर मिटेगा कैसे?
काला धन और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक जरूर हैं लेकिन पर्यायवाची तो कतई भी नहीं हैं. भ्रष्टाचार में काला धन अधिक काम में आता है. हर किसी को अपने छोटे मोटे काम कराने के लिए अगले की जेब गरम करनी ही पड़ती है. ऐसा न करने पर रोज़ रोज़ के धक्के खाना सब की जिंदगी का एक कटु तजुर्बा है. इस लिए पहले पेट पूजा फिर काम दूजा के फोर्मुले पर हर तरफ अमल होता है. ऐसा नहीं है की सिर्फ काले धन का रोकडा ही भ्रष्टाचार के चडावे में चलन में है, सफ़ेद धन भी काफी तादाद में काम में आता है, जिसे व्यापारी व कम्पनियाँ तरह तरह के खर्चों में दिखा देती हैं. सत्ताधारीयों, अफसरों, डोक्टरों, आदि की विदेश यात्राओं, कांफेरेंसों, महँगी गिफ्टों आदि का खर्च खातों में मांड देते हैं. इसे बिजनस प्रमोशन हेतु बता कर आयकर बचा लेते हैं. बदले में ये नेता, अफसर कंपनी के मन माफिक काम करके एहसान का बदला चुकाने के लिए तत्पर रहते हैं.
500 और 1000 के नोट तो बंद हो गए. इन नोटों से इकठ्ठा किया हुआ काला धन 31 दिसंबर तक या तो बाहर आ जाएगा या फिर जितने बंद नोट जमा नहीं होंगे उनके बदले सरकारी खजाने में उतना इजाफा स्वतः ही हो जाएगा.
काला धन याने आयकर न चुका कर इकठ्ठा किया हुआ धन. कुछ धन तो हमारे देश में दादी माँ, नानी माँ, माताएं, बहनें व साधारण तया हर गृहणि आदि काल से ही भविष्य के लिए, हारी बिमारी के लिए, शादी ब्याह के लिए, घर गृहस्ती में बहन बेटियों के लेन देन के लिए बचा कर पाई पाई जोड़ कर रखती आ रहीं हैं. इसे आदतन जोड़ा हुआ धन, पारंपरिक रूप का धन या मजबूरी में, लाचारी में काम आने वाला धन कहा जा सकता है. इसे समाज में एक अ-लिखित स्वीकृति मिली हुई है हालांकि इसे यदि आयकर से बचाकर जोड़ा गया है तो आएगा तो कालाधन की श्रेणी में ही.
दूसरा जो पैसा आम आदमी अपने रोज मर्रा के काम निकलवाने के लिए सुविधा शुल्क के रूप में बाबुओं, अफसरों, नेताओं को देता है, उसे भी सामाजिक बुराई नहीं बल्कि आज की जरूरत मानते हुई अनकही मान्यता मिली हुई है. इस कार्य में आदमी की लाचारी होती है, काम नहीं होने या अटक जाने का डर होता है. ये पैसा अधिकतर टैक्स की चोरी से बचाया हुआ ही होता है. लेने वाला भी इस पैसे को ऊपर का ऊपर ही या तो एशो आराम में खर्च करता रहता है या फिर अपने सगे सम्बन्धियों के नाम कोई फर्जी आय दिखा कर बैंक-बेलेंस, जमीन जायदाद निर्मित करता रहता है. याने इस काम में केश, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार और अपराध शामिल है.
कुछ नेताओं ने प्रश्न उठायें हैं की क्या पार्टियां चुनाव में सफ़ेद धन खर्च करती हैं? तो आम लोगों के मन में आशंकाएं गहरी होती जा रही हैं की यदि राजनीतिक पार्टियां जनता से जो चन्दा लेती हैं वो बेनामी है, टैक्स चोरी का है और पार्टियों का आय व्यय का लेखा जोखा सूचना के अधिकार में भी नहीं आता तो ये भ्रष्टाचार नामक बिमारी ख़तम कैसे होगी? आइन्दा से क्या पार्टियां चेक से चन्दा लेंगी? नहीं लेंगी तो भ्रष्टाचार का सफाया तो दूर की बात इस पर कुछ क्षणिक सा भी अंकुश लग पायेगा?. जो बाबू, अफसर, नेता रिश्वत ले ले के और कई व्यापारी, उद्योगपति इन को रिश्वत दे दे के कुछ ही समय में करोड़ों के मालिक बन जाते हैं, ऐसे में कुछ समय बाद ये सिलसिला वापस शुरू हो गया तो??
रिश्वत लेने वाले आये दिन पकडे जाते हैं और कुछ दिन बाद वापस बाहर भी आ जाते हैं, लम्बे मुकदमों के बाद बा=इज्जत बरी हो जाते हैं. आयकर छापा जिसके पड गया उसकी तो समाज में इज्जत और बढ जाती है. उनके बच्चों के रिश्ते और अधिक धनवालों के यहाँ से आने लग जाते हैं. याने समाज में ये जेल जाना, बाहर आना, छापे पढ़ना, रिश्वत देना, रिश्वत लेना आदि बातों को बुराई नहीं बल्कि सिस्टम का अभिन्न हिस्सा मान लिया गया है.
इन सब का नतीजा सबके सामने हैं. उदाहरण स्वरुप सरकारी अस्पतालों, स्कूलों व अन्य सरकारी सेवाओं की यदि समीक्षा करें तो इनके स्तर में भ्रष्टाचार के चलते कितनी भयंकर गिरावट आ गयी है. जिस तोपदडा स्कूल में कभी २ से ३००० बच्चे अध्ययन करते थे और उनमें से कईयों ने सफलता के शिखर चूमे आज वहां १००-२०० बच्चों को भी स्कूल तरस रहा है. जिस ज.ला.ने. मेडिकल कॉलेज में पड़कर डॉक्टर बनने में गर्व होता था, जहाँ हमेशा विद्यार्थी और मरीज सभी डॉक्टर-गुरुओं का आदर करते थे, आज वहीँ आये दिन तोड़फोड़, मार पीट की वारदातें होती रहती है. सुविधाओं और सेवाओं में दिन पर दिन कमी होते होते आज आम जन को निजी अस्पतालों में मजबूरन जाना पड़ रहा है. ऐसा ही फर्क सरकारी और निजी यूनिवर्सिटी में भी देखा जा सकता है.
यदि इन भ्रष्टाचारियों को चुन चुन कर सजा देने लगे तो किन किन को जेल जाना पडेगा और फिर उनको वास्तव में कोई सजा मिलेगी क्या ?? ऐसी चर्चाएँ नाइयों के सेलूनों, चाय के ठेलों, पान की दुकानों पर आज खूब जोर शोर से चल रही हैं. आम जन नोट बंद करने से खुश तो है पर शंकित भी है. ऐसा कुछ करना जरूरी है की भ्रष्टाचारियों को वास्तव में डर लगे, उनके अच्छे बुरे कामों की समीक्षा हो, काम समय पर करें, बे वजह फाइलों को न रोक कर रखें, पुलिस नागरिकों को डराने के बजाय उनका दोस्त होने का एहसास दिलाएं, महिलाएं बेकोफ़ शिकायतें दर्ज करा सकें, यातायात व्यवस्तित हो, सड़कों पर शोर, धुआं, भीड़ भाड, पार्किंग पर कण्ट्रोल हो, सबको पीने का स्वच्छ पानी मिले, भूखीं को खाना मिले, बीमार को दवा मिल सके, शहर व गाँव साफ़ हों, झीलें साफ़ हों, नालों की बदबू ख़त्म हो, मलेरिया-डेंगू के मच्छरों का खात्मा हो…………. ऐसा हो सके ..ऐसी सब उम्मीद कर रहे हैं आप से मोदी जी. तब अपने आप ही हर भारतवासी कह उठेगा – “अच्छे दिन आ गए”…..अच्छे दिन आ गए…………………………

डॉ.अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट

2 thoughts on “भ्रष्टाचार आखिर मिटेगा कैसे?”

  1. कुछ लोग भ्रष्टाचार को सुविधा शुल्क के रूप में भी देखते हैं
    कुछ समय बचाने का तरीका भी देखते हैं

  2. कुछ लोग भ्रष्टाचार को सुविधा के रूप में देखते हैं और कुछ समय बचाने का तरीका।यह तभी कम हो सकता है जब दोनों पक्ष कार को समान दण्ड दिया जायेगा

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