क्रांतिकारी बदलाव

Bhanwar Meghwanshiबैलगाड़ी से जाते हुये
उन्होंने मेरे दादा से
गांव की ही बोली में
पूछी थी उनकी “जात”
उन्होंने विनीत भाव से
बता दी.

वे नाराज हुये
और चले गये
उतार कर गाड़ी से उनको
दादा ने इसको
अपनी नियती माना.

फिर एक दिन
रेलयात्रा के दौरान
उन्होंने मीठे स्वर में
खड़ी बोली में जाननी चाही
मेरे पिता से उनकी “जाति”
पिता थोड़ा रूष्ट हुये
फिर भी उन्होंने दे दी
अपनी जाति की जानकारी.

सुनकर वो खिन्न हो गये
पर क्या कर सकते थे.
रेल से नीचे
उतरने से तो रहे
सो रह गये
मन मसोस कर .
बैठे रहे साथ में चुपचाप.
बात नहीं की फिर
थोड़ा दूर खिसक लिये.

हाल में उन्होंने
धरती से मीलों उपर
उड़ते हुये
बड़े ही प्रगतिशील अंदाज में
सभ्य अंग्रेजी में
‘एक्सक्यूज मी’ कहते हुये
पूछ ही ली मुझसे मेरी ‘ कास्ट ‘

मेैने जवाब में घूरा उनको
मेरी आँखों का ताप
असहज कर गया उन्हें
खामोशी ओढ़े
बुत बन कर बैठे रहे वे
धरती पर आने तक.

मैं सोचता रहा
आखिर क्या बदला
तीन पीढ़ी के इस सफर में ?
बदले है सिर्फ
मॉड ऑफ ट्रांसपोर्टेशन
भाषा और वेशभूषा .
पर दिमाग में भरा भूसा
तो जस का तस रहा.

और अब वे कहते है
कहां है जातिवाद आजकल ?
कौन मानता है इस
कालबाह्य चीज को .
हालांकि वे जान लेना चाहते है
किसी भी तरह जाति
क्योंकि जाति जाने बिना
कहां चैन पड़़ता है उनको ?

इन दिनों
वे चाह रहे है कि
समाज में आये इस
” क्रांतिकारी बदलाव” पर
सहमति जताऊं
और तालियां बजाऊं !
क्या वाकई बजाऊं ?

– भँवर मेघवंशी
( [email protected] )

error: Content is protected !!