दीपक की लौ में पढ़ाने की मुहिम

‘‘कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, तबीयत से एक पत्थर तो उछालों यारों।’’ बदलाव का माद्दा रखने वाले 20 वर्षीय पूरण कालबेलिया ने पत्थर उछाला है। यायावर कौम से संबंध रखता है पूरण। बीन बजाकर सांप को नचाने वाली कालबेलिया कौम का पूरण चिमनी के उजाले में अपने समुदाय को शिक्षित व जागरूक करने की मुहिम में लगा हुआ है। उसका कहना है कि दीपक के मंद उजाले में मेरे समाज के बच्चे शिक्षित हो रहे है, समय तो लगेगा लेकिन बदलाव जरूर होगा।
समाज को शिक्षित व जागरूक करने की मुहिम उसने मेलियास गांव में छेड़ी। वह बताता है कि ‘‘बात तब की है जब मैं चौथी कक्षा में पढ़ता था, सरकार ने साक्षरता अभियान चला रखा था। हमारे गांव में शंकर सिंह नाम का व्यक्ति रात में गांव को लोगों को पढ़ाता था। तब मैंनें ढ़ाना कि मैं अपनी बस्ती के लोगों को पढ़ाऊंगा।’’
पूरण अपने संकल्प को पूरा करने में लग गया। उसने जतन कर फटी पुरानी पाठ्य सामग्री एकत्र की। कुछ पुरानी स्लेटे, ब्लैक बोर्ड पर अक्षर ज्ञान देना शुरू किया। उसने अपनी बस्ती के लोगों को हस्ताक्षर करना सिखाया। पूरण बताता है कि ‘‘अपना नाम स्वयं लिख लेने की खुशी उनके चेहरे बता रहे थे और उनकी खुशी हो देखकर मुझे अपार प्रसन्नता थी।’’
पूरण की यह मुहिम ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी। गांव के उच्च वर्ग के लोगों को पूरण का मिशन नागवार गुजरा। उन्होंने उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। सार्वजनिक स्थानों पर सवर्ण लोग उसकी मुहिम का मखौल उड़ाने लगे। उस पर टोसे मारने लगे थे। व्यंग्यात्मक टिप्पणियों और इस प्रकार की प्रताड़नाओं से पूरण का मन तनिक भी कमजोर नहीं हुआ। उसकी मुहिम को ब्रेक तब लग गए जब शंकर सिंह ने राशन डिलर पर दबाव डालकर उसे पूरण के समुदाय के लोगों को केरोसिन नहीं देने दिया। जब केरोसिन नहीं मिला तो चिमनी नहीं जल पाई। इस प्रकार पूरण के ज्ञान प्रकाश के पंुज को बुझा दिया गया।
कुछ सालों पूर्व पूरण अपने परिवार सहित मांडल तहसील के बलाई खेड़ा के पास स्थित कालबेलिया बस्ती में आकर बस गए। यहां भी पूरण बच्चों को पढ़ाने की मुहिम में लगा है। पूरण की स्कूल रात में ही चलती है। दिन में बच्चे नहीं आते है और पूरण भी मजदूरी पर जाता है। बस्ती में बिजली तो है नहीं ऐसे में पूरण केरोसिन का बंदोबस्त कर चिमनी से उजाले में बच्चों को पढ़ाता है। उसके 4 मित्र भी इस मुहिम में उसके साथ है। जब लोगों ने अपना नाम लिखना सीख लिया तो वो अपने बच्चों को रात में पढ़ने के लिए भेजने लगे। बच्चे दिन में पशु चराने जाते और रात में पढ़ने आते थे।
बलाई खेड़ा के पास स्थित इस कालबेलिया बस्ती में 60 परिवार निवास करते हैै तथा 130 मतदाता है। इस समुदाय के लोग अत्यंत गरीबी में जी में जी रहे है। कई सालों 2 परिवारों के इंदिरा आवास योजना के तहत आवास बनाए गए थे। बाकी के परिवार टपरियों और तम्बूओं में ही निवास कर है। खेती के लिए एक इंच जमीन भी नहीं है। गरीबी के थपेड़ों में जुलस रहे इन परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल नहीं किए गए है।
पूरण आजकल इस कालबेलिया बस्ती के 30 बच्चों को पढ़ाने में लगा है। वो दिन में ईट भट्टे पर काम करता है और रात में बच्चों को पढ़ाता है। क्या बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं जाते है ? इस सवाल पर उसका कहना कि बच्चे स्कूल नहीं जा पाते है। बच्चों के माता-पिता मजदूरी करने चले जाते है और बच्चे पशु चराने चले जाते है। स्कूल का दूर होना भी बड़ा कारण है। पूरण ओपन स्टेट से 10वीं करने के लिए पढ़ाई भी कर रहा है।
उसका कहना है कि मेरे साथ समाज के 10-12 युवा और जुड़े है। जो सामाजिक चेतना के लिए प्रयास कर रहे है। अभी तो हमारी समाज के लोग को अपने अधिकारों की जानकारी भी नहीं है। हमारा मुख्य उद्देश्य है समाज को शिक्षित करना। अगर समाज शिक्षित हो जाएगा तो अपने आप जाग्रति आ जाएगी।           ~लखन सालवी 

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