अधूरी चाहत…

रश्मि जैन
रश्मि जैन
हां तुम्ही तो हो वो जिसे मैं चाह कर भी आज तक नही भूल पाई..हां आज भी चलचित्र की भांति एक-एक वाक्या मेरी आँखों के सामने आ रहा है…
उस रोज जब मैं कॉलेज जाने के लिए घर से निकली, अभी नुक्कड़ तक ही पहुची थी कि तुम वहा खड़े नज़र आ गए..तुम्हारा टकटकी लगाकर मेरी ओर देखना इस बात की ओर इंगित कर रहा था मानो तुम्हें मेरा ही इंतज़ार था मैंने तुम्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया और कॉलेज की ओर बढ़ चली…
अक्सर मै तुम्हे कॉलेज जाते आते वही खड़ा देखती थी शायद मुझे भी तुम्हे वहां देखने की आदत पड़ गई थी.. अक्सर सोचने लगी थी तुम्हारे बारे में..कौन हो तुम.. क्या करते हो और क्यूँ रोज़ वहा आते हो बस इसी पशोपेश में दिन गुज़रते रहे..कई बार तुमसे पूछना भी चाहा मगर हिम्मत न जुटा सकी…
दिन बीतते गये और मेरे फाइनल एग्जाम का समय नजदीक आ गया और मै पूरी तरह से अपनी पढाई में जुट गई यानि अब घर पर ही रहकर तैयारी कर रही थी.. घर पर रहती थी मगर ध्यान तो तुम्हारी ओर ही लगा रहता था पता नही तुम अब भी वहां आते थे या नही..
एग्जाम शुरू हो गए..उस दिन पहला पेपर था इस बार तैयारी भी अच्छी तरह से नही हो पाई थी तो तुम्हारी वजह से..हां सिर्फ तुम्हारी वजह से…
जैसे ही मैं नुक्कड़ तक पहुँची मेरी निगाहें तुम्हें तलाशने लगी पर तुम नज़र न आये..तुम्हें वहा न पाकर मेरा मन अनचाही आशंका से भर गया.. लेकिन पेपर देने तो जाना ही था तो भारी मन से कॉलेज की ओर चल पड़ी..पेपर भी अच्छा न हुआ पता नही क्या हो गया था मुझे.. क्यूँ तुम्हें इतना मिस कर रही थी कभी बात तक न हुई थी हमारी.. फिर भी ऐसा क्यूँ हो रहा था..
अगले दिन तुम्हारे वहा होने की उम्मीद मन में लिये फटाफट तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल पड़ी..मन में तरह तरह के ख्याल आ जा रहे थे पता नही क्यूँ तुम्हारी एक खास जगह बन चुकी थी मेरे दिल में..कभी बात तक नही हुई फिर भी आँखे तुम्हें ही तलाश रही थी वहां न पाकर तुम्हे दिल उदास हो गया और किसी अनचाही अनहोनी की आशंका से भर उठा..हे ईश्वर, सब कुछ ठीक ठाक हो.. ऐसी दुआ मांगने लगा मेरा दिल..
तभी मेरी निगाह एक युवक पर पड़ी जो मेरी ओर ही आ रहा था पहले मुझे लगा वो वही है लेकिन थोड़ा और नज़दीक आने पर मुझे अहसास हुआ कि वो तो कोई और है मै भारी कदमो से कॉलेज की और बढ़ चली.. अचानक किसी की आवाज मेरे कानों में पड़ी ‘सुनिए’ मेरे बढ़ते हुए कदम अचानक ठहर गये.. मैंने पीछे मुड़कर देखा वही युवक खड़ा था जिसे थोड़ी देर पहले मैंने अपनी ओर आते हुए देखा था.. इससे पहले मैं कुछ बोलती वो बोल पड़ा,’क्या आपका नाम सुनीता है’ मैंने हां में गर्दन हिला दी.. और पूछा उसे मेरा नाम कैसे मालूम हुआ और मेरा पीछा क्यों कर रहा है मेरी आवाज में थोडी नाराजगी भी शामिल थी..
उसने मेरी ओर एक पैकेट बढ़ाते हुए कहा, ‘आप मुझे नही जानती.. पर मैं आपको जानता हूँ मेरे दोस्त सुमित ने आपके बारे में मुझे बताया था और सुमित ये आपके लिए छोड़ गया है अंतिम श्वाश लेने से पहले उसने ये पैकेट आपको देने के लिए मुझसे कहा था..इसमें वो लेटर है जो रोज सुमित आपको लिखता था लेकिन कभी देने की हिम्मत नही कर पाया..
शायद आप सुमित को नही जानती मगर वो आपको बहुत चाहता था पर कभी अपने दिल की बात आप तक पंहुचा न सका, बस सुबह शाम उस दुकान के पास खड़ा होकर आपको कॉलेज आते जाते निहारता रहता था’ हैरान परेशान सी मैं अब तक जो कुछ समझ नही पाई थी एकदम सब कुछ मेरी समझ में आने लगा था..
निःशब्द सी स्तब्ध खड़ी रह गई मै,मानो कोई अदृश्य शक्ति मुझे अपनी ओर खीच रही थी और मेरे कदम अनजानी राह की ओर बढ़ चले थे सिर्फ सुमित से मिलने की आस दिल में लिए..
– रश्मि जैन
महसचिव
आगमन साहित्यक संस्थान

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