नए साल पर ‘हैप्पी न्यू लाइन

रास बिहारी गौड़
रास बिहारी गौड़
लो जी, नया साल भी आ गया। धूमधड़ाके से आया। आने से पहले उसने अपनी अगुवानी में पचास दिन भेजे। सपने भेजे। उम्मीदें भेजी। कुल मिलाकर नए साल के स्वागत में नए नोट, नए वोट और नए लंगोट हवा में लहराते हुए नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि काला धन, भ्रष्टाचार, आंतकवाद, टाइप की सारी बुराइयाँ पुराने नोटों की शक्ल में आउट डेटेड हो जायेगी। आखिरकार, देश के मुखिया ने भरोसा दिलवाया है कि अलादीन के चिराग का लेटेस्ट संस्करण उनके पास है, जो नए साल में देश को स्वर्ग में तब्दील कर देगा। इस चक्कर में कइयों को ट्रायल बेस पर स्वर्गवासी बनाया जा चूका है।
पिछले पचास दिनों से हम भी इसी उम्मीद से रोजाना सुबह सवेरे तैयार होकर बैंक या ATM की लाइन में खड़े होते रहे हैं। काफी देर-देर तक खड़े रहे हैं। अपने दुःख दर्द भूलकर खड़े रहे हैं। ये जानते हुए कि नंबर आने तक भी खड़े ही रहेंगे, खड़े रहे हैं। नित नए आत्म-ज्ञान से मुठभेड़ करते रहे हैं। माया का मोह कष्ट देता है। माया नश्वर है। साथ क्या जाएगा, क्या रह जाएगा। पसीने की कमाई वह कमाई है ,जिसे कमाने से ज्यादा पाने में पसीना बहे।
कुल मिलाकर उम्मीद और उत्साह से भरे हम केश के लिए नहीं, देश के लिए लाइन में खड़े रहे। हमे बताया गया कि सेना का जवान सरहद पर खड़ा है, सरकारी फरमान सर पे खड़ा है, नेता नौटंकी (चुनाव) में खड़ा है, तो हमें भी ए.टी.एम्.के बाहर ,बैकों की छाती या जहाँ भी पाँव रखने की जगह मिले, खड़े होना चाहिये। इससे हमे अपने पैरों पर खड़े होने की तमीज आएगी, बल्कि जो हमारे कंधो पर खड़े हैं,उन्हें भी आसानी से ढ़ो सकेंगे। हमारे यूँ खड़े रहने से आतंकवाद बैठ जाएगा। पाकिस्तान उठ जाएगा। बेईमान सर पे रख के भाग छूटेंगे। इतने सारे कारणों के साथ हम एक पाँव पर भी खड़े हो सकते थे, सरकार ने तो फिर भी दोनों की इजाजत दे रखी थी। पहली बार लगा कि खड़े-खड़े नए साल का इन्तजार करना कितने मजे देता है। रोज भाषणों से पता चलता था कि नया साल अपने निश्चित समय पर ही आ रहा है और अपने साथ पचास दिन का तोहफा भी ला रहा है।
इस आने और पाने में कुछ अल्पबुद्धि रोड़ा बनकर खड़े है। वे इसे आर्थिक आधार पर आँक रहे हैं, सामजिक व्यवस्था का वास्ता दे रहे हैं, शिक्षा सरीखी दकियानूसी अवधारणा से जोड़ रहे हैं। यहाँ तक कि अपनी तकलीफों को देश से भी बड़ा मान रहे हैं। मौत जैसे सर्वभौमिक सत्य को नोटबंदी या कहे नए साल का अशुभ आगमन कह रहे हैं। सचमुच ऐसे लोगो को जीने का कोई अधिकार नहीं है, इन्हें भी बैंक की लाइन में खड़े- खड़े ही उठ जाना चाहिए था। इन कबूतरों को कौन समझाए कि उनके फड़फड़ाने से हवा का रुख नहीं बदला करता । वह भी तब, जब उनके घोसले हमारे स्वच्छ्ता अभियान को अवरुद्ध करते हों। बड़े आसमान में बड़ी उडान के लिए परों की नहीं डैनों की जरुरत है। नया साल इस बड़प्पन के साथ आ गया है।
बैकों की रौनकें बता रहा है कि नया साल अपने साथ कितना माल ला रहा है। पुराना जमा हो रहा है, नया बँट रहा हैं। औकात के हिसाब से बँट रहा हैं। जो जितना बड़ा आदमी, उसे उतनी ही ऊपर से मिल रहा है। जो जितना छोटा ,उसे उतने में सब्र करना पड़ रहा है और जिसे नहीं मिल रहा है तो फिर उसकी हैसियत पर बात ही बेमानी है। भला रेंगने वाले का कद खड़े होने से थोड़े ही नापा जाता है। टीवी के तमाम चैनल बड़े उत्साहित है। बड़ी बड़ी बाते कर रहे हैं।वे इसलिए खुश है कि इस बार मनोरंजक कार्यक्रम के लिए सरकार नेताओं के फ्री भाषण उपलब्ध करवाएगी। जिसमे अभिनय, संगीत, मिमिक्री, फंतासी, रोमांच सब एक साथ मिलेगा।
कुल मिलाकर नया साल आ गया है। हम आज भी केश की लाइन में खड़े है। जवान देश की लाइन में खड़े है। नेताजी ऐश की लाइन में हैं। आतंकवाद बैठ गया है। पाकिस्तान उठ गया है। कालेधन के चेहरे पर फेयर एंड लवली की चमक है।हमें लाइन में खड़ा होना आ गया है, हम लाइन पर आ गए हैं। हमने बड़ी से भी बड़ी लाइन खीच दी है।इसलिए नए साल पर इस बार ‘हैप्पी न्यू इयर’ की जगह ‘हैप्पी न्यू लाइन ‘कह रहे रहे हैं। आखिर मामला देश का जो है।

रास बिहारी गौड़
www.rasbiharigaur.com

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