क़लम उठ जाती है

नटवर विद्यार्थी
नटवर विद्यार्थी
रंग डालकर पत्नी बोली ,
तुम भी मुझ पर डालो ।
अगर नहीं है पास तुम्हारे ,
सौ का नोट निकालो ।

मैं बोला हे महासुन्दरी ,
रंग कहाँ से लाऊँ ?
पहली तनख्वाह पाते ही ,
नोट तुम्हें संभलाऊँ ।

वह बोली ऊपर के पैसे ,
कभी नहीं तुम करते ।
सारे लोग जिसे करते हैं ,
तुम करने से डरते ।

मैं बोला ऐसा करने से ,
मर जाना है अच्छा ।
मैं भारत का युग-निर्माता,
अध्यापक हूँ सच्चा ।

पत्नी बोली प्रियवर तुमसे ,
यही मुझे सुनना है ।
एक नहीं सौ जनम मिले तो ,
सिर्फ तुम्हें चुनना है ।

मुझे गर्व है मैनें ऐसा ,
सच्चा साथी पाया ।
साथ रहूँगी हरदम तेरे ,
बनकर तेरी छाया ।
-नटवर पारीक

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