मोदी के गुजरात मे दलितों का सामूहिक बहिष्कार

मोदी जी ,शाह जी और रुपाणी जी थोड़ी फुर्सत और संवेदना है आपके पास फिणाव के वणकरों के लिये ?

Bhanwar Meghwanshiवायब्रेंट गुजरात के आनंद जिले के खम्भात तालुके का एक गाँव है फिणाव,जहाँ पर पिछले दो साल से 33 दलित बुनकर परिवारों का पूर्णत सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार जारी है ,इस अमानवीय अन्याय के बारे में सत्ता ,नौकरशाही और दलित नेता सब शर्मनाक ढंग से खामोश है .
फिणाव में वैसे तो तीन दलित समुदाय निवास करते है ,जिसमें बुनकर ( वनकर ) ,रोहित तथा वाल्मीकि शामिल है ,इन दलितों को वर्ष 1988-89 में ग्राम पंचायत ने राजकीय पाठशाला के कम्पाउंड के बाहर सड़क के पास 50 फिट जमीन देने का प्रस्ताव पारित किया और जमीन दलितों को सुपुर्द कर दी ,इसी तरह की जमीन हर समुदाय को दी गई ,जहाँ पर उक्त समुदायों ने अपने अपने उपयोग के लिए सामुदायिक भवन बना लिये ,मगर दलित समुदाय के लोग वहां पर अर्थाभाव के चलते किसी प्रकार का निर्माण नही कर पाये ,लेकिन गाँव में सबको मालूम था कि यह जमीन का टुकड़ा दलित समुदाय का है .बस इतना सा किया गया कि दलितों ने जवाहर रोजगार योजना के पैसे से वहां पर एक चबूतरा बना लिया गया .
बाद में जब इस जमीन का कोई निरंतर उपयोग नहीं हुआ तो लोग वहां कचरा डालने लगे .इसके साथ ही यह भी हुआ कि सड़क का निर्माण के चलते यह जमीन नीचे चली गई तो चबूतरे को ऊँचा किया गया .साथ ही दलित समुदाय की सभी उपजाति के लोगों ने मिलकर तय किया कि एक अम्बेडकर हाल बनाया जाये और वहां पर बाबा साहब अम्बेडकर की एक प्रतिमा अपने खर्च पर स्थापित की जाये .इस हेतु निर्माण स्वीकृति के लिए सितम्बर 2015 को ग्रामपंचायत और पटवारी को लिखित पत्र दिए गए .जब ग्राम पंचायत ने निर्माण स्वीकृति दे दी तो काम शुरू किया गया ,जैसे ही गाँव के बहुसंख्यक और वर्चस्व वाले पटेल समुदाय को यह पता चला कि दलित समुदाय के लोग डॉ अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने जा रहे है ,उन्होंने खुलकर इसका विरोध शुरू कर दिया .लगभग 50 पटेल युवा मोटरसाईकलों पर सवार हो कर फ़िल्मी अंदाज़ में आये और उन्होंने दलितों को जातिगत गालियां दी और बाबा साहब के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने लगे ,इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने काम भी बंद करवा दिया .
फिणाव के जागरूक दलितों ने इसकी शिकायत की ,शिकायत करने में अग्रणी भूमिका में अशोक भाई वनकर थे ,इसलिए वे पटेलों की निगाह में चढ़ गये,वे उनके प्रति शत्रुता के भाव रखने लगे .इस बीच 13 ,16 अक्तूबर 2015 को सुनवाई हुई ,पंचायत ने कोर्ट में कहा कि यह जमीन दलितों को देने का प्रस्ताव ग्राम पंचायत में मौजूद है .इस तरह दलितों का पक्ष मजबूत हो गया और पटेलों को लगा कि वे कानूनन कमजोर पड रहे है ,इसलिये उन्होंने अपनी संख्या और मजबूत होने का फायदा उठाते हुए गुंडई करने का निश्चय किया और 26 नवम्बर 2015 को अशोक भाई वनकर के परिवार पर हमला कर दिया ,हमले में 70 वर्षीय इच्छा बेन ,दक्षा बेन (38) ,प्रवीण भाई (35),जिग्नेश (20) को गंभीर चोटें आई .अशोक भाई ने इस घटना का एट्रोसिटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया ,जिसकी जाँच हुई और चालान भी हुआ ,इसके जवाब में पटेलों ने भी क्रोस केस किया ,उसमें भी पुलिस ने कार्यवाही की ,एट्रोसिटी का मुकदमा अभी भी कोर्ट में है ,जहाँ पटेल समुदाय के आरोपी पक्ष को पेशी पर जाना पड़ता है .
दलितों के इस तरह उठ खड़े होने और अन्याय का प्रतिकार करने का पटेलों ने बुरा माना ,उन्हें लगा कि यह जो बर्षों से हमारे सामने हाथ जोड़े खड़े रहते है ,वे कोर्ट कचहरी और हर सरकारी दफ्तर में उन्हें चुनौती दे रहे है और क़ानूनी तौर पर मात भी दे रहे है .जो कि उनके लिए असहय हो गया .अंततः उन्होंने कबीलाई इंसाफ करने का निर्णय लिया .
फिणाव गाँव के पटेलवास में एकजुट हुए पटेलों ने क्रमशः रोहित ,वाल्मीकि और वनकर समुदाय के दलितों को वहां पेश होने का फरमान सुनाया ,रोहित और वाल्मीकि जाति के लोग वहां गये ,उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी गई अगर वे वनकर समुदाय का साथ देंगे तो गाँव से उन्हें बहिष्कृत कर दिया जायेगा ,खेतों पर काम भी नहीं दिया जायेगा .भूमिहीन खेतिहर मजदूर इन दलित समुदायों ने पटेलों के साथ रहने में ही अपनी भलाई समझी ,मगर वनकर समुदाय के 33 परिवारों एकमुश्त सर्वसम्मति से फैसला किया कि वे पटेलों के जुल्मों के सामने झुकेंगे नहीं ,ना ही उनके गैरसंवैधानिक तरीके से लगाये गए इस मजमें में पेश होंगे ,इसलिए वनकर नहीं गए ,इससे जले भुने पटेलों ने वनकर समुदाय का सामूहिक रूप से आर्थिक व सामाजिक बहिष्कार कर दिया .
पटेलवास की गैर क़ानूनी भीड़ ने यह अन्यायकारी निर्णय लिया कि अब से कोई भी पटेल किसी भी वनकर को अपने खेत में नहीं आने देगा ,ना ही घास लेने देगा ,ना दूध देगा ,ना सब्जी बेचेगा ,ना ही ट्रेक्टर किराये देगा ,यहाँ तक कि कोई भी पटेल समाज का व्यक्ति वनकर समाज के व्यक्ति से बात भी नहीं करेगा ,अगर कोई ऐसा करता हुआ पाया गया तो उससे 5000 रूपये जुरमाना दंड स्वरुप वसूला जायेगा . नतीजा यह हुआ कि बेहद सख्ती से यह बहिष्कार की पालना की जाने लगी .
फिणाव के 33 वनकर परिवारों में से अधिकांश सिर्फ खेत मजदूरी पर ही आश्रित थे ,उनकी पीढियां पटेलों के खेतों में बटाईदारी करते बीत गई थी ,वो उनके खेतों में ही रोजगार करते थे ,वहीँ से चारा अपने पशुओं के लिए लाते थे ,एक तरह से वो अपनी आजीविका के लिए सम्पूर्ण रूप से पटेलों पर निर्भर करते थे ,इसकी बहुत ही जायज वजह यह है कि गुजरात में ज्यादातर दलितों के पास खेती के लिए एक इंच भी जमीन नहीं है .यह भूमिहीनता उनको अन्य जातियों पर निर्भर होने को मजबूर कर देता है .वनकर समाज का जैसे ही बहिष्कार हुआ ,वे भी मुसीबत में फंस गए ,उनके सारे काम छिन गये ,बटाई खत्म हो गई .उनको अपने पशुओं के लिए चारा तक पास के गांवों से खरीदना पड़ा और रोजगार के लिए यत्र तत्र भटकना शुरू करना पड़ा ,मगर उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया .
बहिष्कृत वनकर समुदाय ने अपने साथ हो रहे इस अन्याय के बारे में सरपंच ,पटवारी ,टीडीओ,डीडीओ,एसडीएम ,एसपी और जिला कलेक्टर सबको लिखित आवेदनों के ज़रिये बताना शुरू किया .उन्होंने गुजरात के गृहमंत्री और अनुसूचित आयोग को भी सूचित किया .जिला कलेक्टर ध्रुव पटेल ने दिखावे के अन्य जिलाधिकारियों के साथ एक दिन फिणाव का दौरा भी किया ,दोनों समुदाय के लोगों को बुलाया और समझाइश की कोशिस की ,इसके बाद वे लौट गए ,बहिष्कार तो ख़त्म नहीं हुआ लेकिन बहिष्कार ख़त्म होने की खबर जरुर मीडिया में छपवा दी .मगर जब बहिष्कार जारी रहा तो दो तीन बार वनकर समुदाय के लोग फिर से जिला कलेक्टर से मिलने गये ,कलेक्टर जो कि स्वयं भी पटेल समुदाय से आते है ,उनका रवैया भी जल्द ही बदल गया और उन्होंने दलितों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे एट्रोसिटी का केस वापस ले लें तो सामाजिक आर्थिक बहिष्कार ख़त्म करवा सकते है .
सलाम के काबिल है फिणाव के 33 वनकर दलित परिवार जिन्होंने किसी भी दबाव में आने से इंकार कर दिया ,उन्होंने कहा कि दलितों ने कुछ भी गलत नहीं किया ,अपनी ही जमीन में बाबा साहब की मूर्ति अपने ही खर्चे पर लगानी चाही ,अन्याय हुआ तो कानूनन मुकदमा दर्ज करवाया और बहिष्कार भी झेला है ,लेकिन अन्याय के सामने घुटने नहीं टेके है और ना ही टेकेंगे .आज भी यहाँ के वनकर परिवार पूरे स्वाभिमान के साथ सर ऊँचा करके जालिमों से जंग लड़ रहे है ,उनका कहना है कि मरना मंजूर है ,मगर दब कर रहना गवारा नहीं है .
आने वाले नवम्बर में उनके सामूहिक बहिष्कार को दो साल पूरे हो जायेंगे ,इससे निजात पाने के लिए वनकर समाज के लोगों ने हर संभव प्रयास किया है ,वे सरपंच से मुख्यमंत्री तक और पटवारी से मुख्य सचिव तक जा चुके है ,अनुसूचित जाति आयोग के भी दरवाजे खटखटा चुके है ,प्रधानमन्त्री तक को लिख चुके है और गुजरात के उभरते दलित नेता जिग्नेश मेवानी के पास भी जा चुके है ,मगर किसी भी स्तर पर कोई भी सुनवाई नहीं होने से यहाँ के वनकर समाज के संघर्षशील लोग नाराज है .
फिणाव के दलित तो अपनी पूरी ताकत से अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे है ,मगर शासन प्रशासन और समाजसेवा के नाम पर नेतागिरी चमकाने वाले लोग कहाँ है ? पूरी दुनिया में गुजरात मॉडल का ढोल पीटने वालों को इस गर्वी गुजरात में हो रहे दलितों का सोशल बॉयकाट क्यों नजर नहीं आ रहा है ?
मोदी जी ,शाह जी और रुपाणी जी थोड़ी फुर्सत और संवेदना है आपके पास फिणाव के वणकरों के लिये ?
अगर है तो इस अन्यायकारी अमानवीय सामाजिक आर्थिक बहिष्कार को ख़त्म करवाइये ,नहीं करवा सकते है तो उनके रोजी रोटी का सम्मानजनक प्रबंध कीजिये ,कोई गुनाह नहीं किया है इन्होने ,बाबा साहब की प्रतिमा लगाने की बात करना इतना बड़ा गुनाह नहीं है ,जिसकी ताजिंदगी सजा दी जाये .
– भंवर मेघवंशी

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता है )

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