वेद माथुर
अजमेर की एक सरकारी मुस्लिम छात्र बहुल स्कूल में पढ़ने और तंग गलियों में मुस्लिम दोस्तों के घरों के चक्कर लगाते हुए जीवन का एक बड़ा भाग व्यतीत करने के कारण मुझे भारत में अल्प संख्यकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानने के लिए किसी आयोग की रिपोर्ट पढ़ने की जरूरत महसूस नहीं होती। आज भी मेरे दोस्तों में मुस्लिमों की संख्या अधिक है और मैं इस्लाम तथा उनके अनुयायियों के उपासना स्थलों का भी उतना ही सम्मान करता हॅूं, जितना अपने मंदिरों का।
मुझे टेलीविजन और अन्य मीडिया (विशेषकर सोशल मीडिया) पर राम जन्मभूमि से लेकर ट्रिपल तलाक पर होने वाली बहस को देखकर आश्चर्य होता है कि जहां मुस्लिमों की आबादी का बड़ा हिस्सा अशिक्षा और गरीबी (सपाट शब्दों में भूख) से जूंझ रहा है, वहां तथाकथित धर्म गुरू, मुस्लिम नेता व बुद्धिजीवी कौम को समृद्ध बनाने की बजाय उन्हें अनुत्पादक बहस में क्यों व्यस्त रखना चाहते हैं?
यह कड़वा सत्य है कि प्रगति की दौड़ में हिन्दुस्तान का जुम्मन मियां अन्य धर्मावलम्बियों माइकल, मारफतिया या रमाशंकर से मीलों पीछे है। आज भी जुम्मन मियां के घर का गुसलखाना दरवाजे के बजाय फटे टाट से ढका है। मुस्लिम बुद्धिजीवी क्यों अपनी कौम को शिक्षा एवं कौशल विकास की राह नहीं दिखाते? कब तक समान नागरिक संहिता और राम जन्मभूमि पर चर्चा करते रहेंगे? कब तक अमेरिका के खिलाफ नाई और पान की दुकान पर ‘सेमीनार‘ आयोजित करते रहेंगे? मुस्लिम समुदाय को आर.एस.एस. का हव्वा दिखाकर निरन्तर डराया जाता है जबकि हमारे संविधान ने सभी को समान अधिकार और संरक्षण दिया है और यहां किसी धर्म विेशेष के लोगों को अकारण किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है।
मुस्लिम नेताओं (तथाकथित) की वजह से एक ओर तो आम मुस्लिम ‘खामखां’ की बहस और आन्दोलन में अपना समय (यहां तक की अपना जीवन भी) गवां रहे हैं, दूसरी ओर इससे हिन्दु-मुस्लिम खाई भी निरन्तर बढ रही है । वास्तविक साम्प्रदायिक सद्भाव से सबसे ज्यादा मुस्लिम लाभान्वित होंगे । हिन्दुस्तान में मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरूओं को कौम की भलाई में निम्नलिखित निर्णय लेने चाहिए –
• राम जन्मभूमि, काशि, मथुरा व हुबली जैसे विवादित धर्म स्थल स्वेच्छा से हिन्दुओं को मंदिर बनाने के लिए दे दें तथा समझौते में सरकार से इससे चौगुनी जमीन लेकर वहां मस्जिद बना लें।
• उपासना पद्धति पर कोई समझौता किये बिना ‘समान नागरिक संहिता’ को सहर्ष स्वीकार करें। मौजूदा समय में हमारा सिविल कोड अत्यन्त सन्तुलित है एवं समय की कसौटी पर सदैव सही एवं न्याय संगत सिद्ध हुआ है।
• मुस्लिम समाज तीन तलाक एवं बहु विवाह को स्वेच्छा से छोड़ दे।
• वर्तमान हालात को देखते हुए परिवार नियोजन एवं जनसंख्या नियंत्रण को खुशी से अपनाएं ।
• मदरसों में कम्प्यूटर एवं आधुनिक शिक्षा हो।
• लोगों को शिक्षित करने एवं सभी प्रकार के कौशल विकास के गम्भीर प्रयास हों।
• धर्म स्थलों के बजाय स्कूल-कॉलेज, कोचिंग सैण्टर एवं कौशल विकास केन्द्रों को खोलने तथा सुचारू रूप से चलाने पर जोर दें।
• अन्ध विश्वास एवं धर्मान्धता को हतोत्साहित करें।
आज स्थिति यह है कि सिक्ख, जैन, सिन्धी, पारसी, ईसाई सभी समुदाय उन्नति कर रहे हैं लेकिन मेरा दोस्त शफीक एक वेल्डर के यहां, मोईन खाती के यहां, हामिद दर्जी के यहां और अब्दुल मोटर साईकिल के मैकेनिक के यहां बहुत कम वेतन पर नौकरी कर रहा है। मैं चाहता हॅूं कि जुम्मन मियां, शफीक, मोईन, हामिद, अब्दुल आदि वोट बैंक के ठेकेदारों और धर्मगुरूओं की कैद से मुक्त हों। मेरी कामना है कि मुस्लिम भाईयों के बेटे-बेटियों की नेम प्लेट ‘आई.ए.एस.’ पदनाम के साथ विभिन्न मंत्रालयों में लगे और ढेर सारी बड़ी कम्पनियों के एम.डी., सी.ई.ओ. मुस्लिम भाई बहन भी हों।
हिन्दुस्तान में सीमित साधनों और बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर आने वाला समय हम सभी के लिए कठिन होगा, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लिए। शिक्षा और प्रगतिशील सोच ही मुस्लिम समाज को खुशहाली की ओर ले जा सकते हैं।
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