“प्रकृति”

kalpit haritप्राचीनकाल से ही भारतीय समाज प्रकृति से प्रेम करता है। उनसे सदैव प्रकृति से समरसता स्थापित करने का प्रयास किया है। धरती माता, सूर्य , चन्द्र देवता, नदियों मे देवी और पेड़ो मे देवताओ का वास उसके प्रकृति से प्रेम के उदहारण है।
प्रकृति ने मानव को जीवन यापन के लिए पेड़,पोधे,फल,फूल,पानी सब चीजे उपलब्ध करायी परन्तु एक ख़ास बात यह है कि प्रकृति ने हर किसी को कुछ मूल सवभाव प्रदान किये है जिन्हें यदि बदलने का प्रयास किया जाता है तो उसके परिणाम भुगतने भी पड़ेगे और प्रकृति अपनी तरह से अपना बदला भी लेगी ही। और पर्यावरण जिस तरह आज एक वैशविक समस्या के रूप मे उभर कर आया है वो उसी प्रकृति के मूल स्वभाव को परिवर्तित करने कि कोशिश के नतीजे है।
हमने जिस तरह प्राकर्तिक सम्पदा को नुक्सान पहुचाकर आधुनिक शहरो के नाम पर कंक्रीट के जंगल खड़े करे है उनका ही परिणाम जरा सी बारिश मे शहरो मे होने वाले बाड के हालत है।
भारतीय उपमहादीप के पशचिम मे जो विशाल मरुस्थल है जो राजस्थान मे जैसलमेर,बीकानेर,बाड़मेर,और कुछ जोधपुर और चुरू तक भी है इस मरुस्थल कि जगह कभी टेथिस सागर हुआ करता था ये केसे मरुस्थल मे बदला इस पर भूगोल मे कई थ्योरी है पर मै आज इसके पीछे कि एक पौराणिक कथा का जिक्र करना चाहता हू।
जब भगवान् श्री राम ने लंका जाने के लिए समुद्र से ये प्रार्थना कि कि वो बिना डुबाये वानर सेना को समुद्र पार करने दे पर जब समुद्र देवता नही माने तो तो श्री राम ने समुद्र को सुखाने के लिए बाण कमान पर चढ़ाया उसी समय समुद्र देवता ब्राहमण के रूप मे प्रकट हुए और कहा हे प्रभु प्रकृति ने सभी को एक मूल स्वरुप दिया है जिसमे चाहकर भी हम परिवर्तित नही कर सकते और अगर आप बाण चलायेगे तो जल मे रहने वाले सभी जीव भी नष्ट हो जायेगे क्युकि बाण पर तीर चढ़ चूका था तो उसे वापस नही लिया जा सकता था जिस कारण ये तीर पश्चिम कि तरफ छोड़ दिया गया और विशाल मरुस्थल रेगिस्तान बन गया। (प्रस्तुत लोककथा का जिक्र रामायण के पांचवे अध्याय सुन्दरकाण्ड मे है)
लोककथा से स्पष्ट है कि प्रकृति ने जब भगवान् के लिए ही अपना मूल सवभाव नही बदला तो फिर हम मानुष होते हुए उसके साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास क्यों कर रहे है।
प्रकृति को भारत के सविधान कि तरह माना जा सकता है जिसमे संशोधन तो संभव है पर मूल ढाचे मे परिवर्तन नही किया जा सकता(सविधान के मूल ढाचे मे परिवर्तन नही किया जा सकता ये सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था, मिर्नावा मिल्स केस 1980 का) पर सविधान के रक्षा के लिए तो सुप्रिमे कोर्ट है पर पर प्रकृति अपना न्याय खुद ही करती है। और आप भले मुझसे असहमत हो पर प्रकृति कभी अन्याय नही करती आपको देने मे, सबको बराबर देती है और जब अपने साथ हुए छेड़छाड़ का बदला लेती है तो भी इतने विनाशकारी ढंग से लेती है कि आप को मुझ को किसी को नही बक्श्ती; सुनामी ,भूकंप ,जवालामुखी ,बाड ,अकाल ,सुखा ,भूजल मे कमी ,पर्यावरण प्रदुषण ,भू स्खलन ,ग्लेशियर पिघलना ,समुद्र जल स्तर मे व्रह्धि ,और हाल ही मे घोषित नासा द्वारा 2016 सबसे गरम वर्ष ,प्रथ्वी के ओसत तापमान मे एक डिग्री बढ़ोतरी प्रकृति से किये खिलवाड़ के नतीजे है।
पेड़ ,पोधे आदि ही नही अपितु संसार मे उपस्थित हर एक वस्तु व्यक्ति प्रकृति का भाग है तो बात आती है कि जब हम प्रकृति के भाग है और प्रकृति मे सब का मूल स्वभाव है तो हमारा मूल स्वभाव क्या है कयोकि हम मनुष्य है तो मानवता प्रकृति द्वारा प्रदत हमारा मूल स्वभाव है और जब हमने इसे बदला अर्थात मानवता छोड़ी तो उसके परिणाम भी प्रकृति ने हमें दिखा दिए है बढ़ता आतंकवाद इसी क्रम मे दिन प्रतिदिन बढती वारदाते इसी मूल सवभाव मे परिवर्तन के नतीजे है।
उदेश्य केवल इतना है कि आप समझ जाइए, प्रकृति के नियमो का पालन कीजिये उसके साथ न छेड़छाड़ कीजिये और न बदलने का प्रयास कीजिये कयोकि जो प्रकृति आपको सब कुछ दे सकती है अपनी खुबसुरती से मोहित कर सकती है वही सबकुछ उजाड़ भी सकती है।
इस बारे मे एक प्रचलित कहावत है आपने सुनी होगी :-
NATURE WILL NEVER CHANGE

कल्पित हरित

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