अपने आपको खुश रखने हेतु प्रभाशाली और उपयोगी मन्त्र भाग 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
सच्चाई तो यही है कि हम सभी मूल रूप में प्रेम पूर्ण हैं क्योंकि स्नेह-प्रेम हमको जन्म से प्राप्त हो जाता है इसीलिए प्रेम को कभी भी जिंदगी से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन खुद के अहंकार के कारण हम अपने प्रेम को व्यक्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए अपने भीतर मौजूद प्रेम को व्यक्त करना शुरू करें | आप किसी को दिल से प्यार करोगे तो ही असली नॉलेज की प्राप्ति होगी। दूसरों की प्रशंसा करें, दिन मेँ कम से कम 3-4 व्यक्तियों की प्रशंसा उनके सामने या उनकी पीठ पीछे करें | दूसरों की उपलब्धियों की प्रशंसा करें वरना अहंकार की यही भावना आपके मन ईर्ष्या का जहर उत्पन्न कर देगा | जो अपने पास नहीं है, वह यदि किसी और के पास हो, तो ईर्ष्या का पैदा होना स्वाभाविक है। अपनी इस ऊर्जा को सकारात्मकता के साथ उन वस्तुओं को प्राप्त करने की कोशिश करें जो वर्तमान में आपके पास उपलब्ध नहीं है | रोज कुछ मिनिट ध्यान या मेडीटेसन करते हुए अपने व्यक्तित्व और अंतर्मन का उस शाश्वत, अमर हिस्से से संपर्क जोड़िये जो आपकी उपलब्धियों और विफलता से परे है। इससे जहाँ आपकी बाहरी मान्यता की ख्वाहिश कम होगी वहीं आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सजग बने रहेंगे | याद रक्खे कि जब कभी आपके पेट की मांसपेशिया सिकुड़ती महसूस हों रही है तो यह आपके मन में बेठा डर या भय है और वहीं अगर आपके गर्दन, जबड़े और कंधों में कड़ापन या जलन महसूस हो तो जरुर यह आपके मन उपजा कारण क्रोध है। इसलिए इन पर गौर करने से और इन पर नियन्त्रण करने से आप ईर्ष्या पर काबू पाकर उससे छुटकारा पा सकते हैं। जब कभी आप के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो रही हो तो उस समय खूब गहरी सांस लें और छोड़ें। सांस छोड़ते समय कल्पना करें कि ईर्ष्या की नकारात्मक भावनाएं धुएं के रूप में आपकी पीठ से बाहर निकल रही हैं।

संकलनकर्ता—-डा. जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—-मेरी डायरी के पन्नें, संतो के आशीर्वचन

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