भाजपा सत्ता और संगठन ने उपचुनाव में हार का ठीकरा फोड़ा नौकरशाही के सिर पर

राजेश टंडन एडवोकेट
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनो को दे , वाली कहावत भाजपा में पूर्ण रूप से चरितार्थ हो रही है। पहले नौकरशाहों को राजनीतिज्ञ बना दिया अब ब्यूरोक्रेसी पर दोषारोपण कर अब ब्यूरोक्रेसी पर गाज गिराने की बात कर रही है , भाजपा सरकार खुद की ओर देख ही नहीं रही है कि कैसे सरकार ने नौकरशाही का राजनीतिकरण कर दिया , तीन महीने के लिए महानिर्देशक पुलिस की नियुक्ति तुष्टिकरण की नीति के तहत की गई , इसी प्रकार मुख्य सचिव को तीन चार महीने के लिए लगाकर , फिर सारे जैन समाज को मुख्यमंत्री आवास में बुलवाकर C M ने खुद को महामंडित किया और एक मार्बल व्यवसायी के कहने से मुख्य सचिव लगाया गया था , और वह मार्बल व्यवसायी सदा सुहागन की बेल है जो हर मुख्यमंत्री के लिपट जाता है चाहे वो किसी भी राजनितिक पार्टी का हो , और वो भर पूर धर्म की व राजनिति की सेवा में लोट पोट हो जाता है और अपनी स्वार्थ सिद्वि करता रहता है , मुख्य सचिव से पता नहीं उसने क्या-क्या कार्य करवा लिए यह अभी उजागर ही नहीं हुए है , पर एक इनक्म टैक्स का मामला उनके बेच मेट से सुलझवाया है* ,

*माननीय मुख्यमंत्री महोदया ने इसी प्रकार तीन-तीन महीने के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष लगायें है और उन जातियों को यह जताया है कीे देखो मैनें तुम्हारी जाति का अध्यक्ष लगा दिया है चाहे वह वकील हो, चाहे वह डाॅक्टर हो , अब तुम सब लोग भाजपा से जुडो , ऐसी जातिगत संवाद बैठकें मुख्यमंत्री ने लोक सभा उपचुनाव व विधानसभा में सभी जगह पता नही किसके कहने से की* , *और जातिवाद का ऐसा गंदा जहर राजस्थान में घोल दिया जैसे जिस जाति का अधिकारी लगाया या उसका कार्य किया वो तो हो गई खुश और पैतींस (35) कौमो को अपने खिलाफ कर लिया , मुख्यमंत्री महोदया ने खुद भी यह गंदी प्रथा बनाई की मैं राजपूत की बेटी हूँ , जाटों की बहू हूँ , गूजरों की समधन हूँ ,इस प्रकार यह दर्शाया की बाकी जातियों से तो मेरा कोई लेना देना नही है मैं तो सिर्फ इन तीन जातियों की ही खैरखुवाह हूँ इस प्रकार अन्य सभी 32 जातियों ने भी मुख्यमंत्री से और भाजपा से किनारा कशी कर ली* , *मुख्यमंत्री तो जैसे केवल तीन जातियों की है* ,

*कुछ जातियों को तो मुख्यमंत्री ऐसा पनपाया कि आधे राजस्थान में उन जातियों के पुलिस अधिक्षक और कलेक्टर लगा दिये बाकी जात के लोगों को बर्फ में लगा दिया और रही सही कसर सासंदपुत्र ने पुरी कर दी, कई जिलों एक ही जाति का एसपी उसी जाति का एडिशनल एसपी व डिप्टी एसपी तक लगा दिये और उन अधिकारियों ने , उस रेंज के आई. जी. पी. को पहचानने मानने तक से इन्कार कर दिया बेचारे आई. जी. पी. कही दाद फरियाद तक नही कर सके क्यों कि रोम जल रहा था और निरो बांसुरी बजा रहा था, झालावाड़ के नगर निगमों के विगत चुनाव परिणाम अपने आप में एक आईना है जो बदनुमा दाग है कि किस प्रकार झालावाड़ में ही भाजपा हारी प्रत्यक्ष को प्रमाण कि आवश्यकता नही होती* , * *जो अधिकारी झालावाड़ लग गया उसको तो भाजपा राष्ट्रीय परमीट दे देती है की वह कहीं पे भी लग सकता है उसमें योग्यता का कोई पैमाना नहीं होता सिर्फ झालावाड़ रिर्टन ही सबसे बड़ी योग्यता होती है , उसका मुख्यमंत्री कार्यालय जीवन बीमा कर देता है।*
*मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे प्रमुख शासन सचिव पदमश्री तन्मय कुमार जी से कैबिनेट मंत्रियों को भी टाईम ले कर ही मिलना पड़ता है , राज्य मंत्रियों की और एम. एल. ए. की तो औकात ही क्या है , संसदीय सचिवों के पास कोई पावर होती नहीं इसलिए पदमश्री तन्मय कुमार उनसे मिलते नही है , शासन सचिवालय में बैठे प्रमुख अधिकारी , मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठै तन्मय कुमार जी का मूड़ पूछ कर बडे़ सहमे-सहमे डरे-डरे से , उनसे मिलने जाते है और जब तक वो सामने बैठने को नहीे कहते तब तक ये जी हजूरिये खडे़ ही रहते है , कोई मंत्री महामहिम तन्मय कुमार को अपने कमरें में बुलाने की हैसियत नही रखता है खुद फाईल लेकर उनके कमरें में जाते है ऐसे मे भाजपा क्या करेगी मंथन और क्या करेगी चिन्तन और ब्यूरोक्रेसी में बदलाव से भी क्या होगा जब तक महामहिम तन्मय कुमार जी मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठे है* ,

*और परम आदणीय कमठान सहाब मुख्यमंत्री निवास में बैठे है और राजस्थान केसरी महेन्द्र भारद्ववाज साहब सचिवालय में, और मुख्य मंत्री कार्यालय में प्रेस वार रूम लेकर बैठै है उन्होंने सारी राजस्थान की प्रेस से मुख्यमंत्री महोदया को लड़वाने का काम बखूबी कर रहे हैं , और रोज अपनी शामे रंगीन कर रहे है*।

*पिछले कार्यकाल में भी मुख्यमंत्री महोदया बाहर से कैबिनेट सचिव, वीर शिरोमणि गोंविन्द मोहन गुप्ता जी को पकड़ लाई थी, जिन्होने पहले सारे राजस्थान को , फिर भाजपा को रूलाया , फिर मुख्यमंत्री महोदया को भी रूलाया* , *तथा राजस्थान का राज भी गुप्ता जी के चक्कर में गवाया , C M को बामुश्किल तमाम उनको राजस्थान से रूखसत करना पड़ा,* *राजस्थान के मंत्रियों के हालत तो किसी से भी छूपे नही है , वो बेचारे तो अपने दिन गिन रहे है , एक कैबिनेट मंत्री के मुंह पर पडे़ थप्पड़ की गूंज आज भी सत्ता के और राजनिति के गलियारों में गॅूज रही है , उनका तो थप्पड़ के साथ विभाग भी बदल दिया गया था* , *राजनितिक कद भी छोटा कर दिया गया था , उन्होने बड़ी चतुराई व तरकीब से अपने साथ हुए अपमान का बदला इस चतुराई से लिया कि जैसे किसी ने आँख से काजल चुरा लिया हो , राज में रहकर भी राज की थाली में छेद कर दिया , और जो उनके समकक्ष जाति बन्धु नहीं कर पाये थे वो काम उन्होने कर दिखाया साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी यह मंथन मैने बिना किसी लोभ , लालच , के अपने पूरे होशो हवास में बिना किसी नशे पत्ते के एवं किसी डर दबाव के इस मंथन से होने वाले सारे दुष्परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए बिना किसी राजनितिक रागद्वेष के जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत किया है जो सबकी जानकारी में था और कोई भी कहने का साहस नहीं कर रहा था , इस में कुछ भी छुपाया नही है , ईश्वर मेरी सहायता करे*।

*एक बहुत पुरानी कहावत है अब पश्चाताये क्या होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत* , *मैंने इसमें एक सुधार किया है …….!!!!! *अब भी सब कुछ हो सकता है अगर माली हो सचेत !!!!*

राजेश टंडन वकील अजमेर

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