मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के नाम खुला पत्र

सम्मानीय वसुन्धरा जी
मुख्यमंत्री
राजस्थान सरकार

सिद्धार्थ जैन
मुझे स्मरण आता है। भूतपूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने आपको राज्य की बागडोर सम्भालने को नामित किया। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आपने राजस्थान में जाजम बिछाने की शुरुआत की। उसे लेकर तब आप काफी सशंकित भी रही। *तब राज्य के कुछेक आलाधिकारियों से हुई निजी बातचीत में एक सम्भावना सामने आई। उनका आकलन था! समर्पित,मजबूत,धनाढ्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते समूचे भारत मे आपके मुकाबले कोई महिला नेता नही दिखती। महिला प्रधानमंत्री बनने की संभावना की दशा में वे आपको भी खड़ा देख रहे थे!* खेर…!! उस सम्भावना को अरसा हो गया। उसके बाद तो अनेको केंद्रीय नेताओ का कद खूब बढ़ गया। लगभग आपके ही समकालीन एक मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी आज प्रधानमंत्री के रूप में मजबूती के साथ देश की बागडोर सम्भाले हुए है। जिनके मुकाबले दूर-दूर तक कोई भी अब नजर नही आता।

आदरणीय राजे जी। आप खूब भाग्यशाली रही। आपके नेतृत्व की बदौलत ही राजस्थान में पहली बार भाजपा को अप्रत्याशित भरपूर बहुमत मिला। ऐसा सौभाग्य तो आपको प्रमोट करने वाले को भी कभी नसीब नही हो सका। भाजपा कार्यकर्ताओं को ही नही, आम जनता का भी तब आप में भरोसा जागा। अबके दूसरी दफा फिर जनता ने आप पर भरोसा जताया! *लेकिन यह क्या हो गया…? चुनावी वर्ष के उप चुनावों में सूपड़ा ही साफ हो गया…! सतरह विधानसभाओं में एक पर भी तो बढ़त नही मिली? पन्द्रह वर्षो पुराना जलवा आखिर तार-तार क्यो हो गया…?* माना कि जीएसटी-नोटबन्दी भी प्रमुख कारण रहे होंगे। लेकिन आपके उन विधायकों-जनप्रतिनिधियो का क्या? जिनके इलाकों में ही भाजपा चित हो गई! भाजपा के उन पदाधिकारियो का क्या? जिन्होंने कार्यकताओं को कभी कार्यकर्ता नही समझा…!

“जिसका मालिक मेहरबान, उसका गधा पहलवान!” पिछले चार वर्षों में यह कहावत राजस्थान में काफी चर्चित रही है। *आप ऐसे ही अधिकारियों-नेताओ से गिरी रही जो अपने हित साधते रहे। हित भी कोई छोटे-मोटे नही! वो वो कारनामे! जिनको ठगी ठगी सी आम जनता देखने को बेबस थी! उन सब के पीछे कही न कही आपके ही संरक्षण की चर्चाएं जोरो पर बनी रही। अधिकारी-नेता भी गाहे बजाए वैसी ही धारणाओं को हवा देते नजर आते! अच्छे-निष्ठावान-जानकार जमीनी अधिकारी-नेता तो बर्फ में ही दफन कर दिए गए! जनता का तो कोई धणी-धोरी ही नही रहा!* भाजपा का तारणहार आरएसएस भी बेबस-लाचार-बोना साबित होता दिख रहा था! राजस्थान का कोई जिला-उपखण्ड ऐसा नही जहाँ आम कार्यकर्ता की सुनी जाती है। जनता-जनार्दन की तो बात ही नही करे…! *अधिकारी ही क्यो? सत्ता पक्ष, विशेष रूप से आपकी निकटता रखने के दम्भी विधायक तो बहती गंगा से बाहर निकलने को ही तैयार नही दिख रहे है..!!!* उनका केवल हाथ धोने से ही मन नही भरता! माननीय मुख्यमंत्री जी ना मालूम आपको उन पर लगाम कसने की जरूरत महसूस क्यो नही हुई? उनकी उन अक्षम्य करतूतों के खामियाजे से भी आप बच तो नही सकेगी!

माननीय वसुन्धरा जी। वर्तमान परिस्थितियों में राज्य में आपके कद का कोई भी नेता नजर नही आता। *भीड़ खींचू नेता भी आपके मुकाबले कोई दिखता नही। पिछली बार हार जाने के बाद आप विदेश जमी रही। अब भी आपके पास सुनहरा मौका था। आप खुद हर दृष्टि से सामर्थ्यवान है। धन-धान्य से! नाम-काम से! यह सब आपको विरासत में मिला है। आपको जनसंघ संस्थापक सदस्य की उन भामाशाह-समर्पित-कर्मठ-राजमाता की बेटी होने का गौरव हासिल है।* जिनके समक्ष सुख-सुविधाएं, लोभ-लालच आदि सब बेनामी थे। आप कॉकस के भरोसे नही रहती। कमी क्या थी! आप खुद को जनता के लिए समर्पित किए रखती! जनता से सीधे संवाद में रहती! जीहजुरियो से दूरी बनाए रखने का साहस दिखाती! तब आप देखते… यही जनता सिर-माथे बिठाए दिखती! ऐसा तो कतई नही होता…!!
*विनम्र:*
*सिद्धार्थ जैन*
*पूर्व उपसम्पादक राजस्थान पत्रिका*
*ब्यावर (राज)*
*094139 48333*

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