नोटबंदी की नाकामी का जवाब कौन देगा?

ओम माथुर
चुनाव जीतने के लिए भी जुमला और सरकार बनने के बाद भी जुमला।पहले कहा था कि बैंकों में इतना काला धन जमा है कि हर भारतीय के खाते में 15 -15 लाख रुपए जमा कराए जा सकते हैं । लेकिन बाद में इसे चुनावी जुमला बताकर खारिज कर दिया । भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने डंके की चोट पर कहा था कि इस तरह के जुमले चुनाव में इस्तेमाल किए जाते हैं ।
और फिर सरकार बनने के बाद जिस नोटबंदी को देश में काला धन खत्म करने का अचूक हथियार बताया गया था, वह भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के बाद जुमला साबित हो गया। आपने अखबारों में पढ़ लिया होगा कि नोटबंदी के समय 8 नवंबर 2016 से पहले 500 और 1000 के 15.41 लाख करोड़ रुपए चलन में थे और उनमें से 15.31 करोड रुपए वापस बैंकों में जमा हो गए । जो 10 हजार करोड रुपए जमा नही हुए हें, उसे भी खुद सरकार पूरी तरह से कालाधन नहीं मानती है । जबकि सरकार ने तब यह दावा किया था कि नोटबंदी से तीन से चार लाख करोड़ का कालाधन सिस्टम से बाहर हो जाएगा । नोटबंदी करते वक्त जो कारण बताए गए वह आज भी वैसे बने हुए है। ना तो आतंकवाद में कमी आई है ना भ्रष्टाचार कम हुआ है। आपको पता नहीं जानकारी है या नहीं , कि भ्रष्ट देशों की सूची में भारत साल 2016 में 79 वे नंबर पर था जो अब 81वें नंबर पर पहुंच गया है । यह सूची 175 से ज्यादा देशों की जारी होती है।
ऐसे में नोटबंदी के दौरान देश के करोड़ों लोगों को हुई परेशानी के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? आज भी वो दृश्य आंखों में हैं,जब लोग 500 और 1000 के नोट जमा कराने के लिए बैंकों के बाहर भिखारियों की तरह लाइन में लगते थे । एटीएम से अपने ही पैसे निकालने के लिए पूरा- पूरा दिन बर्बाद करना पड़ता था और फिर भी कईयो को खाली हाथ लौटना पड़ता था। कई लोगों की इन लाइनों में जान तक चली गई थी। सरकार भी रोजाना नए- नए आदेश निकालकर कभी ₹2000 की तो कभी ₹5000 एक दिन में निकालने की इजाजत देकर अपनी कृपा बरसाती थी। कई घरों में पैसे की तंगी के कारण शादियां टल गई ,तो हजारों लोगों की नोटबंदी के चलते नौकरी चली गई । आरबीआई यह बात पहले ही मान चुका है कि नोटबंदी के कारण छोटे और लघु उद्योगों को काफी नुकसान पहुंचाया।
कल से आरबीआई की इस रिर्पोर्ट पर टीवी चैनलों पर बहस के लिए बुद्धिजीवियों की टोली नजर नहीं आ रही है । लोग भाजपा के महाज्ञानी प्रवक्ताओं और सरकारी झुकाव वाले लोगों के विचार इस बारे में जानने को तरस रहे हैं । कभी नोटबंदी के लाभ गिनाने वाले अब नदारद हैं। कल राफेल सौदे पर Facebook पर लेख लिखकर सरकार का बचाव करने और राहुल गांधी को झूठा ठहरा रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली पता नहीं नोटबंदी की सच्चाई पर कब लेख लिखेंगे? अब तक तो दूरदर्शन ही सरकारी चैनल हुआ करता था। लेकिन इस सरकार की यह उपलब्धि मानी जाएगी कि उसने सभी खबरिया चैनलों को दूरदर्शन का संगी-साथी बना दिया है । सरकार और इन खबरिया चैनलों के सामंजस्य पर यही पुराना गीत याद आता है कि,जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो तो रात कहेंगे। ऐसे में यह पता ही नहीं लगता कि देश में अंधेरा बढ़ रहा है या छंट रहा है?
*ओम माथुर/अजमेर।*

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