क्या फर्क पड़ता है
क्या है इंसाँ की कीमत
यहाँ ज़िंदा रहने के लिए पैसे कमाना पड़ता है।
कौन कैसा है ये जान के
नहीं मिलता राशन
क्या कोई ख़रीददार का
चरित्र पूछा करता है।
अच्छाई-बुराई की होती है
चाय पे चर्चा
जरूरतों के लिए तो
पैसा ही ख़र्चना पड़ता है।
बेशक मैं ये नहीं कहता कि
पैसों के लिए इंसानियत से गिर जाओ
फिर भी
यहाँ ज़िंदा रहने के लिए पैसे कमाना पड़ता है।
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’