पाने की चाह में
खोने का डर सताता है
बिना कुछ पाए ही
दिल सहम जाता है
फ़ितरत१ में जुड़ा है
ये डर जाना सहम जाना
रुका था न रुकेगा
इंसाँ का बहक जाना
लाख दुआएँ कर लो
फिर भी फ़ितरत न मिटेगी
ये ज़ोफ़-ए-इंसाँ२ है
जनाज़े तक रहेगी
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
शब्दार्थ:
१. फ़ितरत – स्वभाव २. ज़ोफ़-ए-इंसाँ- मनुष्य की कमजोरी