प्रेमचंद जयंती पर विशेष

डेढ़ की संस्करतिक राजधानी बनारस से क़रीब ४मील दूर,गाँव लमहि में जन्मे धनपतराय श्रीवास्तव यानी प्रेमचंद,पिछले १४० बरसों से हिंदी के सर्वाधिक पढ़े गए रचनाकार हैं।
अब प्रश्न ये udhta है कि ऐसे कोंसे कारक हैं जो प्रेमचंद को कालजयी बनाते हैं।निबंधकार रामवरक्ष बेनिपुरी ने अपने एक निबंध में लिखा rha”साहित्य समाज का दर्पण है”।जो प्रेमचंद के साहित्य पर अक्षरक्ष सही baidhti है।स्वतंत्रता पूर्व हिंदुस्तानी के पटल पर धूमकेतु की तरह उभरे प्रेमचंद ने तत्कालीन आम परिवेश के सामाजिक ढाँचे,ग़रीब,दलित,शोषित,किसान,स्त्री सम्प्रदाय को अपनी क़लम के जरिय एक आवाज़ दी।तत्कालीन समाज का आइना यदि कोई देखना चाहे तो वह प्रेमचंद के साहित्य के जरिय उसकी शक्लों -सूरत देख सकता है।
अब सवाल ये udhta है कि तक़रीबन १४० साल पहले लिखा गया साहित्य आज भी प्रासंगिक क्यू है?तो चालीए हम आज के आइने में अपने आपको ,अपने परिवेश की शक्ल को देखते हैं,जहाँ किसान आत्महत्या करने को मजबूर है,धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है,लूटा जा रहा है,धर्म को अफ़ीम की तरह उपयोग कर impressionable युवाओं को धरमांध किया जा रहा है।अमीर और ग़रीब की खाई बढ़ती जा रही है,६ माह की बच्ची से लेकर ७० साल की bodhi दादी भी आज सुरक्षित नहीं कही जवसकती है।जहाँ सामविधान में प्रद्दत अपने विचार रखने की आज़ादी की mob lyching हो रही है।महिलाओं को मंदिरो में प्रवेश ना देने आलों का साथ दिया जा रहा है।दलितों को आज भी घोड़ी दे उतारा जा रहा है,कही नंगा घुमाया जा रहा है।दलित बच्चियों और स्ट्रीयों का सामूहिक बलात्कार कर ,उनकी हत्या कर पेड़ों पर तंग जा रहा है।क्या ये हमारे आज के साज के शक्ल नहीं?
मेरा मानना है कि यदि आज के परिवेश में हिंदी का प्रासंगिक साहित्यकार कोई है तो वो मुंशी प्रेमचंद हैं।आचार्य दिवेदी के वक़्तवय के अनुसार “प्रेमचंद शताब्दियों से पद दलित ,अपमानित और निशपेशित कृषकों की आवाज़ थे।”और आज भी हैं।उन्होंने हिंदी साहित्य को तिल्लिसम ,अय्यारी और परी कथाओं से निकालकर उढ़्र्स्थ के धरातल पर ला खड़ा किया ।जहाँ उन्होंने हिंदी,उर्दू,फ़ारसी की त्रिवेणी के संगम से हिंदुस्तानी को ग्राह्य बनाया।जिस हिंदुस्तानी मेवहुमरि गंगा जामुनी तहज़ीब बस्ती है,उसे उन्होंने जन जन तक पहुँचाया ,उन्होंने साहित्य आम जन के जीवन से प्रेरित होकर जन जन की भाषा में लिखा।यही तथ्य मेरी नज़र में उन्हें मेरा ही नहीं वरण जन-गण-मन कापसंदीदा साहित्यकार बनाते हैं।उनकी जयंती पर उन्हें मेरा नमन।
लेखिका-कालिंद नंदिनी शर्मा

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