राम-राम-राम, यह क्या किया ?

शिव शंकर गोयल
गये दिन ही अखबारों में खबर थी कि कुछ अति उत्साहित लोगों ने दूसरें समुदाय के दो जनों को “जय श्रीराम” बोलने के लिए मजबूर किया, उनसे ज्यादती की, जिससे ईलाके में तनाव होगया. जानकारों का कहना है कि खुदा न ख्वास्ता मजबूर हुए दोनों में से यदि कोई एक भी दो बार “राम-राम” बोल देता तो कैसी रहती ? फौरी तौर पर तो लगता कि वह एक के बदले दुगने से जवाब दे रहा है लेकिन हकीकत में पासा पलट जाता. हर कोई जानता है कि एक बार “राम” शब्द तो भय, आश्चर्य आदि होने पर बोला जाता है जबकि दो बार “राम-राम” बोलने का मतलब है किसी का अभिवादन करना या उससे नमस्ते करना. इस तरह दो बार “राम-राम” सुनते ही ज्यादती करने वाले या तो ग्लानि में भरकर शर्मिन्दा होकर वहां से चले जाते और मन ही मन कहते अरे ! यह तो हमे नमस्ते कर रहे है या सम्भव है कि जाने से पहले स्वयं उनके मुहं से ही तीन या चार बार “राम” का नाम निकल जाता जिसका मतलब होता कि उन्हें अपने किए का अफसोस है.
“राम” नाम की संख्या के साथ भावना का बडा संबंध है. मानलो कोई पांच बार “राम राम” बोलदे तो यह माना जाता है कि वह गायत्री मंत्र की पंचाक्षरी – “ऊँ भूर्भवस्व:” की तर्ज पर राम नाम का पाठ कर रहा है. इसकी बडी महिमा है.
राम नाम छ: बार बोलने की भी महिमा है. राम के वनवास जाने के बाद राजा दशरथ छ: दिन ही जिन्दा रहे. उनके प्राणान्त का भावपूर्ण चित्रण गोस्वामीजी ने निम्न चौपाइयों में रामचरितमानस में किया है जिसमें छ: बार राम नाम आया है.
“राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम.
तनु परहरि रघुवीर विरह, राऊ गयऊ सुरधाम.”
अगर भक्ति रस में डूबकर जप करोगे तो इससे भी अधिक बार “राम” बोलोगे और राम नाम की माला फेरनी है तो 108 बार “राम राम” निकलेगा.
कहने का तात्पर्य यह है कि राम नाम बोलने अथवा बुलवाने में जोर जबर्दस्ती अथवा हिन्सा की आवश्यकता ही नही है. उल्टे राजस्थान विधानसभा में तो प्रेम से बुलवाने पर सभी एमएलए ने-जिसमें सभी सम्प्रदाय के लोग थे- खुशी खुशी जय श्री राम बोला.

शिव शंकर गोयल

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