*भाषा*

भाषा : हरीश करमचंदानी की कविता / प्रस्तुति – मोहन थानवी

हरीश करमचंदानी
उसने कहा एक देश एक भाषा
बिल्कुल,देश एक ही है,एक ही रहेगा
यह तथ्य तो सभी जानते हैं
और मानते भी हैं
पर सिर्फ एक भाषा
क्योंकर और क्यूँ???

मेरी माँ क्या करेगी
जिनको आती है सिर्फ सिंधी
जिसमें वे गाती है शाह साहब के गीत
जिसमें सुनती है
भगत कंवरराम की मधुर वाणी
जिसमें बात करती है मेरी मौसी से
जिन्हें भी नहीं आती दूसरी कोई भाषा
समझती है जो केवल मातृ-भाषा

माँ मेरी नहीं जानती आपकी राजनीति

गर उन्हें अपने इस भावनात्मक हक़ से करते हो वंचित
तो फिर यह तो बताओ
वे कैसे बात करेगी
अपने दौहिते और पोती से
बेशक उन्हें भी नहीं आती सिंधी
पर समझ जाते हैं वो सब जो माँ बोलती है

कि उनके रक्त में बह रही है
बसी है जो उनके भीतर
अपनी भाषा अपनी बोली

– भाषा : हरीश करमचंदानी की कविता / प्रस्तुति – मोहन थानवी

@स्वरचित सिंधी कविता का अनुवाद


*ٻولي*

هن چيو هڪُ ملڪ هڪ ٻولي
برابر ملڪ هڪ آهي
۽ هڪ ئي ٿي رهڻو آهي
اهاحقيقت ت هرڪو
سمجهي ۽ ڄاڻي ٿو
پر هڪ ٻولي وري
ڇو ۽ ڇاجي؟؟

منهنجي ماءُ ڇا ڪندي
جن کي ايندي آهي رُڳو سنڌي ٻولي
جنهن ۾ هؤ ڳائيندي آهي شاه صاحب جا ڪلام
جنهن ۾ ٻڌندي آهي ڀڳت ڪنور رام جي مٺي واڻي
جنهن ۾ ڳالهائيندي آهي ماسيءَ سان
جنهن کي ن ايندي آهي ڪا ٻي ٻولي

ماءُ منهنجي ن ڄاڻي سياست ڪا
پر هن کي جي رکو ٿا محروُم
توهان هن جذبات حق کان
ت اهو ٻڌائندا ڏيندا ڪو ڌس
هوءَ ڪيئن ڳالهائي پنهنجن ڏوهٽن ۽ پوٽيوُن سان
بيشڪ هوُ ن ڄاڻڻُ
پر سمجهي ويندا آهن اُهو سڀ جيڪو چوندي آهي ماءُ منهنجي
جو هنن جي رت ۾
وهي رهي آهي ٻولي
وسي وئي آهي اندر مٺڙي ٻولي
ها اسانجي سنڌي ٻولي

@هڪ

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