*भौंको मत, पीठ थपथपाओ*

-हैवानों का एनकाउंटर करने वाले हैदराबाद पुलिस के जाबांज अफसर को बारम्बार सेल्यूट
✍प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉भौंकने दीजिए भौंकने वालों को। चाहे बिकाऊ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भौंके, चाहे मौकापरस्त और स्वार्थी नेता, चाहे कोई अन्य भौंके। जिन लोगों का काम ही भौंकना है, वे भौंके बिना कैसे रह सकते हैं। यह समय भौंकने का नहीं, हैवानों को उनकी असली जगह ठिकाने लगाने वाले हैदराबाद पुलिस के जाबांज अफसर और उनके मातहत उन सभी कार्मिकों को सेल्यूट करने का है, जिन्होंने अहम भूमिका निभाई। हैदराबाद की जिस युवा लड़की डॉक्टर प्रियंका रेड्डी की बलात्कार के बाद निर्ममता से हत्या की गई, वह घटना हैवानियत की भी हद पार थी। जब तक ऐसे लोगों के साथ इस तरह का रवैया नहीं अपनाया जाता, तब तक देश में ऐसी घटनाओं को रोकना मुमकिन नहीं है। कुछ देशों में तो ऐसे दरिंदों को गिने-चुने दिन अदालती सुनवाई कर दोषी पाए जाने पर सरेआम गोली से उड़ा देने का प्रावधान है। इसलिए उन देशों में ऐसी घटनाएं या तो होती ही नहीं हैं या होती भी हैं, तो दरिंदों का यही हश्र किया जाता है।

प्रेम आनंदकर
हैदराबाद की घटना ऐसी ही दरिंदगी थी और हैवानों का यही हश्र होना चाहिए था। यह बात अभी तक समझ में नहीं आती है कि इस तरह की घटनाओं में अदालती सुनवाई के बाद दोषी ठहराए जाने के बाद भी सजा के तौर पर दोषियों को जेलों में रखकर किसलिए पाला जाता है। क्यों सरकारें उन्हें पालने का बोझ ढोती है। अब हैदराबाद के एनकाउंटर को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले भौंक-भौंक कर मानवाधिकारों के उल्लंघन की दुहाई दे रहे हैं। कोई जरा ऐसे मीडिया वालों और नेताओं से यह तो पूछे कि यदि इस तरह की घटना आपकी बहन-बेटी के साथ होती, तो क्या तब भी इसी तरह छाती-माथा पीट-पीटकर रोते। बहरहाल, हैदराबाद पुलिस की बहादुरी के लिए उसकी पीठ थपथपाई जानी चाहिए।

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